गणेश अष्टकम | गणेशाष्टकम् - संस्कृत गीतिकाव्य

गणेश अष्टकम | गणेशाष्टकम् - संस्कृत गीतिकाव्य

हे गणेश, जिनका वक्राणु (वक्रदंष्ट्र) बहुत बड़ा है और जो महाकाय (विशाल शरीर) के समान हैं, जिनका प्रकाश सूर्य के कोटि समान है, जो हमेशा समस्त कार्यों में समर्थ हैं, उन सब कार्यों में मेरे लिए विघ्नरहित करो।
जिनके आठ हाथ हैं, जिनका रूप गजानन के समान है, जिनके पेट में लंबी कोटि है, जो विघ्नों को हरने वाले हैं, जो विद्या के अर्थी को बुद्धि प्रदान करने वाले हैं, और जो विनायक हैं। यह गणेश अष्टकम का एक छोटा सा हिस्सा है, पूरा गणेश अष्टकम कई श्लोकों का समृद्ध भविष्य देता है और भगवान गणेश की पूजा के समय इसका पाठ किया जा सकता है।

गणेश अष्टकम | गणेशाष्टकम् - संस्कृत गीतिकाव्य 

श्री गणेशाय नमः। सर्वे उचुः।

यतोऽनन्तशक्तेरनन्ताश्च जीवायतो निर्गुणादप्रमेया गुणास्ते।
यतो भाति सर्वं त्रिधा भेदभिन्नंसदा तं गणेशं नमामो भजामः॥1॥

यतश्चाविरासीज्जगत्सर्वमेतत्तथाऽब्जासनोविश्वगो विश्वगोप्ता।
तथेन्द्रादयो देवसङ्घा मनुष्याःसदा तं गणेशं नमामो भजामः॥2॥

यतो वह्निभानू भवो भूर्जलं चयतः सागराश्चन्द्रमा व्योम वायुः।
यतः स्थावरा जङ्गमा वृक्षसङ्घासदा तं गणेशं नमामो भजामः॥3॥

यतो दानवाः किन्नरा यक्षसङ्घायतश्चारणा वारणाः श्वापदाश्च।
यतः पक्षिकीटा यतो वीरूधश्चसदा तं गणेशं नमामो भजामः॥4॥

यतो बुद्धिरज्ञाननाशो मुमुक्षोर्यतःसम्पदो भक्तसन्तोषिकाः स्युः।
यतो विघ्ननाशो यतः कार्यसिद्धिःसदा तं गणेशं नमामो भजामः॥5॥

यतः पुत्रसम्पद्यतो वाञ्छितार्थोयतोऽभक्तविघ्नास्तथाऽनेकरूपाः।
यतः शोकमोहौ यतः काम एवसदा तं गणेशं नमामो भजामः॥6॥

यतोऽनन्तशक्तिः स शेषो बभूवधराधारणेऽनेकरूपे च शक्तः।
यतोऽनेकधा स्वर्गलोका हि नानासदा तं गणेशं नमामो भजामः॥7॥

यतो वेदवाचो विकुण्ठा मनोभिःसदा नेति नेतीति यत्ता गृणन्ति।
परब्रह्मरूपं चिदानन्दभूतंसदा तं गणेशं नमामो भजामः॥8॥

॥ फल श्रुति ॥ श्रीगणेश उवाच।

पुनरूचे गणाधीशःस्तोत्रमेतत्पठेन्नरः।
त्रिसन्ध्यं त्रिदिनं तस्यसर्वं कार्यं भविष्यति॥9॥

यो जपेदष्टदिवसंश्लोकाष्टकमिदं शुभम्।
अष्टवारं चतुर्थ्यां तुसोऽष्टसिद्धिरवानप्नुयात्॥10॥

यः पठेन्मासमात्रं तुदशवारं दिने दिने।
स मोचयेद्वन्धगतंराजवध्यं न संशयः॥11॥

विद्याकामो लभेद्विद्यांपुत्रार्थी पुत्रमाप्नुयात्।
वाञ्छितांल्लभतेसर्वानेकविंशतिवारतः॥12॥

यो जपेत्परया भक्तयागजाननपरो नरः।
एवमुक्तवा ततोदेवश्चान्तर्धानं गतः प्रभुः॥13॥

॥ इति श्रीगणेशपुराणे उपासनाखण्डे श्रीगणेशाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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