श्री राम मंदिर त्रिप्रयार की कथा

श्री राम मंदिर त्रिप्रयार की कथा Story of Shri Ram Temple Triprayar

त्रिप्रयार श्री राम मंदिर की कथा बहुत महत्त्वपूर्ण है। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण हनुमानजी ने किया था। कथा के अनुसार, हनुमानजी एक स्थानीय निवासी थे और उन्हें श्री राम और सीता माता की भक्ति थी।
एक दिन, हनुमानजी ने देवी सीता के चावल के ढेर से बनाया हुआ एक शिवलिंग को बड़े प्यार से चुम्बन दिया। इससे शिवजी को चोट आई और उन्होंने हनुमानजी से छलकर माफी मांगी। हनुमानजी ने शिवजी को अपनी असमझ की वजह से माफ कर दिया। 
इसके बाद, हनुमानजी ने श्री राम और सीता माता से प्राप्त आज्ञा के अनुसार त्रिप्रयार में बसे एक बड़े वृक्ष को उखाड़ दिया और मंदिर का निर्माण शुरू किया। इस मंदिर में श्री राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमानजी की मूर्तियाँ स्थापित की गईं और यहां पर प्रतिदिन पूजा-अर्चना की जाती है।
त्रिप्रयार श्री राम मंदिर की यह कथा लोगों में भक्ति और आध्यात्मिकता का भाव जगाती है।

त्रिप्रयार श्री राम मंदिर स्नेह तीरम

केरल में  गर्मी से बचने के लिए हम बच्चों के साथ पहाड़ियों की सैर में निकल पड़े थे जैसा पिछले पोस्ट “केरल में मस्ती भरी एक शाम”  में बताया था.  दूसरे  दिन सुबह होते ही चिल्हर पार्टी,  शाम फिर कहीं बाहर जाने के लिए उतावली थी. रात हमें बताया गया था कि हमारी माताराम इस तरह हम लोगों के उपनयन संस्कार के पूर्व बाहर जाने पर नाखुश थी. वह चाहती  थीं कि सभी संस्कार सही सलामत निपटाया जावे फिर जहाँ जाना हो जावें. हम सब के पास समय बहुत कम था इसलिए उपलब्ध समय का सदुपयोग करना चाह रहे थे. हमने बच्चों से कहा कि जावो पहले दादी अम्मा को पटाओ. नुस्खा भी बता दिया. कहना “त्रिप्रयार” मंदिर जायेंगे और यह भी कह देना कि दर्शन के पहले समुद्र में नहा कर पवित्र भी हो लेंगे. मंदिर जाने के नाम पर तो अब किसी रोक टोक की गुंजाइश नहीं रही. वैसे पहाड़ों से वापस आकर समुद्र तट चलने का सुझाव हमारी भांजी का था. नाम भी इठलाते हुए बताया था “स्नेह तीरम“. दो दो गाड़ियों को ले चलने के बदले हमारे सबसे छोटे भाई रमेश ने एक बड़ी गाडी की व्यवस्था करवा दी. वह स्वयं नहीं आया क्योंकि उसीके बालक का उपनयन होना  था. पिता तथा पुत्र का घर से बाहर जाना प्रतिबंधित था.
गाड़ी में कुल १० लोग समां गए और फिर निकल पड़े  “त्रिप्रयार” के लिए जो हमारे घर से पश्चिम की ओर २५ किलोमीटर  की दूरी पर था. त्रिप्रयार, थ्रिस्सूर  से भी उतनी ही दूर है.  त्रिप्रयार से लगा हुआ ही वह सुन्दर समुद्र तट है जिसे “स्नेह तीरम” कहा जाता है. त्रिप्रयार में एक सुन्दर नदी भी है जिसके किनारे वहां का प्राचीन और प्रसिद्द श्री राम मंदिर है. सालों पहले मुख्य सड़क, मंदिर के सामने, नदी के इस पार समाप्त हो जाती थी और नदी पार कर मंदिर जाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता था. परन्तु अब पुल बन गया है. हम लोग नदी के इस किनारे   ५.३० बजे पहुँच गए थे. हमने गाडी रुकवा दी और ध्यानमग्न हो गए. 
त्रिप्रयार वास्तव में “तिरुपुरैयार” कहलाता था. कहते हैं कभी उस भूभाग के तीन तरफ नदी बहती थी. लोगों का ऐसा विश्वास है कि यहाँ के मंदिर में जिस मूर्ती की पूजा होती है वह मूलतः द्वारका में श्री कृष्ण द्वारा पूजित श्री राम है. द्वारका के समुद्र में समाने से श्री राम, लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुघ्न की मूर्तियाँ भी समुद्र में पड़ी रहीं जो कालांतर में मछुआरों के जाल में फंस कर किनारे लायी गयीं और एक स्थानीय मुखिया “विक्कल  कैमल” को सुपुर्द कर दी गयीं. विक्कल  कैमल ने ज्योतिषियों को बुलवा कर मंत्रणा की. उन्होंने सलाह दी कि श्री राम की मूर्ति ऐसी जगह स्थापित की जावे जहाँ के आकाश में एक दिव्य मयूर दिखाई पड़े. मूर्ति स्थापना की पूरी तैय्यारी कर ली गयी परन्तु कई दिनों तक कहीं कोई मयूर नहीं दिखा. फिर एक दिन एक भक्त अपने हाथों में मोरपंख लिए वहां पहुंचा और पीछे पीछे एक मयूर भी आ गया. जिस जगह वह भक्त और मयूर दोनों ही प्रकट हुए थे वहीँ मूर्ती की स्थापना कर दी गयी और मंदिर भी बना.

तिरुपुरैयार महत्वपूर्ण नदी

त्रिपुरारी या त्रिपुरारि वास्तव में "तिरुपुरैयार" कहलाता है। यह एक प्रमुख नदी है जो भारतीय राज्य तमिलनाडु में स्थित है। यह नदी दक्षिणी भारतीय प्रायद्वीप का अहम हिस्सा है और उत्तरी तमिलनाडु के बहुत से शहरों को पोषण प्रदान करता है। तिरुपुरैयार का महत्व इसके पानी की सामर्थ्यता और कृषि के लिए उपयोग है।
तिरुपुरैयार नदी, तमिलनाडु राज्य में स्थित एक महत्वपूर्ण नदी है। इसका महत्त्व उसके प्राकृतिक संसाधनों, सामाजिक और आर्थिक महत्त्व के कारण होता है। यह नदी प्रायः २०० किलोमीटर से भी अधिक लंबी है और मुख्य रूप से पल्लार, अंपार, और कावेरी नदियों के संगम में मिलती है।
तिरुपुरैयार का पानी जल संसाधन के रूप में अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, जो उत्तरी तमिलनाडु के कृषि, जल संसाधन और इसके आसपास के इलाकों के लिए जीवनदायक होता है। इसका पानी न केवल कृषि में उपयोग होता है, बल्कि यह स्थानीय जनता के पेयजल के लिए भी महत्वपूर्ण है।
साथ ही, तिरुपुरैयार नदी के तटीय क्षेत्रों में वन्य जीवन, जैव विविधता और जलवायु संतुलन की दृष्टि से भी इसका महत्त्व है। इस नदी के किनारे बहुत सारी जानवरों की जीवन धारा चलती है और यहाँ प्राकृतिक जीवन का संतुलन बनाए रखने में मदद करती है।
समाज के सांस्कृतिक और धार्मिक पहलुओं में भी इस नदी का महत्व है। कई धार्मिक स्थल और मंदिर इस नदी के किनारे स्थित हैं और यहाँ पर लोग आध्यात्मिकता और धार्मिक गतिविधियों में भाग लेते हैं।
इस प्रकार, तिरुपुरैयार नदी भारतीय समाज और प्राकृतिक परिस्थितियों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

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