रामचरितमानस प्रथम बालकाण्ड श्लोक (११ से १६) भावार्थ सहित

रामचरितमानस प्रथम बालकाण्ड  श्लोक  (११  से १६)  भावार्थ सहित  Ramcharitmanas first Balakanda verse (11 to 16) with meaning

श्लोक

नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन। 
करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर सयन ।। ११ - एकादश ।। 

भावार्थ

यह श्लोक भगवान कृष्ण की महिमा को व्यक्त करता है।
नील - नीला
सरोरुह - कमल की पंक्ति
स्याम - श्याम
तरुन - युवक
अरुन - सुनहरे
बारिज - मेघ
नयन - आंखें
करउ - करता हूं 
सो - वह  
मम - मेरे 
उर - हृदय 
धाम - धाम 
सदा - सदा 
छीरसागर - सागर के
सयन - शयन  
इस श्लोक में भगवान कृष्ण की शानदार चरित्रित वर्णन किया गया है, जैसे कि वे नीले वर्ण के, कमल के पत्तों की पंक्ति जैसे हैं, उनकी शरीर श्याम रंग का है, उनकी आंखें मेघ की तरह सुनहरी हैं। श्लोककार यहाँ कह रहे हैं कि भगवान कृष्ण की मूर्ति मेरे हृदय के धाम में हमेशा स्थित है, जो समुद्र के बिछौने पर शयन करते हैं।

श्लोक

कुंद इंदु सम देह उमा रमन करुना अयन। 
जाहि दीन पर नेह करउ कृपा मर्दन मयन ॥ १२ - द्वादश , ॥

भावार्थ

यह श्लोक भगवान शिव को स्तुति करता है।
कुंद - चंद्रमा
इंदु - चंद्रमा
सम - समान
देह - शरीर
उमा - पार्वती
रमन - रहना
करुना - कृपा
अयन - आधार
जाहि - जो
दीन - दीन (दुखी)
पर - पर
नेह - प्यार
करउ - करता हूं
कृपा - कृपा
मर्दन - निर्माण
मयन - मार्ग
इस श्लोक में कहा गया है कि भगवान शिव के शरीर का रूप चंद्रमा के समान है, और उनकी पत्नी उमा के साथ रहने से उनकी कृपा का आधार होता है। वे जो दीन और पीड़ितों पर प्यार करते हैं, उन्हें अपनी कृपा से निर्माण के मार्ग को प्राप्त होता है।

 श्लोक

बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि । 
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर ।। १३ - त्रयोदश ,  ।।

भावार्थ

यह श्लोक भगवान राम की महिमा को बयां करता है।
बंदउँ - सेवन करता हूं
गुरु - गुरु
पद - पाद
कंज - कमल
कृपा - कृपा
सिंधु - समुद्र
नररूप - मानव रूपी
हरि - भगवान राम
महामोह - बड़े भ्रम की
तम - अंधकार
पुंज - समूचा
जासु - जिसका
बचन - वचन
रबि - सूर्य
कर - करते हैं
निकर - उजागर
इस श्लोक में कहा गया है कि भगवान राम के पाद के कमल की कृपा से मानव समुद्र में होते हैं। उनके वचन सूर्य की तरह अंधकार के समूचे तम को उजागर कर देते हैं।

 श्लोक

बंदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।। 
अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू।। १४ - चतुर्दश ।। 

भावार्थ

चौपाई बड़े ही सुंदर तरीके से भगवान की महिमा को व्यक्त करती है।
बंदउँ - मैं सेवन करता हूं  
गुरु - गुरु
पद - पाद
पदुम - कमल
परागा - सुगंध
सुरुचि - सुंदरता
सुबास - सुबही
सरस - सुंदर
अनुरागा - प्रेम
अमिअ - अनंत
मूरिमय - रूपवान
चूरन - अद्भुत
चारू - सुंदरता
समन - सभी
सकल - सभी
भव - संसार
रुज - दुःख
परिवारू - हटाने वाला
इस चौपाई में गुरु के पाद के समान कमल का सुगंध, सुंदरता, सुबही रंग, और प्रेम का संबंध बताया गया है। इसके अलावा, भगवान की अनंत रूपवत्ता, अद्भुत सुंदरता, और संसार के सभी दुःखों को हटाने वाले रूप की स्तुति की गई है।

 श्लोक

सुकृति संभु तन बिमल बिभूती। मंजुल मंगल मोद प्रसूती ।।
जन मन मंजु मुकुर मन हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी।। १५ - पंचदश ।।
 

भावार्थ

यह चौपाई श्री गणेश जी की महिमा को व्यक्त करती है।
सुकृति - भले काम
संभु - शिव
तन - शरीर
बिमल - निर्मल
बिभूती - विभूषण
मंजुल - सुन्दर
मंगल - शुभ
मोद - आनंद
प्रसूती - प्रकट होने वाली
जन - मनुष्यों
मन - मन
मंजु - सुन्दर
मुकुर - मुख
मन हरनी - मन को चुराने वाली
किएँ - करते हैं
तिलक - तिलक
गुन - गुण
गन - गान
बस करनी - ध्यान करनी
इस चौपाई में श्री गणेश के शरीर की प्रकट होने वाली निर्मल विभूषण, सुंदर और शुभ आनंद, सुंदर मुख, जो मनुष्यों के मन को चुराते हैं, उनकी प्रशंसा की गई है। इसके साथ ही, गणेश जी के गुणों की ध्यान में रहने का विशेष महत्त्व भी बताया गया है।

 श्लोक

श्रीगुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिव्य दृष्टि हियँ होती ।।
दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू ।। १६ - षोडश ।।

भावार्थ

यह दोहा गुरु के महत्त्व को व्यक्त करता है।
श्रीगुर - गुरुदेव
पद - पाद
नख - नख
मनि - माणिक्य
गन - गुण
जोती - जोड़ता है
सुमिरत - याद करता
दिव्य - दिव्य
दृष्टि - दृष्टि
हियँ - हृदय
होती - होती है
दलन - दूर करना
मोह - मोह
तम - अंधकार
सो - वह
सप्रकासू - प्रकाशमान
बड़े - बहुत
भाग - भाग्य
उर - हृदय
आवइ - आता है
जासू - जिनका
इस दोहे में गुरुदेव के पादों के नखों में माणिक्यों के समान गुण जुड़ते हैं, उनकी याद करने से दिव्य दृष्टि हृदय में होती है। वे अंधकार को दूर करते हैं और उनका प्रकाश हमारे हृदय में आता है। इसका अर्थ है कि गुरुदेव की स्मृति हमारे जीवन में ज्ञान की दिव्य दृष्टि और प्रकाश का स्रोत बनती है।

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