अयोध्याकाण्ड अर्थ सहित मासपारायण, सोलहवाँ विश्राम
चौपाई
सीता लखन सहित रघुराई, गाँव निकट जब निकसहिं जाई ||
सुनि सब बाल बृद्ध नर नारी, चलहिं तुरत गृहकाजु बिसारी ||
राम लखन सिय रूप निहारी, पाइ नयनफलु होहिं सुखारी ||
सजल बिलोचन पुलक सरीरा, सब भए मगन देखि दोउ बीरा ||
बरनि न जाइ दसा तिन्ह केरी, लहि जनु रंकन्ह सुरमनि ढेरी ||
एकन्ह एक बोलि सिख देहीं, लोचन लाहु लेहु छन एहीं ||
रामहि देखि एक अनुरागे, चितवत चले जाहिं सँग लागे ||
एक नयन मग छबि उर आनी, होहिं सिथिल तन मन बर बानी ||
इसका अर्थ हैजब सीता, लक्ष्मण और श्रीराम गाँव के निकट जा रहे थे, तो सुनकर सभी बच्चे, बड़े और बूढ़े लोग, नर-नारी, जल्दी से घर के कामों को भूलकर दौड़ गए। वे सब लोग श्रीराम, सीता और लक्ष्मण का रूप देखकर आंखों का फल पाने को सुखी हो गए। उनकी दृष्टि को देखकर उनके शरीर में ताजगी और पुलकित होती है। दोनों भाई उनमें डूबे हुए नजर आते हैं। उनकी दशा को वर्णन नहीं किया जा सकता, सुंदर वर्णन करने से भी सुंदर लगते हैं। श्रीराम ने एक से एक वाणी में उन्हें सीख दी, जिससे उनकी आँखों से आँसू टपकने लगे। श्रीराम को देखकर उनमें एक अनुराग उत्पन्न हुआ और वे सब लोग उनके साथ जाने को बेहद उत्सुक हो गए। एक नजर में श्रीराम की छवि उनके मन में बैठ गई, और उनके शरीर और मन बहुत शांत और संतुलित हो गए।"
दोहा
एक देखिं बट छाँह भलि डासि मृदुल तृन पात,
कहहिं गवाँइअ छिनुकु श्रमु गवनब अबहिं कि प्रात ||११४ ||
इस दोहे काअर्थ है"जब एक व्यक्ति एक बूँद जल को देखकर भी वह मृदुल घास को भी गिराने में अपना काम नहीं छोड़ता है, तो हमें यह याद रखना चाहिए कि कोई काम अत्यंत छोटा या छिन्न हो, उसमें भी अबला मनुष्य अधिकतर प्रयत्न नहीं करता है।"
चौपाई
एक कलस भरि आनहिं पानी, अँचइअ नाथ कहहिं मृदु बानी ||
सुनि प्रिय बचन प्रीति अति देखी, राम कृपाल सुसील बिसेषी ||
जानी श्रमित सीय मन माहीं, घरिक बिलंबु कीन्ह बट छाहीं ||
मुदित नारि नर देखहिं सोभा, रूप अनूप नयन मनु लोभा ||
एकटक सब सोहहिं चहुँ ओरा, रामचंद्र मुख चंद चकोरा ||
तरुन तमाल बरन तनु सोहा, देखत कोटि मदन मनु मोहा ||
दामिनि बरन लखन सुठि नीके, नख सिख सुभग भावते जी के ||
मुनिपट कटिन्ह कसें तूनीरा, सोहहिं कर कमलिनि धनु तीरा ||
चौपाई का अर्थ है"एक कलस भरकर आने वाला पानी, भीम बने श्रीरामजी को नमस्कार कहता है, और वह बातें मृदु ध्वनि में कहता है। सीता माता ने उनकी वचनों को सुनकर बहुत प्रेम से उन्हें देखा, रामचंद्रजी कृपाशील हैं और विशेष हैं। उन्होंने मन में सीताजी के लिए कठिन काम किया और घर को बनाने में बिलंब किया। जब नारी-पुरुष उन्हें खुशी से देखते हैं, तो उनकी शोभा बढ़ जाती है, उनकी सुन्दरता और अनूप रूप उनके मन को आकर्षित करते हैं। वे चारों ओर से भगवान रामचंद्र जी के मुख को देखने में परमात्मा की प्रतिबिम्बित चकोर की तरह लोगों को सुंदर लगते हैं। उनका तन तमाल और रंग की दृष्टि से भी सुन्दर होता है, और उन्हें देखते ही कोटि मदन (कामदेव) देवता का मन मोह जाता है। सीताजी का नख सीधा और सुन्दर है, और उनकी भावनाओं में भी सुंदरता है। अपनी कटरी को मुनिपट (मुनियों की कटरी) की तरह कसने वाले भगवान रामचंद्र जी की धनुष (धनुष्य) भी सुंदर है और उसमें कमल की तरह तीर है।"
यह चौपाई भगवान श्रीरामजी की महिमा, रूप, और उनकी पूज्यता को वर्णित करती है, जो उनके भक्त तुलसीदास जी के द्वारा उनके अनुभवों के माध्यम से व्यक्त की गई है।
दोहा
जटा मुकुट सीसनि सुभग उर भुज नयन बिसाल,
सरद परब बिधु बदन बर लसत स्वेद कन जाल ||११५ ||
इस दोहे काअर्थ हैभगवान रामचंद्रजी के बाल, मुकुट, सिर, सुन्दर उर, भुजा, और विशाल नयन, सुंदर बदन, श्वेत स्वेद और कानों में बालों का जाल बहुत ही चमकदार और सुंदर हैं।"
यहां, तुलसीदास जी ने भगवान रामचंद्रजी के सुंदर रूप का माननीय वर्णन किया है, जो उनके भक्तों को आकर्षित करता है।
चौपाई
बरनि न जाइ मनोहर जोरी, सोभा बहुत थोरि मति मोरी ||
राम लखन सिय सुंदरताई, सब चितवहिं चित मन मति लाई ||
थके नारि नर प्रेम पिआसे, मनहुँ मृगी मृग देखि दिआ से ||
सीय समीप ग्रामतिय जाहीं, पूँछत अति सनेहँ सकुचाहीं ||
बार बार सब लागहिं पाएँ, कहहिं बचन मृदु सरल सुभाएँ ||
राजकुमारि बिनय हम करहीं, तिय सुभायँ कछु पूँछत डरहीं,
स्वामिनि अबिनय छमबि हमारी, बिलगु न मानब जानि गवाँरी ||
राजकुअँर दोउ सहज सलोने, इन्ह तें लही दुति मरकत सोने ||
चौपाई का अर्थ है"मनोहर जोड़ी की सुंदरता को बर्नन नहीं किया जा सकता, मेरी मति कमजोर है, जिससे उनकी शोभा को थोड़ा ही समझ सकता हूँ। राम, लक्ष्मण और सीता की सुंदरता को सभी चित्तरथ मन, बुद्धि और मन लगाकर चिताते हैं। नारि और पुरुष प्रेम की प्यासे होकर थक जाते हैं, जैसे मृग मध्याह्न में जल पीने की प्यास से थक जाते हैं। सीता के निकट जाने के लिए ग्रामवासियों को बहुत सन्न्देह होता है, वे बहुत ज्यादा प्यार और इच्छा से पूछते हैं। सभी बार-बार उन्हें देखने का प्रयास करते हैं और मृदु और सरल भाषा में उन्हें वाहवाही देते हैं। हम राजकुमारी सीता के समक्ष विनय करते हैं, लेकिन वह थोड़ी सी भी पूछत डरती हैं, हमारी बिनय और विनम्रता को न स्वीकारती है, और गवाँरी बनी रहती हैं। दोनों राजकुमार सहज और सुंदर हैं, उन दोनों ने मिलकर मरकत और सोने से युक्त जोड़ी पहनी है।"
यह चौपाई भगवान राम, सीता और लक्ष्मण की सुंदरता, उनकी विशेषता और उनकी महिमा को बयां करती है।
दोहा
स्यामल गौर किसोर बर सुंदर सुषमा ऐन,
सरद सर्बरीनाथ मुखु सरद सरोरुह नैन ||११६ ||
इस दोहे का अर्थ है "श्यामल रंग का और गौर रंग के किशोर, सुषमा से सुंदर हैं, सर्वरीनाथ, सभी की आश्रयदाता हैं, उनके मुख का सौन्दर्य और नेत्रों की सुंदरता अत्यंत अलौकिक है।"
यहां तुलसीदास जी ने भगवान कृष्ण की सुंदरता, उनके रंग, आकर्षण, और मुखर सौन्दर्य का वर्णन किया है।
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