कूर्म द्वादशी 22 जनवरी, 2024 जानें क्यों मनाते हैं कूर्म द्वादशी संपूर्ण जानकारी
कूर्म द्वादशी 22 जनवरी, 2024
कूर्म द्वादशी हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण द्वादशी का दिन होता है। कूर्म द्वादशी पौष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी की तिथि होती है। कूर्म संस्कृत का शब्द है जिसका हिन्दी में अर्थ कछुआ होता है। कूर्म द्वादशी का दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। हिन्दू धर्म में ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने समुंद्र मंथन के लिए कछुए का अवतार लिया था, जो भगवान विष्णु का दूसरा अवतार माना जाता है। कूर्म द्वादशी के दिन भगवान विष्णु के अवतार कछुए की पूजा का विधान होता है। कूर्म द्वादशी के दिन घर में कछुआ लाने को सबसे महत्वपूर्ण बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि चांदी व अष्टधातु का कछुआ घर व दुकान में रखना अति शुभकारी होता है। काले रंग का कछुआ को ओर भी शुभ बताया जाता है, इससे जीवन में हर तरह की तरक्की की संभावना बढ़ती है।
सभी एकादशियों व्रतों की तरह द्वादशी व्रत भी भगवान विष्णु को समर्पित है और हिंदू कैलेंडर के अनुसार एकादशी के एक दिन बाद मनाया जाता है। कूर्म द्वादशी 2022 पौष पुत्रदा एकादशी के एक दिन बाद, शुक्ल पक्ष के दौरान मनाई जाएगी और शुक्रवार, 22 जनवरी, 2024 को पड़ेगी। कूर्म द्वादशी भगवान विष्णु के कूर्म अवतार में पूजा करने का प्रतीक है, जिसका अर्थ है भगवान विष्णु का कछुआ अवतार। समुद्र-मंथन के दौरान, कूर्म कछुए के रूप में भगवान विष्णु का दूसरा अवतार था। ऐसा माना जाता है कि जो भक्त कूर्म द्वादशी व्रत का उपवास करते हैं वे भगवान विष्णु का आशीर्वाद मांगते हैं और मुक्ति और मोक्ष प्राप्त करते हैं।
कूर्म द्वादशी का महत्व
किसी भी तरह के निर्माण संबंधी कार्य के लिए कूर्म जयंती का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है. माना जाता है कि कूर्म द्वादशी का व्रत व पूजन पूरी निष्ठा और पवित्र मन से करने वाले भक्तों के सारे दुख दूर हो जाते हैं और उसे समस्त पापों के दंड से भी मुक्ति मिल जाती है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करता है और उसके जीवन में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है
कूर्म द्वादशी शुभ मुहूर्त
इस वर्ष कूर्म द्वादशी 22 जनवरी, 2024 को मनाई जाएगी। कूर्म द्वादशी आरंभ : 20 जनवरी 2024 को शाम 07 बजकर 26 मिनट पर कूर्म द्वादशी समाप्त : 21 जनवरी 2024 को शाम 07 बजकर 26 मिनट पर
सफला एकादशी हिन्दू पंचांग में महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह एकादशी तिथि के दिन मनाई जाती है और इसे कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में आयोजित किया जाता है।
सफला एकादशी के व्रत में विशिष्ट मंत्रों का जाप किया जाता है जो भगवान विष्णु की प्रसन्नता और कृपा को प्राप्त करने में सहायक होते हैं।
कूर्म द्वादशी पूजा विधि जानिए
- इस व्रत वाले दिन प्रात: जल्दी उठकर स्नान आदि से मुक्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करे। जिसके बाद भगवान सत्यनारायण को जल का अर्घ्य देकर पीपल व तुलसी के वृक्ष में पानी चढ़ाऐ।
- जिसके बाद भगवान विष्णु की वंदना करे और इस व्रत का संकल्प करे।
- अब आपको एक चौकी लेनी होगी जिस पर लाल रंग का वस्त्र बिछाकर भगवान कूर्म की तस्वीर रख देनी है। यदि आपके पास विष्णु के आवतार कूर्म भगवान की मूर्ति नहीं है तो आप भगवान विष्णु की भी रख सकते है।
- इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा जल, फल, पुष्प, नैवेद्य, अक्षत, धूप, दीप, चंदन आदि चढ़ाकर विधिवत रूप से पूजा करे।
- जिसके बाद भगवान की आरती उतारे और प्रसाद चढ़ाऐ
कूर्म द्वादशी की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय जब देवराज इंद्र ने अहंकार में आकर दुर्वासा ऋषि की बहुमूल्य माला का अपमान कर दिया था, तब दुर्वासा ऋषि ने देवराज इंद्र को श्राप दिया, कि वह अपनी सारी शक्तियां और बल खो देंगे और निर्बल हो जाएंगे, जिसका प्रभाव समस्त देवताओ पर भी दिखाई देगा। कुछ समय बाद दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण देवराज इंद्र के साथ-साथ सभी देवताओं ने अपनी शक्तियां खो दीं। इस बात का फायदा उठाकर दैत्यराज बलि ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया और देवताओं को हराकर स्वर्ण पर कब्ज़ा कर लिया। उसके बाद से दैत्यराज बलि का राज तीनों लोकों पर हो गया। इससे हर तरफ हाहाकार मच गया। सभी देवता परेशान होकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे मदद की गुहार लगाई। भगवान विष्णु ने देवताओं की सुन ली और उन्हें अपनी खोई हुई शक्ति वापस पाने का रास्ता दिखाया। भगवान विष्णु ने देवताओं को बताया कि "समुद्र मंथन करके उससे प्राप्त हुए अमृत से सभी देवों की शक्ति उन्हें फिर मिल जायेगी। इस बात को सुन देवता खुश हो गए। परन्तु यह इतना आसान नहीं था, क्योंकि सभी देवता शक्तिहीन हो चुके थे और समुद्र मंथन करना उनके सामर्थ्य में नहीं था।इस समस्या पर भगवान विष्णु ने देवताओं से कहा, कि वह "समुद्र मंथन के बारे में असुरों को बताएं और असुरों को इस मंथन के लिए मनाएं।" अब देवताओं के पास असुरों को मनाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था। तब सभी देवता असुरों को मनाने पहुंचे।
उन्होंने असुरों को समुद्र मंथन के बारे में बताया। यह सुन पहले तो असुरों ने मना कर दिया, लेकिन बाद में अमृत के लालच में आकर उन्होंने समुद्र मंथन के लिए ‘हां’ कह दी। इसके बाद, समुद्र मंथन के लिए देवता और असुर दोनो क्षीर सागर पहुंचे। तब मंथन के लिए मंद्राचल पर्वत को मंथी और वासुकी नाग का रस्सी के रूप में प्रयोग किया। मगर जैसे ही मंथन शुरु हुआ, वैसे ही मंद्राचल पर्वत समुद्र में धसने लगा। पर्वत को धसता देख भगवान विष्णु ने कूर्म यानी कछुए का अवतार धारण किया और मंद्राचल पर्वत को अपने पीठ पर रख लिया। भगवान विष्णु के कूर्म अवतार से ही समुद्र मंथन पूरा हुआ और देवताओं को अमृत की प्राप्ति हुई।समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु के द्वारा लिए कूर्म अवतार की, पौष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को लोग पूजा अर्चना करते हैं और मन चाहा फल प्राप्त करते हैं।
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