भक्ति और आत्मा - संबंध Bhakti and soul - relationship
अस बिचारि प्रगटउँ निज मोहू। हरहु नाथ करि जन पर छोहू॥
रास नाम कर अमित प्रभावा। संत पुरान उपनिषद गावा॥297
"अस बिचारि प्रगटउँ निज मोहू। हरहु नाथ करि जन पर छोहू॥"
यहां कहा गया है कि मैं अपनी भक्ति को बिचार कर, स्वयं को साफ करके, भगवान को प्राप्त करना चाहता हूँ। हे नाथ! मुझ पर अनुग्रह करो।
"रास नाम कर अमित प्रभावा। संत पुरान उपनिषद गावा॥"
इस भाग में कहा गया है कि भगवान के नाम का जाप करने से असीम प्रभाव होता है। इसके साथ ही संत, पुराण और उपनिषदों की बातें सुनकर और उनकी शिक्षा को अपनाकर हम भक्ति में वृद्धि कर सकते हैं।
संतत जपत संभु अबिनासी। सिव भगवान ग्यान गुन रासी॥
आकर चारि जीव जग अहहीं। कासीं मरत परम पद लहहीं॥ 298
"संतत जपत संभु अबिनासी। सिव भगवान ग्यान गुन रासी॥"
यहां कहा गया है कि संत लोग नित्य प्रिय भगवान शिव का जप करते हैं। शिव भगवान ज्ञान और गुणों का समृद्ध स्रोत हैं।
"आकर चारि जीव जग अहहीं। कासीं मरत परम पद लहहीं॥"
इस भाग में कहा गया है कि सभी चारों धरती पर रहने वाले जीव मोक्ष की प्राप्ति के लिए काशी में जाते हैं। काशी में उन्हें शिव का दर्शन होता है और वहां से वे परम पद को प्राप्त करते हैं।
सोपि राम महिमा मुनिराया। सिव उपदेसु करत करि दाया॥
रामु कवन प्रभु पूछउँ तोही। कहिअ बुझाइ कृपानिधि मोही॥299
इस दोहे में कहा गया है कि साधु-संत रामचंद्रजी की महिमा को सरल भाषा में व्यक्त करते हैं और शिवजी भी उनका उपदेश देकर दया करते हैं। इससे साधकों को उनके मार्ग की समझ में आसानी होती है।
"रामु कवन प्रभु पूछउँ तोही। कहिअ बुझाइ कृपानिधि मोही॥"
यहां कहा गया है कि हे प्रभु! मैं आपकी विशेषता को कैसे पूछूँ? कृपानिधि, आप मुझे बताइए कि मैं आपकी कृपा का कैसे भागी हो सकता हूँ।
एक राम अवधेस कुमारा। तिन्ह कर चरित बिदित संसारा॥
नारि बिरहँ दुखु लहेउ अपारा। भयहु रोषु रन रावनु मारा॥300
"एक राम अवधेस कुमारा। तिन्ह कर चरित बिदित संसारा॥"
यहाँ पर बताया गया है कि भगवान राम अवधेश के कुमार थे, और उनके चरित्र ने संसार को अपनी अद्भुतता से प्रभावित किया। उनके जीवन का वर्णन बहुत ही महान है।
"नारि बिरहँ दुखु लहेउ अपारा। भयहु रोषु रन रावनु मारा॥"
इस दोहे में बताया गया है कि सीता माता के वियोग से अपार दुःख हुआ। रावण को उनके अपहरण का रोष भी भारी पड़ा और उसी रोष ने रावण का वध किया।
"प्रभु सोइ राम कि अपर कोउ जाहि जपत त्रिपुरारि।
सत्यधाम सर्बग्य तुम्ह कहहु बिबेकु बिचारि॥"301
इस दोहे में कहा गया है कि भगवान शिव ही वह अपार शक्तिशाली हैं, जो भगवान राम के अतिरिक्त किसी और को भी जानते हैं और जपते हैं। तुम सर्वज्ञ और सत्यधाम हो, इसे तुम विवेकपूर्वक विचार कर कहो।
यह दोहा शिव जी की अपार महिमा और उनके आदि-अंतरहित स्वरूप को बताता है, जो कि भगवान राम के अतिरिक्त किसी और को भी जानते हैं और उनके भक्ति में लीन होते हैं
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