श्लोक { ४९ से ५३ } बालकाण्ड हिंदी अर्थ सहित

श्लोक  {  ४९ से ५३ } बालकाण्ड  हिंदी अर्थ सहित Verses { 49 to 53 } Balkand with Hindi meaning 

श्लोक 
लखि सुबेष जग बंचक जेऊ । बेष प्रताप पूजिअहिं तेऊ।। 
उघरहिं अंत न होइ निबाहू। कालनेमि जिमि रावन राहू।। ४९
 हिंदी अर्थ 
यह दोहे भगवान रामचंद्र जी के जीवन और उनके धर्मिक तत्वों को दर्शाते हैं। इनको गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है।
लखि - देखकर
सुबेष - अच्छे भेष
जग - जगत
बंचक - बहुत सारे
जेऊ - होते हैं
बेष - रूप
प्रताप - महिमा
पूजिअहिं - पूजा किये जाते हैं
तेऊ - वे
उघरहिं - अंदर
अंत - अंतिम
न होइ - नहीं होता
निबाहू - संभाला जा सकता है
कालनेमि - काल के नियम
जिमि - जैसे
रावन - रावण
राहू - बचा है
इस दोहे में यह कहा गया है कि बहुत सारे लोग अच्छे भेष में होते हैं और उनकी महिमा की पूजा की जाती है, लेकिन उनका अंत अंदर के नियमों के अनुसार होता है, जैसे रावण का होता था।
"लखि सुबेष जग बंचक जेऊ। बेष प्रताप पूजिअहिं तेऊ।।" - यह वाक्य कहता है कि जब भी हम किसी को देखते हैं, तो उनके बाहरी रूप को नहीं, उनके भीतरी गुणों को देखना चाहिए। हमें व्यक्ति की सत्ता और प्रताप की जगह उनके अच्छे गुणों को पूजना चाहिए।
"उघरहिं अंत न होइ निबाहू। कालनेमि जिमि रावन राहू।।" - यह वाक्य बताता है कि बुराई और दुष्कर्म के प्रति हमें सदैव सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि यह बिना देखे हमारे जीवन में अन्त तक बना रहता है, जैसे रावण और राहु की स्थिति में हुआ।
यह दोहे हमें यह सिखाते हैं कि हमें व्यक्तियों को उनके गुणों के आधार पर देखना चाहिए और बुराई को दूर भगाने की कोशिश करनी चाहिए।
श्लोक 
किएहुँ कुबेषु साधु सनमानू। जिमि जग जामवंत हनुमानू ।। 
हानि कुसंग सुसंगति लाहू। लोकहुँ बेद बिदित सब काहू।। ५०
अर्थ सहित 
यह दोहे भगवान हनुमान जी के गुणों और महत्त्व को बताते हैं। इन्हें गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है।
किएहुँ - जो किया गया
कुबेषु - बुद्धिमानों में
साधु - सज्जनों
सनमानू - सम्मान दिया गया
जिमि - जैसा
जग - जगत
जामवंत - यमराज
हनुमानू - हनुमान
हानि - नुकसान
कुसंग - दुर्भाग्य
सुसंगति - सज्जन सम्पर्क
लाहू - प्राप्त
लोकहुँ - लोगों में
बेद बिदित - जानने वाले सबको
इस दोहे में यह कहा गया है कि जैसे यमराज और हनुमान जी को सम्मान दिया गया है, वैसे ही बुद्धिमान और सज्जनों का संग सबको लाभदायक होता है, जबकि दुर्भाग्य से होने वाली बुरी संगति सभी के लिए हानिकारक होती है।
"किएहुँ कुबेषु साधु सनमानू। जिमि जग जामवंत हनुमानू" - यह वाक्य बताता है कि हमें सदा साधुओं का सम्मान करना चाहिए, जैसे कि पूरे जगत् में हनुमान जी का सम्मान किया गया था।
"हानि कुसंग सुसंगति लाहू। लोकहुँ बेद बिदित सब काहू।।" - इस वाक्य में बताया गया है कि बुरे संगति से हानि होती है, जबकि अच्छी संगति से हमें लाभ होता है। सभी लोग वेदों का ज्ञानी नहीं होते, यह सबका ज्ञान नहीं होता।
यह दोहे हमें सिखाते हैं कि हमें सदा साधुओं का सम्मान करना चाहिए और बुरी संगति से दूर रहना चाहिए। वास्तविक ज्ञान और सुशिक्षित होने के लिए केवल वेदों का ज्ञान ही काफी नहीं होता
श्लोक 
गगन चढ़इ रज पवन प्रसंगा। कीचहिं मिलइ नीच जल संगा ।।
साधु असाधु सदन सुक सारीं। सुमिरहिं राम देहिं गनि गारीं। ५१ 
 हिंदी अर्थ 
यह दोहे गोस्वामी तुलसीदास जी के 'रामचरितमानस' से लिए गए हैं। इनके माध्यम से भगवान की महिमा और उनके भक्ति में स्तुति की गई है।
गगन चढ़इ - आकाश में चढ़ती
रज पवन प्रसंगा - बिंदु और हवा की कथा
कीचहिं - मिलकर
मिलइ नीच जल संगा - मिल जाती है नीचे की जल से
साधु असाधु सदन सुक सारीं - सज्जन और दुर्जन के घर में भी सुख होता है
सुमिरहिं राम देहिं गनि गारीं - श्रीराम का स्मरण करते रहो, उनकी सीखों का अनुसरण करो।
"गगन चढ़इ रज पवन प्रसंगा। कीचहिं मिलइ नीच जल संगा।।" - यह वाक्य बताता है कि जैसे कि हवा ऊपर की ओर चलती है और मेघ अपना संग साथ लेकर नीचे की ओर जाते हैं, ठीक उसी तरह साधु-संतों का स्वभाव भी ऊँचे स्थान से नीचे तक पहुंचने वालों के साथ रहने का होता है।
"साधु असाधु सदन सुक सारीं। सुमिरहिं राम देहिं गनि गारीं।" - इस वाक्य में कहा गया है कि चाहे साधु हों या असाधु, सभी स्थानों में हर कोई खुशियाँ और दुःख को अनुभव करता है। इसलिए, भगवान राम का स्मरण करते हुए हमें अपने आत्मा को शुद्ध रखना चाहिए।
यह दोहे भगवान की भक्ति में स्तुति करते हैं और हमें उनका स्मरण करने की महत्ता बताते हैं। इसके जरिए हमें आत्मशुद्धि और साधना की दिशा में मार्गदर्शन मिलता है।

श्लोक 
धूम कुसंगति कारिख होई। लिखिअ पुरान मंजु मसि सोई ।। 
सोइ जल अनल अनिल संघाता। होइ जलद जग जीवन दाता ।।५२ 
 हिंदी अर्थ 
यह दोहे भक्ति और सत्संग की महत्ता को बताते हैं। ये दोहे गोस्वामी तुलसीदास जी के 'रामचरितमानस' से लिए गए हैं।
"धूम कुसंगति कारिख होई। लिखिअ पुरान मंजु मसि सोई।।" - यह वाक्य बताता है कि जैसे जल में अगर धूम हो जाए, तो वह मूल रूप में पानी ही है। उसी तरह सत्संग के बावजूद अगर कोई अशुभ संगति हो जाए, तो वह सत्संग का मूल रूप में ही रहता है।
"सोइ जल अनल अनिल संघाता। होइ जलद जग जीवन दाता।।" - यह वाक्य बताता है कि जैसे जल और अग्नि वायु का संघात होता है, वैसे ही सत्संग के साथ जोड़ने से जीवन को शीघ्रता से प्रदान करता है।
यह दोहे हमें यह सिखाते हैं कि सत्संग या अच्छे संग का महत्त्व है और हमें सत्य, नेकी और धर्म के मार्ग पर चलने की जरूरत होती है। इससे हमारा जीवन सफलता और सुखमय बनता है।
श्लोक 
ग्रह भेषज जल पवन पट पाइ कुजोग सुजोग।
होहिं कुबस्तु सुबस्तु जग लखहिं सुलच्छन लोग ।।  ५३
 हिंदी अर्थ 
यह दोहा गोस्वामी तुलसीदास जी के 'रामचरितमानस' से हैं। इनमें भगवान के गुणों और उनके सम्बंध में विचार किए गए हैं।
"ग्रह भेषज जल पवन पट पाइ कुजोग सुजोग। होहिं कुबस्तु सुबस्तु जग लखहिं सुलच्छन लोग।।" - यह वाक्य बताता है कि चाहे ग्रह हों, भूत-प्रेत हों, पानी हो या हवा, सभी कुछ विश्वास और समर्थन का साधन हो सकते हैं। इसलिए, बहुत से लोग समझदारी से हर किसी को सही तरीके से समझते हैं।
यह दोहा हमें यह बताता है कि व्यक्ति को सभी से उचित रूप से बिना भेदभाव के समझना चाहिए। जीवन में हर चीज का महत्त्व होता है और हर एक चीज की अपनी अहमियत होती है।

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