पार्थिव लिंग की श्रेष्ठता तथा महिमा का वर्णन
शिव पुराण विद्येश्वर संहिता का बीसवां अध्याय
पार्थिव लिंग की श्रेष्ठता तथा महिमा का वर्णन करते हुए
सूत जी ने कहा
हे श्रेष्ठ महर्षियो ! वैदिक कर्मों के प्रति श्रद्धाभक्ति रखने वाले मनुष्यों के लिए पार्थिव लिंग पूजा पद्धति ही परम उपयोगी एवं श्रेष्ठ है तथा भोग एवं मोक्ष प्रदान करने वाली है। सर्वप्रथम सूत्रों की विधि से स्नान करें। सांध्योपासना के उपरांत ब्रह्मयज्ञ करें। तत्पश्चात देवताओं, ऋषियों, मनुष्यों और पितरों का तर्पण करें। सब नित्य कर्मों को करके शिव भगवान का स्मरण करते हुए भस्म तथा रुद्राक्ष को धारण करें। फिर पूर्ण भक्ति भावना से पार्थिव लिंग की पूजा अर्चना करें। ऐसा करने से संपूर्ण मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। किसी नदी या तालाब के किनारे, पर्वत पर या जंगल में या शिवालय में अथवा अन्य किसी पवित्र स्थान पर, पार्थिव पूजन करना चाहिए। पवित्र स्थान की मिट्टी से शिवलिंग का निर्माण करना चाहिए। ब्राह्मण श्वेत मिट्टी से, क्षत्रिय लाल मिट्टी से, वैश्य पीली मिट्टी से एवं शूद्र काली मिट्टी से शिवलिंग का निर्माण करें। शिवलिंग हेतु मिट्टी को एकत्र कर उसे गंगाजल से शुद्ध करके धीरे-धीरे उससे लिंग का निर्माण करें तथा इस संसार के सभी भोगों को तथा संसार से मोक्ष प्राप्त करने हेतु पार्थिव लिंग का पूजन भक्तिभावना से करें। सर्वप्रथम 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का उच्चारण करते हुए समस्त पूजन सामग्री को एकत्र कर उसे जल से शुद्ध करें। 'भूरसि' मंत्र द्वारा क्षेत्र की सिद्धि करें। फिर जल का संस्कार करें। स्फटिक शिला का घेरा बनाएं तथा क्षेत्र शुद्धि करें। तत्पश्चात शिवलिंग की प्रतिष्ठा करें तथा वैदिक रीति से पूजा-उपासना करें।
Description of superiority and glory of earthly gender |
शिवलिंग की प्रतिष्ठा करें तथा वैदिक रीति से पूजा-उपासना
भगवान शिव का आवाहन करें तथा आसन पर उन्हें स्थापित करके उनके समक्ष आसन पर स्वयं बैठ जाएं। शिवलिंग को दूध, दही और घी से स्नान कराएं, ऋचाओं से मधु (शहद) और शक्कर से स्नान कराएं।
ये पांचों वस्तुएं
दूध,
दही,
घी,
शहद और शक्कर 'पंचामृत' कहलाते हैं। इन्हीं वस्तुओं से लिंग को स्नान कराएं। तदोपरांत उत्तरीय धारण कराएं। चारों ऋचाओं को पढ़कर भगवान शिव को वस्त्र और यज्ञोपवीत समर्पित करें तथा सुगंधित चंदन एवं रोली चढ़ाएं तथा अक्षत, फूल और बेलपत्र अर्पित करें। नैवेद्य और फल अर्पित कर ग्यारह रुद्रों का पूजन करें तथा पूजन कर्म करने वाले पुरोहित को दक्षिणा दें। हर, महेश्वर, शंभु, शूल-पाणि, पिनाकधारी, शिव, पशुपति, महादेव, गिरिजापति आदि नामों से पार्थिव लिंग का पूजन करें तथा आरती करें। शिवलिंग की परिक्रमा करें तथा भगवान शिव को साष्टांग प्रणाम करें। पंचाक्षर मंत्र तथा सोलह उपचारों से विधिवत पूजन करें। इस प्रकार पूजन करते हुए भगवान शिव से इस प्रकार प्रार्थना करें- सबको सुख-समृद्धि प्रदान करने वाले हे कृपानिधान, भूतनाथ शिव! आप मेरे प्राणों में बसते हैं। आपके गुण ही मेरे प्राण हैं। आप मेरे सबकुछ हैं। मेरा मन सदैव आपका ही चिंतन करता है। हे प्रभु! यदि मैंने कभी भूलवश अथवा जानबूझकर भक्तिपूर्वक आपका पूजन किया हो तो वह सफल हो जाए। मैं महापापी हूं, पतित हूं जबकि आप पतितपावन हैं। है महादेव सदाशिव! आप वेदों, पुराणों और शास्त्रों के सिद्धांतों के परम ज्ञाता हैं। अब तक कोई भी आपको पूर्ण रूप से नहीं जानता है फिर भला मुझ जैसा पापी मनुष्य आपको कैसे जान सकता है? हे महेश्वर ! मैं पूर्ण रूप से आपके अधीन हूं। हे प्रभु! कृपा कर मुझ पर प्रसन्न होइए और मेरी रक्षा कीजिए। इस प्रकार प्रार्थना करने के बाद भगवान शिव को फूल व अक्षत चढ़ाकर प्रणाम कर आदरपूर्वक विसर्जन करें। हे मुनियो ! इस प्रकार की गई भगवान शिव की पूजा, भोग और मोक्ष प्रदान करने वाली एवं भक्तिभाव बढ़ाने वाली है।
शिव पुराण विद्येश्वर संहिता का बीसवां अध्याय समाप्त
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