ऋतुओं की सुंदरता का वर्णन Description of the beauty of the seasons
कीरति सरित छहूँ रितु रूरी। समय सुहावनि पावनि भूरी॥
हिम हिमसैलसुता सिव ब्याहू। सिसिर सुखद प्रभु जनम उछाहू॥ 275
कीरति सरित छहूँ रितु रूरी।
यहाँ 'कीरति सरित' की बात हो रही है जो की सर्वाधिक मनोहारी सरिताओं को संकेत करता है, और छः ऋतुएँ इसका उल्लेख करती हैं। ऋतुओं की सुंदरता का वर्णन किया गया है जो सरिता के बैकांगन्तर में होते हैं।
समय सुहावनि पावनि भूरी॥
यहां 'समय' का महत्त्व और उसकी महत्ता व्यक्त की गई है। समय को सुंदर और पवित्र बताया गया है।
हिम हिमसैलसुता सिव ब्याहू।
यहाँ 'हिम' और 'हिमसैल' का उल्लेख है जो की बर्फ से ढंके पर्वतों को संकेत करते हैं। इसमें मौसम के बदलाव का वर्णन किया गया है।
सिसिर सुखद प्रभु जनम उछाहू॥
इस श्लोक में भगवान राम की खुशियों और सुखद जन्म की प्रशंसा की गई है।
यह श्लोक प्रकृति, मौसम और भगवान राम के सुंदरता को व्यक्त करने के लिए प्रेरित करता है।
बरनब राम बिबाह समाजू। सो मुद मंगलमय रितुराजू॥
ग्रीषम दुसह राम बनगवनू। पंथकथा खर आतप पवनू॥ 276
यह श्लोक भी तुलसीदास जी के रचित ग्रंथ 'श्रीरामचरितमानस' से है और इसमें मौसमों के साथ भगवान राम के जीवन का संदेश है।
"बरनब राम बिबाह समाजू। सो मुद मंगलमय रितुराजू॥"
यहां भगवान राम के विवाह की विविधता का उल्लेख है और उनके विवाह को सामाजिक रूप से महत्त्वपूर्ण और शुभ बताया गया है। इससे बताया गया है कि समाज में विवाह की समृद्धि और मंगल अवसर राम के जन्म के समान महत्त्वपूर्ण हैं।
"ग्रीषम दुसह राम बनगवनू। पंथकथा खर आतप पवनू॥"
यहां 'ग्रीष्म' के मौसम का वर्णन किया गया है और उसे भगवान राम के आवागमन की प्रक्रिया से तुलना की गई है। ग्रीष्मकाल में जब सूरज की गर्मी बहुत अधिक होती है, तो वह भगवान राम के आगमन की प्रतीक्षा के समान है, जो कि उन्हें सुखद और आरामदायक बनाता है।
बरषा घोर निसाचर रारी। सुरकुल सालि सुमंगलकारी॥
राम राज सुख बिनय बड़ाई। बिसद सुखद सोइ सरद सुहाई॥ 277
यह भी 'रामायण' से एक श्लोक है और इसमें विभिन्न मौसमों की सुंदरता और भगवान राम के राज्य की महिमा का वर्णन किया गया है।
"बरषा घोर निसाचर रारी। सुरकुल सालि सुमंगलकारी॥"
यहां 'बरषा' यानी बादलों का आगमन और वर्षा का वर्णन है। बादलों की घोरता और वर्षा का उल्लेख करते हुए इसमें सुंदरता का बयान किया गया है, जो की सृष्टि को सौंदर्यपूर्ण बनाती है।
"राम राज सुख बिनय बड़ाई। बिसद सुखद सोइ सरद सुहाई॥"
इस श्लोक में भगवान राम के राज्य की महिमा और उनके शासन की प्रशंसा की गई है। इससे यह जाहिर होता है कि भगवान राम के राज्य में सब सुख और समृद्धि थी और वहां का माहौल सर्वदा सुहावना और शांतिपूर्ण था।
सती सिरोमनि सिय गुनगाथा। सोइ गुन अमल अनूपम पाथा॥
भरत सुभाउ सुसीतलताई। सदा एकरस बरनि न जाई॥ 278
"सती सिरोमनि सिय गुनगाथा। सोइ गुन अमल अनूपम पाथा॥"
यहां 'सती सिरोमनि' यानी सीता जी का उल्लेख है, जो कि अत्यंत पतिव्रता थीं और उनकी गुणों की प्रशंसा की गई है। उनके गुण अमल और अनूपम हैं, यानी वे अत्यंत पवित्र और अनोखे हैं।
"भरत सुभाउ सुसीतलताई। सदा एकरस बरनि न जाई॥"
इस श्लोक में भरत की प्रशंसा की गई है, जो सीता और राम के भाई थे। भरत का चरित्र सुसम्पन्न था और वह हमेशा एकरस रहते थे, यानी वे हमेशा एकदृष्टि से सबका हित करते थे और उनकी शोभा को कोई भी बाण नहीं समझ सकता था।
दो0- अवलोकनि बोलनि मिलनि प्रीति परसपर हास।
भायप भलि चहु बंधु की जल माधुरी सुबास॥ 279
यह श्लोक भगवान तुलसीदास जी के रचित ग्रंथ 'श्रीरामचरितमानस' से है।
इस श्लोक में दोस्तों के मधुर संगीत की तुलना किसी भले चार बंधु के मिठे मिलने के साथ की गई है। यहाँ प्रेम, विश्वास और खुशी के संवाद का वर्णन किया गया है, जिससे एक दूसरे के साथ जोड़ने का एक तात्पर्य है।
टिप्पणियाँ