शिव भगवान के डमरू का इतिहास History of Lord Shiva's Damru
डमरू, जिसे ढक्का या डमरु भी कहा जाता है, एक हिंदू धार्मिक और सांस्कृतिक उपकरण है जो शिव भगवान के अभिन्न हिस्से माना जाता है। डमरू एक छोटे तथा दोनों तरफ से बंद होने वाले ढक्कने वाला एक छोटा ढोलक की तरह होता है।इसका इतिहास वेदों और पुराणों में मिलता है। इसे पुराणों में नादन वह नादिका भी कहा गया है, जो कि शिव के तांडव नृत्य का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। शिव के तांडव के समय डमरू के ध्वनि का महत्त्वपूर्ण रोल होता है।
डमरू को आदिशंकराचार्य भी अपने द्वारा चलाए जाने वाले विद्यार्थियों के ध्यान को फोकस करने के लिए इस्तेमाल करते थे। वह इसे अपने शिष्यों के मन को शुद्ध करने और उन्हें ध्यान में लगाने के लिए एक उपकरण के रूप में प्रयोग करते थे।
धार्मिक दृष्टिकोण से, डमरू को शिव के साथ जोड़ा जाता है और इसे उनके अभिन्न हिस्से के रूप में माना जाता है। इसका उपयोग आध्यात्मिक साधना और ध्यान में भी किया जाता है।
शिव भगवान का डमरू का वर्णन
डमरू एक विशेष प्रकार का भारतीय ढोलक होता है जो शिव भगवान के एक प्रमुख वाद्य यंत्रों में से एक है। यह यंत्र आमतौर पर दो छोटे साइज के डबल-हेडेड ड्रम के रूप में होता है, जिसमें एक छोटी लकड़ी के गोल डिस्क होते हैं जो एक तार से बांधे जाते हैं।इसकी खासता यह है कि जब इसे खेला जाता है, तो इसकी ध्वनि में अनुपूरक ढंग से आवाज़ का उत्तर-पश्चिमी दिशा में बदलाव होता है, जिससे वाद्य यंत्र की ध्वनि बहुत रोमांचक और विशेष होती है।
इस वाद्य यंत्र को शिव भगवान के संध्या समय की ध्वनि के रूप में माना जाता है और इसे शिव के ध्यान और तांत्रिक साधना में उपयोग किया जाता है।
डमरू का अर्थ
डमरू एक प्रकार का भारतीय संगीत यंत्र है, जो शिव भगवान के अद्वितीय वाद्य यंत्रों में से एक है। यह एक छोटे डबल-हेडेड ड्रम होता है, जिसकी दो छोटी सी लकड़ी के गोल डिस्क होती हैं, जो एक तार से बंधे होते हैं। डमरू को दोनों हाथों से खेला जाता है और इसके ध्वनि से माना जाता है कि शिव भगवान ने इसकी सुरीली ध्वनि से विश्व की सृष्टि की थी।डमरू ध्वनि यंत्र
डमरू एक प्राचीन भारतीय संगीत यंत्र है, जिसे शिव भगवान के हाथ में भी देखा जाता है। यह एक छोटा सा डमरू जैसा आकार होता है जिसमें दो छोटे-छोटे डंडे होते हैं जिन्हें ध्वनि उत्पन्न करने के लिए हिलाया जाता है। यह यंत्र ध्वनि का सृजन करने के लिए प्रयोग होता है और हिन्दू धार्मिक अनुष्ठानों में इसका उपयोग किया जाता है। इसकी ध्वनि को शिव की तांडव नृत्य की आवाज़ के रूप में भी जाना जाता है।शिव के डमरू की ध्वनि से निकला मंत्र
शिव के डमरू की ध्वनि से जुड़ा हुआ एक प्रमुख मंत्र है "ॐ नमः शिवाय"। इस मंत्र का जाप शिव की भक्ति और ध्यान में किया जाता है। इस मंत्र का अर्थ है "मैं शिव को नमस्कार करता/ध्यान करता हूँ"। यह मंत्र शिव की पूजा और आराधना में उच्चारित किया जाता है और इसे अनेकों बार जप किया जाता है ताकि ध्यान एवं समाधान की स्थिति में पहुंचा जा सके।"ॐ नमः शिवाय" मंत्र का अर्थ
"ॐ नमः शिवाय" मंत्र का अर्थ होता है "मैं शिव को नमस्कार करता हूँ"।- इस मंत्र में "ॐ" सबसे प्रमुख है, जो परम ब्रह्म, अनंतता, अनन्तता और ब्रह्मांड का प्रतीक है।
- "नमः" शब्द नमस्कार और समर्पण का भाव दर्शाता है, और
- "शिवाय" शब्द इस मंत्र में शिव के प्रति समर्पण और भक्ति का अर्थ दर्शाता है।
शिव पुराण में एक प्रमुख कथा डमरू के बारे में
डमरू के बारे में कई कथाएं हैं। एक प्रमुख कथा इस प्रकार है:शिव पुराण में कहा गया है कि एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) अपनी शक्तियों की महासंग्रह यानि सम्पूर्णता के बारे में चर्चा कर रहे थे। इस महासंग्रह का एक हिस्सा होने के लिए शिव ने अपनी शक्ति पार्वती को सहित कर दिया। वहां तक कि उन्होंने अपनी जटाओं को भी उठा लिया। इस समय पर एक छोटे से बच्चे ने शिव की जटाओं को छेड़ने की कोशिश की। इस पर शिव ने उस बच्चे को अपनी एक जटा से पकड़ लिया और उसे कड़ी समझाया। बच्चा माफी मांगने लगा लेकिन शिव ने उससे कहा कि अब वह उसे छोड़ देगा, पर उसे कुछ ऐसी चीज़ बतानी होगी जो शिव को उसकी छोटी से भी छोटी गलती का फल मिले।
इसके बाद शिव ने एक डमरू बनायीं जो कि दो छोटे-छोटे डंडों से बना होता है। डमरू के ध्वनि में संसार की सृष्टि, स्थिति और संहार की विविधता छिपी होती है। शिव ने उस बच्चे को यह डमरू दी और कहा कि यह डमरू संसार की सृष्टि और विनाश की ध्वनि को दर्शाता है और यह सभी को समझना चाहिए कि सभी कार्य एक समान हैं।
इसके साथ ही शिव ने डमरू का महत्त्व बताया कि इसे बजाने से सृष्टि का संसार चलता है और यह ध्वनि शिव की तांडव नृत्य का प्रतीक है। इसी प्रकार बच्चा डमरू को लेकर वापस चला गया और इस कथा को सुनाकर सभी को शिव की महत्ता का ज्ञान हो गया।
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