राम के दर्शन। Darshan of Ram.
"संभु समय तेहि रामहि देखा। उपजा हियँ अति हरपु बिसेषा॥
भरि लोचन छबिसिंधु निहारी। कुसमय जानिन कीन्हि चिन्हारी॥"318
यह दोहे भगवान शिव के अनुभवों को व्यक्त करते हैं जब उन्होंने भगवान राम को देखा।
"संभु समय तेहि रामहि देखा। उपजा हियँ अति हरपु बिसेषा॥" - यहां बताया गया है कि जब भगवान शिव ने भगवान राम को देखा, तो उनके हृदय में अत्यंत हर्ष की भावना उत्पन्न हुई।
"भरि लोचन छबिसिंधु निहारी। कुसमय जानिन कीन्हि चिन्हारी॥" - यहां बताया गया है कि शिव ने भगवान राम की छवि को अपनी आंखों में भरकर देखा और तुरंत ही उनके गुणों को समझ लिया।
"जय सच्चिदानंद जग पावन। अस कहि चलेउ मनोज नसावन॥
चले जात सिव सती समेता। पुनि पुनि पुलकत कृपानिकेता॥"319
ये पंक्तियाँ भगवान शिव की महिमा को स्तुति करती हैं।
"जय सच्चिदानंद जग पावन। अस कहि चलेउ मनोज नसावन॥" - यहां बताया गया है कि हे सच्चिदानंद (शिव) जो इस जगत को पवित्र करते हैं, उन्हें यहां स्तुति करते हैं। उनके चरणों में मन को ध्यान लगाना चाहिए।
"चले जात सिव सती समेता। पुनि पुनि पुलकत कृपानिकेता॥" - यहां बताया गया है कि जब शिव सहित सती देवी चले जाते हैं, तो उनकी कृपा से हर बार पुलकित होते हैं। वे अत्यंत दयालु हैं।
"सतीं सो दसा संभु कै देखी। उर उपजा संदेहु बिसेषी॥
संकरु जगतबंद्य जगदीसा। सुर नर मुनि सब नावत सीसा॥"320
यह श्लोक भगवान शिव और सती देवी के बारे में है।
"सतीं सो दसा संभु कै देखी। उर उपजा संदेहु बिसेषी॥" - इसमें बताया गया है कि जब सती ने भगवान शिव को देखा, तो उनके मन में बहुत संदेह उत्पन्न हुआ।
"संकरु जगतबंद्य जगदीसा। सुर नर मुनि सब नावत सीसा॥" - यहाँ बताया गया है कि भगवान शिव जगत के बंधन और जगदीश हैं। स्वर्गीय, मानव और मुनि सभी उनको नमस्कार करते हैं।
"तिन्ह नृपसुतहि नह परनामा। कहि सच्चिदानंद परधमा॥
भए मगन छबि तासु बिलोकी। अजहुँ प्रीति उर रहति न रोकी॥"321
यह दोहे भगवान शिव की महिमा को व्यक्त करते हैं।
"तिन्ह नृपसुतहि नह परनामा। कहि सच्चिदानंद परधमा॥" - इसमें बताया गया है कि भगवान शिव को कोई भी राजा या महान व्यक्ति पूर्णतः नमस्कार नहीं कर सकता है, उन्हें सच्चिदानंद (सत्य, ज्ञान और आनंद) माना गया है।
"भए मगन छबि तासु बिलोकी। अजहुँ प्रीति उर रहति न रोकी॥" - यहां बताया गया है कि जब कोई भी भगवान शिव की छवि को देखता है, तो वह उनकी प्रेम भावना में लिप्त हो जाता है, और उसे प्रीति की भावना को रोका नहीं जा सकता।
"ब्रह्म जो व्यापक बिरज अज अकल अनीह अभेद।
सो कि देह धरि होइ नर जाहि न जानत वेद॥"322
"ब्रह्म जो व्यापक बिरज अज अकल अनीह अभेद।" - यहाँ बताया गया है कि ब्रह्म अनन्त, अज्ञेय, बिराजमान, अकल्पनीय और अद्वितीय है।
"सो कि देह धरि होइ नर जाहि न जानत वेद॥" - इसमें बताया गया है कि जो व्यक्ति ब्रह्म को अपने शरीर में धारण कर लेता है, वह वेदों को भी नहीं समझता। यह कहता है कि ब्रह्म अत्यंत अनन्त है और हमारी बुद्धि से अतीत है।
टिप्पणियाँ