शिव के स्वरूप के बारे मे About the form of Shiva
शिव, हिन्दू धर्म के त्रिमूर्ति में एक हैं और उन्हें विश्वनाथ, महादेव, नीलकंठ, रुद्र, आदिनाथ, शंकर, भैरव, भूतेश, जटाधर, गिरीश, ईश्वर, त्रिलोचन, त्रिशूलधर, नागेश, पशुपति, मृत्युंजय, रुद्रकाण्ड, नीलग्रीव, वृषाकपि, शितिकण्ठ, शिवकार्य, आदिदेव, आदिदेवता, महेश्वर, महेश, परमेश्वर, त्र्यम्बक, विष्णुवल्लभ, विरूपाक्ष, शम्भु, शिवेति इत्यादि कई नामों से भी जाना जाता है।उनका स्वरूप अत्यंत अनुपम और रहस्यमय है, और उन्हें सातों लोकों के नाथ (सर्वलोकनाथ) के रूप में भी जाना जाता है। वे साकार और निराकार रूप में भी विद्यमान हैं और प्रवृत्ति और निवृत्ति के देवता हैं। शिव का त्रिशूल, नाग, गंगा, चंद्रमा, भस्म, रुद्राक्ष, वृषाकपि, उसकी वाहन नंदी, और भैरव स्वरूप में उनके विभिन्न आवतारों के साथ जुड़े हैं।
शिव स्वरूप की कथा
शिव के स्वरूप की कई कथाएं हैं, जिनमें उनके विभिन्न रूपों और अवतारों का वर्णन किया गया है। एक महत्वपूर्ण कथा शिव पुराण में मिलती है, जिसे महाकाव्य "काशीकाण्ड" कहा जाता है।काशीकाण्ड के अनुसार, एक समय ब्रह्मा, विष्णु और शिव में तकनीकी विवाद उत्पन्न हुआ, कि कौन सबसे महत्त्वपूर्ण है। इस विवाद को शान्ति करने के लिए देवताओं ने ब्रह्मा को ब्रह्मपुरी में, विष्णु को श्रीनगर में, और शिव को काशी में चला जाने का निर्णय किया।
इसके बाद, शिव ने काशी में विराजमान होकर तपस्या शुरू की और वहां गंगा नदी को अपने जटाओं में धारण किया। उन्होंने वहां महादेव रूप में आत्मा का साक्षात्कार किया और अपने भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन किया।
यह कथा शिव के प्रति भक्ति और तपस्या की महत्वपूर्णता को बताती है और काशी (वाराणसी) को शिव का पवित्र स्थान माना जाता है।
शिव स्वरूप के मन्त्र
शिव स्वरूप के मन्त्र हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण हैं और इनका जाप भक्ति और आध्यात्मिक उन्नति में मदद कर सकता है। शिव मन्त्रों में सबसे प्रमुख है "ॐ नमः शिवाय"।इस मन्त्र का अर्थ है "ओं, मैं शिव को नमन करता हूँ" या "ओं, शिव की ओर मेरा प्रणाम है"। यह महामृत्युंजय मन्त्र भी प्रसिद्ध है, जिसे "ॐ हौं जूं सः" या "ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्" भी कहा जाता है।
ये मन्त्र भक्तिपूर्ण उपासना के लिए अनुष्ठान किए जाते हैं और शिव के अनुग्रह की प्राप्ति में सहायक हो सकते हैं।
ॐ नमः शिवाय" मन्त्र का पूरा अर्थ
- "ॐ नमः शिवाय" मन्त्र का पूरा अर्थ बहुतात्त्विक है। इस मन्त्र का उद्दीपन "ॐ" से होता है, जो परब्रह्म या अनंतता का प्रतीक है।
- "ॐ" के बाद आता है "नमः" जो नमन का भाव होता है, अर्थात् शिव के प्रति समर्पण और श्रद्धाभाव का अभिव्यक्ति।
- "शिवाय" भगवान शिव के प्रति समर्पित होने का भाव दर्शाता है। "शिव" शक्ति और करुणा के प्रतीक है, और "आय" समर्पण का भाव दर्शाता है।
"ॐ हौं जूं सः" यह महामृत्युंजय मन्त्र है, जिसे भगवान शिव की आराधना में जपा जाता है। इस मन्त्र का अर्थ निम्नलिखित है:
- "ॐ": परब्रह्म, आदि और अनंतता का प्रतीक।
- "हौं": भगवान रुद्र का रूप।
- "जूं": आत्मा को प्रेरित करने वाला शक्ति प्रतीक।
- "सः": ईश्वर का प्रतीक।
"ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्"
यह महामृत्युंजय मन्त्र है और भगवान शिव की पूजा में जपा जाता है। इस मन्त्र का विवरण निम्नलिखित है: "ॐ": परब्रह्म का प्रतीक, आदि और अनंतता का प्रतीक।
- "त्रयम्बकं": जो तीनों आधारित है, जिससे भगवान का एकता का संकेत है।
- "यजामहे": हम जपना चाहते हैं और समर्पित होना चाहते हैं।
- "सुगन्धिं": यह सुगन्धिता का प्रतीक है, जिससे आत्मा को पवित्रता की अनुभूति होती है।
- "पुष्टिवर्धनम्": यह भगवान की कृपा और आशीर्वाद की मांग करता है, जिससे सभी भय और दुखों से मुक्ति मिलती है।
- "उर्वारुकमिव": जैसे की कच्छा फूल की धारा बिना किसी रुकावट के गिरती है, इसी तरह से हमें संसारिक बंधनों से मुक्ति मिले।
- "बन्धनान्": बंधनों से मुक्ति की प्राप्ति की प्रार्थना।
- "मृत्योर्मुक्षीय": मृत्यु से मुक्ति की प्रार्थना।
- "माऽमृतात्": मृत्यु के परे अमृत की प्राप्ति की मांग करता है, यानी अनंत जीवन की कामना।
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