शिव जी की त्रिनेत्र की कथा और महत्त्वपूर्ण बाते

शिव जी की त्रिनेत्र की  कथा और महत्त्वपूर्ण बाते  Story and important points of Lord Shiva's Trinetra

शिव जी की त्रिनेत्र की कई कहानियाँ हैं। एक प्रमुख कथा है जो महादेव के महानतम दिव्य शक्ति को दर्शाती है।
एक बार देवी सती ने अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव और उनकी पत्नी सती को अनादर का भंग देखा। सती का मान और घमंड यह सोचकर कि वे पति शिव के लिए निर्मल भक्ति में डूबी हुई हैं, वे यह अनादर बर्दाश्त नहीं कर सकीं। इसके बाद वे अपने शरीर को धूने के बाद अग्नि में प्रविष्ट हो गईं और समाप्त हो गईं।
इसके बाद भगवान शिव ने बहुत विषादित होकर सती के शव को अपने कंधों पर ले लिया और तांडव नृत्य किया। इससे पृथ्वी का विनाश होने लगा। इस पर भगवान विष्णु ने सुधार करते हुए सती के शरीर को छोड़ा और उसे कई टुकड़ों में विभाजित किया। इससे 51 स्थानों पर शक्तिपीठों की रचना हुई।
इसके बाद जब शिव ध्यान में चले गए, तो उनकी आँखों से नया दिव्य रूप उत्पन्न हुआ जिसे त्रिनेत्र कहा जाता है। इस त्रिनेत्र के माध्यम से वे तीनों लोकों को देख सकते हैं और इससे उनकी अद्भुत शक्ति को दर्शाया जाता है।

शिव का मंत्र

शिव की त्रिनेत्र मंत्र में कई मंत्र हो सकते हैं, जो भगवान शिव को समर्पित होते हैं और उनकी पूजा में उपयोग होते हैं। यहाँ एक मंत्र है जो शिव को समर्पित है:
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।

यह मंत्र भगवान शिव की पूजा और उनकी आराधना में प्रयोग किया जाता है। इस मंत्र का अर्थ है, "हम त्रिनेत्र शिव को अर्चना करते हैं, जो सुगंधित और पुष्टि दायक हैं। हे भगवान, हमें मृत्यु के बंधन से मुक्ति दीजिए और हमें अमरता की प्राप्ति कराइए, जैसे कि ककड़ी को कटा हुआ पत्ता मृत्यु से मुक्त हो जाता है।"
कृपया ध्यान दें कि यह मंत्र पूजा और आराधना के लिए होता है और इसे सही उपायों और विधियों के साथ उच्चारण करना चाहिए। यदि आप इसे उच्चारित करना चाहते हैं, तो सर्वोत्तम होगा कि आप इसे किसी धार्मिक गुरु या पंडित की मार्गदर्शन में करें।

शिव जी की महत्त्वपूर्ण त्रिनेत्र

शिव जी की त्रिनेत्रों का महत्त्व हिन्दू धर्म में बहुत गहरा है। यह त्रिनेत्र उनकी शक्ति और सर्वशक्तिमानता को प्रतिस्थापित करता है। त्रिनेत्र में तीनों आँखें भगवान शिव की त्रिकालदर्शी स्वरूप को दर्शाती हैं - जो भूत, वर्तमान और भविष्य को देखते हैं। 
प्राचीन पुराणों और शास्त्रों में कहा जाता है कि इस त्रिनेत्र का महत्त्व असीम है, और यह समस्त विश्व के सृष्टिकर्ता और संहारक के साथ जुड़ा हुआ है। यह तीनों लोकों - स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल - का प्रतीक है और इसे भगवान शिव की सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी होने का प्रतीक माना जाता है।
त्रिनेत्र के तीनों नेत्रों के अलग-अलग अर्थ हो सकते हैं - ज्ञान, तप और क्रिया, या फिर सत्य, शुभ और सौंदर्य। यह भगवान शिव की ऊर्जा को, जो विश्व के सृष्टि, संरक्षण और संहार का धारक हैं, प्रतिस्थापित करता है।

शिव जी का त्रिनेत्र महत्व

शिव जी के तीनों नेत्रों का अद्भुत महत्त्व है। इन त्रिनेत्रों का प्रतीक यहाँ पारम्परिक धार्मिक विश्वासों में सम्मान का विषय बनता है।
  • पहला नेत्र ज्ञान को प्रतिनिधित्त्व करता है। यह ज्ञान की प्राप्ति, बोध, और समझ को संकेतित करता है। यह जीवन के सार को समझने में मदद करता है।
  • दूसरा नेत्र संग्रह को दर्शाता है। यह संग्रह की शक्ति को, समर्पण को और समृद्धि को प्रतिनिधित करता है।
  • तीसरा नेत्र संहार को प्रतिनिधित करता है। यह संहार की शक्ति, परिणामों को और संसार के नाश को दर्शाता है।
ये तीनों त्रिनेत्र शिव जी के असीम शक्ति और तामसिक प्रकृति को प्रतिनिधित करते हैं। इनका महत्त्व ध्यान, ज्ञान, और संसार के निर्माण और संहार की सामर्थ्य को दर्शाता है।

टिप्पणियाँ