सुन्दरकाण्ड चौपाई 71 से 80 तक का भावार्थ हिंदी में

सुन्दरकाण्ड चौपाई 71-80 का भावार्थ हिंदी में 

चौपाई 71-80 अर्थ सहित

श्री रामचरितमानस का पंचम सोपान सुन्दरकाण्ड है। इस सोपान में 01 श्लोक, 03 छन्द, 526 चौपाई, 60 दोहे  हैं। मंगलवार के दिन सुंदरकांड का पाठ करने की परंपरा है
चौपाई
प्रभु संदेसु सुनत बैदेही। मगन प्रेम तन सुधि नहिं तेही।।
कह कपि हृदयँ धीर धरु माता। सुमिरु राम सेवक सुखदाता।।71
71इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में 
"बैदेही (सीता माता) ने प्रभु राम का संदेश सुना है, लेकिन प्रेम के मग्न होकर उसने तन को शुद्ध करने का संकल्प नहीं किया। हे कपिनंदन (हनुमान), माता सीता ने कहा है कि तुम्हें धीरज रखकर मेरा हृदय धरना चाहिए, और तुम्हें राम भगवान की सेवा में सुखदाता से याद करना चाहिए।"
इस चौपाई में सीता माता ने हनुमान से भगवान राम के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करते हुए उनसे सेवा और भक्ति की प्रेरणा करने का आदान-प्रदान किया है।
चौपाई
उर आनहु रघुपति प्रभुताई। सुनि मम बचन तजहु कदराई।।
जौं रघुबीर होति सुधि पाई। करते नहिं बिलंबु रघुराई।।72
72इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"हे रघुपति (राम), मेरे हृदय में आने वाले, तुम्हे प्रभुता है। मेरे बचन को सुनकर तुम मेरी कदर को त्यागो। जब से रघुकुलनायक राम हुए हैं और मैंने उनके चरणों की सेवा में लीन होने का निश्चय किया है, तब से मैं बिना विलम्ब के उनकी सेवा कर रहा हूँ।"
इस चौपाई में हनुमान जी अपनी अत्यधिक भक्ति और समर्पण का अभिवादन करते हैं, जो रामचंद्र जी के प्रति उनकी अनन्य प्रेम भावना को दर्शाते हैं।
Meaning of Sunderkand Chaupai 71-80 in Hindi
चौपाई
रामबान रबि उएँ जानकी। तम बरूथ कहँ जातुधान की।।
अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई। प्रभु आयसु नहिं राम दोहाई।।73
73इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में
"हे रबि (सूर्य देव), जानकी माता के लिए रामबाण (हनुमान जी का लंका में जाने का साधन) उपयुक्त है, और तुम्हारे बिना तुम्हारे बारे में नहीं कह सकते हैं, हे हनुमान। अब मैं माता के पास जा रहा हूँ और प्रभु राम की विचारात्मक सहायता मांगने जा रहा हूँ, क्योंकि प्रभु राम का दूत होने के बावजूद, मुझे उनका आदेश नहीं है।"
इस चौपाई में हनुमान जी अपने कार्यों की सही व्याख्या करते हैं और यह दिखाते हैं कि उनका प्रमुख उद्देश्य सीता माता की सुरक्षा और सेवा है।
चौपाई
कछुक दिवस जननी धरु धीरा। कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।
निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं। तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं।।74
74इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में 

"थोड़े दिनों में मैं जननी सीता के साथ धीरज से इस भूलोक में विराजमान हो जाऊँगा, और इसी के साथ राघव (राम) भगवान भी आएंगे। फिर मैं राक्षसों को मारकर उन्हें ले जाऊँगा, और विशेष रूप से नारद और अन्य महर्षियों के साथ उन्हें उनके पुरों में जाने दूँगा।"
इस चौपाई में भगवान राम के आवतार होने की घटना का सुंदर वर्णन किया गया है और यह दिखाता है कि भगवान का अवतार लोककल्याण के लिए होता है।
चौपाई
हैं सुत कपि सब तुम्हहि समाना। जातुधान अति भट बलवाना।।
मोरें हृदय परम संदेहा। सुनि कपि प्रगट कीन्ह निज देहा।।75
75इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में

"हे कपि सेनाधीश, तुम्हारी शक्ति में जातयु का भी सामर्थ्य है, और तुम सारे सुतों में सबसे बलवान हो। मेरे हृदय में बड़ा संदेह है, लेकिन तुम्हारी महिमा को सुनकर मैंने अपने शरीर में हनुमान को प्रकट कर दिया है।"
इस चौपाई में हनुमान जी को शक्तिशाली और बलवान माना गया है और इससे व्यक्त होता है कि उनका भक्ति और सेवाभाव अत्यंत उदात्त और अमूर्त है।
चौपाई
कनक भूधराकार सरीरा। समर भयंकर अतिबल बीरा।।
सीता मन भरोस तब भयऊ। पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ।।76
76इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में 

"हनुमान जी का शरीर सोने के समान है, जिसका रूप भूधरा (सोने की सुविधा वाला) है, और वह समर युद्ध में भयंकर और अत्यधिक बलवान है। जब सीता माता ने हनुमान जी पर भरोसा किया, तो हनुमान जी ने फिर से अपने छोटे रूप में प्रकट हो जाने का नाटक किया।"
इस चौपाई में हनुमान जी की अद्भुत शक्तियों का वर्णन किया गया है, जिससे उन्होंने सीता माता की सुरक्षा की थी।
चौपाई
मन संतोष सुनत कपि बानी। भगति प्रताप तेज बल सानी।।
आसिष दीन्हि रामप्रिय जाना। होहु तात बल सील निधाना।।77
77इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में

"कपि हनुमान जी ने अपनी बातों से मन को संतुष्ट किया, और उनकी भक्ति और भगवान के प्रति आत्मसमर्पण ने उन्हें अद्भुत तेज और बल से सम्पन्न बना दिया। उन्होंने रामभक्ति में लगे भक्तों को अपनी आशीर्वाद दी, और उन्होंने उन्हें यह सुनाया कि वे तात्पर्य रखें और बल, सील, और धन के निधान में सतत रहें।"
इस चौपाई में हनुमान जी की भक्ति और उनका भगवान राम के प्रति पूर्ण समर्पण प्रकट हो रहा है, जिससे वे बल, तेज, और आत्मसमर्पण में अमूर्त होते हैं।
चौपाई
अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू।।
करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना। निर्भर प्रेम मगन हनुमाना।।78
78इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी

"हे हनुमान, तुम अजर (अजन्मा) और अमर (अमर्त्य) हो, और तुम्हारे गुण सगे हैं, इसलिए तुम बहुत (अधिक) रघुनायक (राम) को छू सकते हो। हे प्रभु, मुझे कृपा करो और मेरी प्रार्थना सुनो, मैं हनुमान तुम्हारे प्रेम में सम्पूर्ण रूप से लिपटा हुआ हूँ।"
इस चौपाई में हनुमान जी की अमूर्त और अजन्मा स्वभाव की चरित्रिता है, और उनकी प्रेमभावना और भक्ति व्यक्त हो रही है।
चौपाई
बार बार नाएसि पद सीसा। बोला बचन जोरि कर कीसा।।
अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता। आसिष तव अमोघ बिख्याता।।79
79इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में

"हनुमान जी बार-बार अपने सिर को प्रणाम करते हुए बोले, 'आपके आदेश के बिना मैं कुछ भी करने के योग्य नहीं हूँ। अब मैंने आपके आदेश को पूरा कर लिया है, और मैं आपके कृतकृत्य (कार्यों को पूर्ण) हो गया हूँ, माताजी। आपकी अमोघ (अशीर्वाद) अब मेरे ऊपर है और विख्यात हो रही है।"
इस चौपाई में हनुमान जी अपनी माता से आशीर्वाद प्राप्त करके और उनके प्रति श्रद्धाभाव दिखाते हुए अपने कार्यों की पूर्णता का उपयोग करने का भाव प्रकट हो रहा है।
चौपाई
सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा। लागि देखि सुंदर फल रूखा।।
सुनु सुत करहिं बिपिन रखवारी। परम सुभट रजनीचर भारी।।80
80इस चौपाई का भावार्थ (meaning) हिंदी में 

"हे माता, मुझे बहुत भूख लगी है। मैंने देखा है कि यहां एक सुंदर फल रूखा है। मेरे सुने, मैं इस बिपिन (वन) में रखवारी करके तुम्हारे लिए बहुत सुभट रजनीचर (रात्रि के समय) का भारी सेवा करूँगा।"
इस चौपाई में हनुमान जी अपनी माता से खाने के लिए भिक्षाटन कर रहे हैं और उनका समर्पण और प्रेम दिखा रहे हैं।

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