अयोध्याकाण्ड अर्थ सहित

अयोध्याकाण्ड अर्थ सहित  Ayodhya incident with meaning

चौपाई
अमर नाग किंनर दिसिपाला। चित्रकूट आए तेहि काला।।
राम प्रनामु कीन्ह सब काहू। मुदित देव लहि लोचन लाहू।।
बरषि सुमन कह देव समाजू। नाथ सनाथ भए हम आजू।।
करि बिनती दुख दुसह सुनाए। हरषित निज निज सदन सिधाए।।
चित्रकूट रघुनंदनु छाए। समाचार सुनि सुनि मुनि आए।।
आवत देखि मुदित मुनिबृंदा। कीन्ह दंडवत रघुकुल चंदा।।
मुनि रघुबरहि लाइ उर लेहीं। सुफल होन हित आसिष देहीं।।
सिय सौमित्र राम छबि देखहिं। साधन सकल सफल करि लेखहिं।।
यह चौपाई तुलसीदास जी की 'रामचरितमानस' से ली गई है और इसमें चित्रकूट पर्वत, भगवान राम के आगमन और मुनियों की आनंदवन का वर्णन किया गया है।
चौपाई का अर्थ है:
"अमर नाग, किन्नर, और दिसिपाला (देवताओं के नायक) चित्रकूट पर्वत की दिशा में आए थे। उन्होंने राम को प्रणाम किया और हर्षित देवताओं ने अपनी आँखों का रक्त मिश्रित किया। देवताओं ने फूलों की वर्षा करके देवता सभा को सुखद बनाया। उनका नाथ और सनाथ आज हमारे साथ हो गए। वे दुःखों को सुनकर संतोषित हो गए और अपने घर में सुख और समृद्धि को प्राप्त किया। रामचंद्र ने चित्रकूट पर्वत को धारण किया और सुनकर मुनियों ने आकर उन्हें देखा। मुनियों ने देखकर खुश होकर रघुकुल चंद्रमा की ओर बढ़ावा दिया। मुनियों ने रामचंद्र को अपने हृदय में स्थान दिया और उनसे हितकारी आशीर्वाद प्राप्त किया। मुनियों ने सीता, लक्ष्मण और राम की मूर्ति को देखकर सभी साधनाओं को सफल कर दिखाया।"
यह चौपाई चित्रकूट पर्वत के महत्त्व, भगवान राम के आगमन की खुशी, और मुनियों की आनंदित भवन को वर्णित करती है।
दोहा-
जथाजोग सनमानि प्रभु बिदा किए मुनिबृंद।
करहि जोग जप जाग तप निज आश्रमन्हि सुछंद।।134।।
इस दोहे का अर्थ है - "जैसे वह भगवान ने अपने संतों की प्रसन्नता के लिए ज्ञान और भक्ति की प्राप्ति की, उसी प्रकार साधक अपने आश्रम में ध्यान, जागरण, और तपस्या करते हैं।"
इस दोहे में साधक को अपने आश्रम में ध्यान और तपस्या करते हुए स्वयं का समर्पण करते हुए उसके उद्देश्य की प्राप्ति के लिए समर्पित होने की महत्ता बताई गई है।
चौपाई
यह सुधि कोल किरातन्ह पाई। हरषे जनु नव निधि घर आई।।
कंद मूल फल भरि भरि दोना। चले रंक जनु लूटन सोना।।
तिन्ह महँ जिन्ह देखे दोउ भ्राता। अपर तिन्हहि पूँछहि मगु जाता।।
कहत सुनत रघुबीर निकाई। आइ सबन्हि देखे रघुराई।।
करहिं जोहारु भेंट धरि आगे। प्रभुहि बिलोकहिं अति अनुरागे।।
चित्र लिखे जनु जहँ तहँ ठाढ़े। पुलक सरीर नयन जल बाढ़े।।
राम सनेह मगन सब जाने। कहि प्रिय बचन सकल सनमाने।।
प्रभुहि जोहारि बहोरि बहोरी। बचन बिनीत कहहिं कर जोरी।।
यह चौपाई तुलसीदास जी के 'रामचरितमानस' से है और इसमें भगवान राम के आगमन की सुखद सूचना और भक्तों के उनके दर्शन के अनुराग से भरे अनुभव का वर्णन किया गया है।
चौपाई का अर्थ है:
"इस सूचना को सुनकर लोगों ने खुशी में नवीन समृद्धि को अपने घर में आने पाया। सबने लकड़ी, जड़ें, और फलों से भरे दोने लेकर राम के आगमन में लूट की। तीनों जिनको देखने दो भाई थे, और एक उन्हीं ने पूछा कि दूसरे को कहाँ जाता है। रघुवीर भगवान ने सभी को सम्मान दिखाकर बाहर निकले, उन्होंने सबको देखा। वे सभी ने नमस्कार किया और आगे आकर भेंट की, उनको देखकर भगवान राम ने बहुत प्रेम से देखा। जहाँ जहाँ भगवान की चित्रलेखना थी, वहाँ उनके शरीर में रोमांच और आंसू बह गए। सब भक्त राम के प्रेम में लीन थे, उन्होंने सबसे प्रिय बातें सुनाई। भगवान ने हर किसी को नमस्कार किया, बिनती के बाद उन्होंने बहुत बहुत जोर से बिनती की।"
इस चौपाई में भगवान राम के आगमन के समाचार के बाद भक्तों के प्रेमभाव से उनका स्वागत किया गया था।
दोहा-
अब हम नाथ सनाथ सब भए देखि प्रभु पाय।
भाग हमारे आगमनु राउर कोसलराय।।135।।
इस दोहे का अर्थ है - "अब हम सभी नाथ और सनाथ बन गए हैं क्योंकि हमने प्रभु राम को देख लिया है। हमारा भाग बहुत शुभ है क्योंकि हमने कोसलेश्वर रामजी के आगमन को देखा।"
इस दोहे में श्रद्धालु बताते हैं कि भगवान राम के आगमन को देखने से उनका जीवन पूर्ण हो गया है और वे सभी कोसलेश्वर राम की कृपा से धन्य मानते हैं।
चौपाई
धन्य भूमि बन पंथ पहारा। जहँ जहँ नाथ पाउ तुम्ह धारा।।
धन्य बिहग मृग काननचारी। सफल जनम भए तुम्हहि निहारी।।
हम सब धन्य सहित परिवारा। दीख दरसु भरि नयन तुम्हारा।।
कीन्ह बासु भल ठाउँ बिचारी। इहाँ सकल रितु रहब सुखारी।।
हम सब भाँति करब सेवकाई। करि केहरि अहि बाघ बराई।।
बन बेहड़ गिरि कंदर खोहा। सब हमार प्रभु पग पग जोहा।।
तहँ तहँ तुम्हहि अहेर खेलाउब। सर निरझर जलठाउँ देखाउब।।
हम सेवक परिवार समेता। नाथ न सकुचब आयसु देता।।
यह चौपाई भगवान श्रीराम की महिमा और उनके भक्तों के सेवाभाव को व्यक्त करती है। यह चौपाई उनके भक्तों द्वारा उनकी पूजा और सेवा की महिमा को दर्शाती है।
इस चौपाई का अर्थ है:
"धन्य है वह धरती जिसमें तुम्हारे पथ की धारा है, जहाँ-जहाँ नाथ तुम्हारी प्रतिष्ठा करते हैं। धन्य हैं वह पक्षी, वन्य जीव, जो तुम्हें देखकर सफल हो जाते हैं। हम सभी, समेत अपने परिवार सहित, धन्य हैं क्योंकि हमने तुम्हें देखा है, और हमारे नयन तुम्हें भर दिए हैं। तुमने यहाँ सभी जगहों पर अपना वास स्थापित किया है, यहाँ सभी ऋतुओं में सुख और आराम है। हम सब तरह-तरह की सेवाओं का कार्य करते हैं, और हमारी सेवा में तुम बाघ और बेर के वन में भी आते हो। जंगल, पहाड़, गिरिजा और खोह में तुम्हारे पावन पाव नजर आते हैं। हम सब सेवक तुम्हारे साथ हैं, और तुम्हें किसी भी चीज की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि तुम सबकुछ देते हो।"
यह चौपाई भगवान श्रीराम के भक्तों की भक्ति और सेवा भावना को प्रकट करती है, जो उन्हें हर स्थिति में उनके प्रिय भगवान की सेवा में लगे रहने की प्रेरणा देती है।
दोहा-
बेद बचन मुनि मन अगम ते प्रभु करुना ऐन।
बचन किरातन्ह के सुनत जिमि पितु बालक बैन।।136।।
इस दोहे का अर्थ है - "मुनियों के मन में वेदों के शब्दों से अगम्य तत्त्व की तुलना में भगवान की कृपा की कहानी होती है। उनके वचन सुनना किरतन (भजन) के समान होता है, जैसे पिता अपने बालक की कहानियां सुनते हैं।"
इस दोहे में उच्च गुणों की गाथा किया गया है और यह दर्शाता है कि भगवान के वचनों को सुनना उनके भक्तों के लिए कितना महत्त्वपूर्ण होता है।
चौपाई
रामहि केवल प्रेमु पिआरा। जानि लेउ जो जाननिहारा।।
राम सकल बनचर तब तोषे। कहि मृदु बचन प्रेम परिपोषे।।
बिदा किए सिर नाइ सिधाए। प्रभु गुन कहत सुनत घर आए।।
एहि बिधि सिय समेत दोउ भाई। बसहिं बिपिन सुर मुनि सुखदाई।।
जब ते आइ रहे रघुनायकु। तब तें भयउ बनु मंगलदायकु।।
फूलहिं फलहिं बिटप बिधि नाना।।मंजु बलित बर बेलि बिताना।।
सुरतरु सरिस सुभायँ सुहाए। मनहुँ बिबुध बन परिहरि आए।।
गंज मंजुतर मधुकर श्रेनी। त्रिबिध बयारि बहइ सुख देनी।।
यह चौपाई भगवान राम और उनके भक्त हनुमान जी की महिमा का वर्णन करती है। यह चौपाई राम भक्ति और भगवान के गुणों को व्यक्त करती है।
चौपाई का अर्थ है:
"राम का प्रेम केवल प्रिय है। जो जानने वाला उसे समझ ले। राम सभी बनवासी तब प्रसन्न होते हैं, जब उन्हें प्रेम भरे शब्दों में बचन सुनाये जाते हैं। अपना सिर झुकाकर विदा किया, उन्होंने गुणगान सुनते हुए घर लौटाया। इसी प्रकार सीता जी समेत दोनों भाई, बिपिन, सुर, मुनि के साथ सुखद तरीके से रहते थे। जब से रामचन्द्र आए हैं, तब से जंगल में सुख और मंगल की प्राप्ति हुई है। फूलों और फलों को हर तरह से चाटते हुए, मनोहारी बालक बड़े बलिदान से जीवन बिताते हैं। सुर, तरु, सरिस और अन्य वृक्ष सब सुंदरता और सुख का स्रोत बन गए हैं। मधुर मधुकर समूह, जो तीन प्रकार के प्रेम और सुख को लाते हैं, वह गंज के नगर में रहकर सुख प्रदान करते हैं।"
इस चौपाई में भक्ति और प्रेम की महिमा, साथ ही भगवान राम के अद्भुत गुणों की महिमा को व्यक्त किया गया है।
दोहा-
नीलकंठ कलकंठ सुक चातक चक्क चकोर।
भाँति भाँति बोलहिं बिहग श्रवन सुखद चित चोर।।137।।
इस दोहे का अर्थ है - "श्रीराम के गले में नीली और कली रंग की कांठन हैं, वे सुंदर बोलते हैं जैसे चातक पक्षी, चकोर और भाग्यशाली बिहारी भगवान राम के गुणों की महिमा गाते हैं और उनके श्रवण सुखद मन को चोरी कर लेते हैं।"
यह दोहा रामचरितमानस में भगवान राम के रूप, रंग और उनकी सुंदरता को स्तुति करता है। इसमें भगवान के गुणों की सजीव वर्णन किया गया है जो प्राकृतिक सौंदर्य और प्रेम का प्रतीक हैं।
चौपाई
केरि केहरि कपि कोल कुरंगा। बिगतबैर बिचरहिं सब संगा।।
फिरत अहेर राम छबि देखी। होहिं मुदित मृगबंद बिसेषी।।
बिबुध बिपिन जहँ लगि जग माहीं। देखि राम बनु सकल सिहाहीं।।
सुरसरि सरसइ दिनकर कन्या। मेकलसुता गोदावरि धन्या।।
सब सर सिंधु नदी नद नाना। मंदाकिनि कर करहिं बखाना।।
उदय अस्त गिरि अरु कैलासू। मंदर मेरु सकल सुरबासू।।
सैल हिमाचल आदिक जेते। चित्रकूट जसु गावहिं तेते।।
बिंधि मुदित मन सुखु न समाई। श्रम बिनु बिपुल बड़ाई पाई।।
यह चौपाई भगवान राम के दर्शन के महत्त्व को बयान करती है। यहाँ पर राम भक्तों और पशुओं के प्रति भगवान की कृपा का वर्णन किया गया है।
इस चौपाई का अर्थ है:
"भेड़ी, केवल बकरी, वानर, हिरण और अन्य सभी पशुओं के साथ-साथ बिगड़े हुए संगी भी घूमते हैं। रामचंद्र भगवान की छवि देखने के बाद पशु भी खुश होकर घूमते हैं। जहाँ भी बुद्धिमान और वन में वस्त्रित जीव रहते हैं, वहाँ उन्हें रामचंद्र बिना अच्छा नहीं लगता। सूर्य, सरस्वती नदी, मेकला के बाल, गोदावरी, सर सिंधु और अनेक अन्य नदियाँ भी मंदाकिनी के साथ उनका गुणगान करती हैं। सूर्योदय, हिमाचल पर्वत और अन्य स्थान जहाँ सुंदर प्राकृतिक दृश्य होते हैं, वहाँ जैसा की चित्रकूट में होता है, वहाँ पर्वत, मेरु पर्वत और समस्त देवताओं की वास स्थली होती है। वहाँ भेड़-बकरी, पशु और अन्य जीव रामचंद्र की छवि को देखकर प्रसन्नता और सुख अनुभव करते हैं, और उन्हें श्रम के बिना बड़ी प्रशंसा प्राप्त होती है।"
यहाँ बताया गया है कि भगवान राम की छवि के दर्शन से ही सभी प्राणी खुश होते हैं और सुख प्राप्त करते हैं। उनकी छवि के दर्शन से ही सभी वस्तुएं सुंदरता और सुख का आनंद लेती हैं।
दोहा-
चित्रकूट के बिहग मृग बेलि बिटप तृन जाति।
पुन्य पुंज सब धन्य अस कहहिं देव दिन राति।।138।।
इस दोहे का अर्थ है - "चित्रकूट में रहने वाले पक्षी, मृग, पेड़-पौधों और घास की जाति के सभी प्राणी पुण्य के समूह में धन्य माने जाते हैं। देवताओं ने दिन और रात्रि में भी इस स्थान को प्रशंसा की है।"
चित्रकूट का स्थानिक महत्त्व यहाँ बताया गया है कि वहां के सभी प्राणी पुण्यमय होते हैं और वहां के तीर्थ को देवताओं ने बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना है।
चौपाई
नयनवंत रघुबरहि बिलोकी। पाइ जनम फल होहिं बिसोकी।।
परसि चरन रज अचर सुखारी। भए परम पद के अधिकारी।।
सो बनु सैलु सुभायँ सुहावन। मंगलमय अति पावन पावन।।
महिमा कहिअ कवनि बिधि तासू। सुखसागर जहँ कीन्ह निवासू।।
पय पयोधि तजि अवध बिहाई। जहँ सिय लखनु रामु रहे आई।।
कहि न सकहिं सुषमा जसि कानन। जौं सत सहस होंहिं सहसानन।।
सो मैं बरनि कहौं बिधि केहीं। डाबर कमठ कि मंदर लेहीं।।
सेवहिं लखनु करम मन बानी। जाइ न सीलु सनेहु बखानी।।
यह चौपाई भगवान राम और माता सीता के पवित्र स्थान अवध को व्याख्यान करती है। यहाँ बताया गया है कि अवध में रहते हुए राम, सीता और लक्ष्मण की महिमा को किस प्रकार से कवि ने व्याख्यान किया है।
इस चौपाई का अर्थ है: "राम भगवान को देखकर जन्म सफल हो जाता है। उनके पादों का राजसुख से भी अधिक सुखद होता है। वे उस बन (अवध) को सुंदरता से सजाते हैं, जो बहुत ही मंगलमय और पवित्र होता है। उनकी महिमा को कौन विवेकी कवि किस प्रकार से व्यक्त कर सकता है? वहाँ जहां सीता, लक्ष्मण और राम ने निवास किया था, वह स्थान एक सुख का सागर बन गया था। जो तात्पर्य इसे समझने की कोई शक्ति नहीं थी।"
यहाँ कवि बताने की कोशिश कर रहे हैं कि वे उस अद्भुत स्थान (अवध) की सुंदरता को किस प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं, जहां सीता, राम और लक्ष्मण ने अपने जीवन का समय व्यतीत किया था। इस स्थान की सुंदरता को कवि बयां करने में असमर्थ हैं, जैसे कि डाबर का कमठ या मंदर का अर्थ है कि वे सुंदरता को व्यक्त करने में सक्षम नहीं हैं। वे लोग सीता के सन्देश का सेवन करते हैं, परन्तु उसके बिना उनकी बात नहीं समझते।"
दोहा-
छिनु छिनु लखि सिय राम पद जानि आपु पर नेहु।
करत न सपनेहुँ लखनु चितु बंधु मातु पितु गेहु।।139।।
इस दोहे में दोहा स्थानीय लोगों के भावनात्मक संबंधों को व्यक्त करता है। यह कवि सीता और राम के प्रति उनकी अद्भुत प्रेम भावना को बयां करते हैं।
"छिन-छिन सीता और राम के पादों को देखकर, मैंने खुद को उनके प्यार में लिया है। लखन बंधु, माता, पिता और घर के लोग भी उनके प्यार के समान प्यार नहीं करते हैं।"
चौपाई
राम संग सिय रहति सुखारी। पुर परिजन गृह सुरति बिसारी।।
छिनु छिनु पिय बिधु बदनु निहारी। प्रमुदित मनहुँ चकोरकुमारी।।
नाह नेहु नित बढ़त बिलोकी। हरषित रहति दिवस जिमि कोकी।।
सिय मनु राम चरन अनुरागा। अवध सहस सम बनु प्रिय लागा।।
परनकुटी प्रिय प्रियतम संगा। प्रिय परिवारु कुरंग बिहंगा।।
सासु ससुर सम मुनितिय मुनिबर। असनु अमिअ सम कंद मूल फर।।
नाथ साथ साँथरी सुहाई। मयन सयन सय सम सुखदाई।।
लोकप होहिं बिलोकत जासू। तेहि कि मोहि सक बिषय बिलासू।।
यह दोहे तुलसीदासजी के "रामचरितमानस" से हैं। इनका अर्थ हिंदी में इस प्रकार है:
"राम संग सीता जी खुशियों के साथ रहती हैं, परिवार और घर को भूल गई हैं। हर पल उनकी आंखों में राम का दर्शन करने का आनंद होता है, जैसे चकोर पक्षी को होता है। उनका प्यार दिन-प्रतिदिन बढ़ता है, वे हर दिन हर्षित रहती हैं जैसे कोयल। सीता जी का मन राम के पादों में लगाव है, वे अवध के जंगल में राम से समान प्रिय लगती हैं। पर्णकुटी में वे प्रियतम के साथ रहती हैं, वे प्रिय जनों के साथ हंसरी और बिलोंगनी होती हैं। सास-ससुर, समाने रहने वाले मुनियों की सभा, चूल्हा और मूल-फल के साथ उनका व्यापार। राम के साथ रहना ही सबसे बड़ा सुख है, वह लोग मुझे देखते हैं जैसे कि मैं भी उनके विषय में भोगों का आनंद लेता हूं।"
दोहा-
सुमिरत रामहि तजहिं जन तृन सम बिषय बिलासु।
रामप्रिया जग जननि सिय कछु न आचरजु तासु।।140।।
इसका अर्थ है:

"राम का स्मरण करते समय मनुष्य को समझना चाहिए कि संसार के सुख-संग्रह में जैसे ग्वालियर में छोटा सा घास भी कितना ही महत्त्व नहीं रखता। सीताजी के प्रिय प्रेमी राम की प्रेमिका जगती है, लेकिन उनको इस बात का अजीबोगरीब लगता है कि वे संसारिक भोगों में कितना ही आसक्त हैं।"
यह दोहा सार्थक उपदेश देता है कि भगवान के स्मरण में रहते हुए संसारिक भोगों में आसक्ति नहीं रखनी चाहिए। इसका मूल संदेश है कि भगवान की भक्ति में जीवन को संतुष्ट रहना चाहिए और भगवान के प्रेम में ही संपूर्ण सुख मिलता है।

टिप्पणियाँ