श्री गणेश चिंतन

श्री गणेश चिंतन

श्री गणेश चिंतन" श्री गणेश की स्तुति या मेधावी चिंतन का अर्थ है। इसे भक्ति और ध्यान का एक रूप माना जा सकता है जिसमें व्यक्ति गणेश जी की महिमा का चिंतन करता है और उनकी कृपा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मेधा एवं शांति से मन को समर्थित करता है। यह एक साधना है जिसके माध्यम से भक्त गणेश जी के साथ एकाग्रचित्त होकर उनकी पूजा और स्तुति करता है।
इस चिंतन के दौरान, भक्त गणेश जी के गुणों, कलाओं, और कृपा के विचारों का समर्पण करता है, जिससे उसका मानसिक स्थिति साकार रूप से गणेश जी के साथ सम्बंधित होता है। यह एक आध्यात्मिक अभ्यास है जिससे भक्त अपने मार्ग पर सजग रहता है और गणेश जी की कृपा को प्राप्त करता है।

एकदन्तं शूर्पकर्ण गजवक्त्रं चतुर्भुजम्।
पाशाड़कुशधरं देवं ध्यायेत् सिद्धिविनायकम्।।
ध्यायेद् गजाननं देवं तप्तकाञ्चनसंनिभम्।
चतुर्भुजं महाकायं सर्वाभरणभूषितम्।।
दन्ताक्षमालापरशुं पूर्णमोदकधारिणम्।
मोदकासक्ताशुण्डाग्रमेकदन्तं विनायकम्।।

भगवान गणेश, जिनके पास एक दाँत, विशाल कान, हाथी के जैसा मुख और चार भुजाएँ है, जो अपने हाथों में पाश और अंकुश धारण करते हैं, ऐसे सिद्धि विनाय देव का ध्यान करे। जिनकी अभंग कान्ति तपाये हुए स्वर्ण के समान दीप्तिमय है, जो चार भुजाधारी, विशालकाय और सब प्रकार के आभूषणों से विभूषित हैं, उन गजानन देव का ध्यान करे। जो अपने हाथों में दन्त, अक्षमाला, परशु और मोदक से भरा हुआ पात्र धारण करते हैं, जिनकी सूँडूका अग्रभाग लड्डू पर लगा हुआ है, उन एकदन्त विनायक का मैं ध्यान करता हूँ।

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