जानिए अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के दिन 22 जनवरी 2024 में कूर्म द्वादशी व्रत आयोजन श्री राम शायरी
जानिए अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन
कूर्म द्वादशी व्रत आयोजन श्री राम शायरी
बताया जा रहा है कि 22 जनवरी 2024 को अयोध्या राम मंदिर का उद्घाटन किया जा रहा है।
श्री राम शायरी
गरज उठे गगन सारा समुन्द्र छोड़े अपना किनारा
हिल जाये जहाँ सारा
जब गूंजे जय श्री राम का नारा
श्री राम शायरी
पूरी दुनिया में एक ही नाम
जय श्री राम जय श्री राम
श्री राम शायरी
एक ही नारा एक ही नाम, जय श्री राम जय श्री राम
राज तिलक की करो तैयारी, आ गए है भगवा धारी
जय श्री राम जय श्री राम
श्री राम शायरी
भेज रहे हैं पीले चावल,घर-घर अलख जगाने को,
मंदिर में है प्राण प्रतिष्ठा न्यौता सबको आने को।
जय श्री राम जय श्री राम
22 जनवरी 2024 कूर्म द्वादशी व्रत
हिंदू धर्म में कूर्म द्वादशी को बहुत ही शुभ माना जाता है। कूर्म द्वादशी पौष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मनाई जाती है। वर्ष 2024 में कूर्म द्वादशी 22 जनवरी को मनाई जाएगी।
कूर्म द्वादशी में पूजा
कूर्म द्वादशी के दिन पूरे समर्पण के साथ भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। व्रत करने वाल व्यक्ति को सूर्योदय के समय उठना चाहिए और स्नान करना चाहिए। भगवान विष्णु की एक छोटी मूर्ति व कुछए की प्रतिमा को पूजा स्थल पर रखा जाता है और फल, दीपक और धूप चढ़ाते हैं। इस दिन ’विष्णु सहस्त्रनाम’ और ’नारायण स्तोत्र’ का पाठ करना शुभ माना जाता है।
कुर्मा द्वादशी व्रत 2024
सोमवार, 22 जनवरी 2024
द्वादशी तिथि प्रारंभ : 21 जनवरी 2024 को शाम 07:27 बजे
द्वादशी तिथि समाप्त : 22 जनवरी 2024 को शाम 07 बजकर 52 मिनट पर
कूर्म द्वादशी की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय जब देवराज इंद्र ने अहंकार में आकर दुर्वासा ऋषि की बहुमूल्य माला का अपमान कर दिया था, तब दुर्वासा ऋषि ने देवराज इंद्र को श्राप दिया, कि वह अपनी सारी शक्तियां और बल खो देंगे और निर्बल हो जाएंगे, जिसका प्रभाव समस्त देवताओ पर भी दिखाई देगा। कुछ समय बाद दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण देवराज इंद्र के साथ-साथ सभी देवताओं ने अपनी शक्तियां खो दीं। इस बात का फायदा उठाकर दैत्यराज बलि ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया और देवताओं को हराकर स्वर्ण पर कब्ज़ा कर लिया। उसके बाद से दैत्यराज बलि का राज तीनों लोकों पर हो गया।
इससे हर तरफ हाहाकार मच गया। सभी देवता परेशान होकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे मदद की गुहार लगाई। भगवान विष्णु ने देवताओं की सुन ली और उन्हें अपनी खोई हुई शक्ति वापस पाने का रास्ता दिखाया। भगवान विष्णु ने देवताओं को बताया कि "समुद्र मंथन करके उससे प्राप्त हुए अमृत से सभी देवों की शक्ति उन्हें फिर मिल जायेगी। इस बात को सुन देवता खुश हो गए। परन्तु यह इतना आसान नहीं था, क्योंकि सभी देवता शक्तिहीन हो चुके थे और समुद्र मंथन करना उनके सामर्थ्य में नहीं था।
इस समस्या पर भगवान विष्णु ने देवताओं से कहा, कि वह "समुद्र मंथन के बारे में असुरों को बताएं और असुरों को इस मंथन के लिए मनाएं।" अब देवताओं के पास असुरों को मनाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था। तब सभी देवता असुरों को मनाने पहुंचे।
उन्होंने असुरों को समुद्र मंथन के बारे में बताया। यह सुन पहले तो असुरों ने मना कर दिया, लेकिन बाद में अमृत के लालच में आकर उन्होंने समुद्र मंथन के लिए ‘हां’ कह दी। इसके बाद, समुद्र मंथन के लिए देवता और असुर दोनो क्षीर सागर पहुंचे। तब मंथन के लिए मंद्राचल पर्वत को मंथी और वासुकी नाग का रस्सी के रूप में प्रयोग किया। मगर जैसे ही मंथन शुरु हुआ, वैसे ही मंद्राचल पर्वत समुद्र में धसने लगा। पर्वत को धसता देख भगवान विष्णु ने कूर्म यानी कछुए का अवतार धारण किया और मंद्राचल पर्वत को अपने पीठ पर रख लिया। भगवान विष्णु के कूर्म अवतार से ही समुद्र मंथन पूरा हुआ और देवताओं को अमृत की प्राप्ति हुई।
समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु के द्वारा लिए कूर्म अवतार की, पौष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को लोग पूजा अर्चना करते हैं और मन चाहा फल प्राप्त करते हैं।
कूर्म द्वादशी पूजा विधि
कूर्म द्वादशी को ध्यान से और श्रद्धाभाव से मनाने के लिए पूजा विधि का पालन करे
पूजा सामग्री:
भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र कुमकुम, चंदन, रोली
दीपक और कुंडल फूल, अक्षत (रावण) और धूप
तुलसी के पत्ते पंचामृत (दही, घृत, तैल, शहद, दूध)
पूजा विधि:
शुद्धि करना: पूजा करने से पहले हाथ धोकर शुद्धि करें।
व्रत की संकल्प: सामग्री को सामने रखकर व्रत की संकल्प करें।
भगवान विष्णु की पूजा: भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को साफ करें।
कुमकुम, चंदन, रोली से उनके चिन्हों को लगाएं।
तुलसी के पत्ते और फूलों का अर्पण करें।
पंचामृत से अभिषेक करें।
धूप और दीप पूजन: दूप और दीप से आरती अर्पित करें।
धूप से कमल गेंद में आरती उतारें।
कथा का पाठ: कूर्म अवतार की कथा को श्रवण करें या पढ़ें।
प्रार्थना और आराधना: भगवान के सामने मन की शुद्धि और आत्मनिवेदन से प्रार्थना करें।
मन्त्र जाप और ध्यान में रत रहें।
प्रसाद वितरण: पूजा का प्रसाद तैयार करें और उसे भगवान को अर्पित करें।
व्रत का उपवास:व्रत के दिन उपवास का पालन करें और भगवान की पूजा में लगे रहें।
इस पूजा विधि का पालन करके भक्त अपने दिल से भगवान विष्णु की पूजा कर सकता है और उनकी कृपा को प्राप्त कर सकता है।
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