भगवान विष्णु की महिमा glory of lord Vishnu
"बिष्नु जो सुर हित नरतनु धारी। सोउ सर्बग्य जथा त्रिपुरारी॥
खोजइ सो कि अग्य इव नारी। ग्यानधाम श्रीपति असुरारी॥323
यह दोहा भगवान विष्णु के गुणों की महिमा को वर्णित करता है।
"बिष्नु जो सुर हित नरतनु धारी। सोउ सर्बग्य जथा त्रिपुरारी॥" - इसमें बताया गया है कि जो भगवान विष्णु हैं, वे सभी देवों के हित में नर रूप में प्रकट होते हैं, उनका सर्वज्ञ होना तथा त्रिपुरारी के समान होना। त्रिपुरारी शिव का एक नाम है जिसका अर्थ है तीनों लोकों के नाशक।
"खोजइ सो कि अग्य इव नारी। ग्यानधाम श्रीपति असुरारी॥ - इस पंक्ति में कहा गया है कि जो भगवान विष्णु को खोजता है, वह उसी तरह जैसे नारी स्वयं को हरे के समान खोजती है, उसी तरह भगवान विष्णु ग्यान के धाम में होते हैं और असुरों के नाशक होते हैं।
"संभुगिरा पुनि मृषा न होई। सिव सर्बग्य जान सबु कोई॥
अस संसय मन भयउ अपारा। होई न हृदयँ प्रबोध प्रचारा॥324
"संभुगिरा पुनि मृषा न होई। सिव सर्बग्य जान सबु कोई॥" - इसमें बताया गया है कि भगवान शिव कभी झूठ नहीं बोलते हैं। वे सबको सर्वज्ञ मानते हैं।
"अस संसय मन भयउ अपारा। होई न हृदयँ प्रबोध प्रचारा॥२॥" - यहां बताया गया है कि जो भी संशय या भय शिव के मन में होता है, वह बहुत अपार होता है, लेकिन उनके हृदय में जो ज्ञान का प्रचार होता है, वह अद्भुत होता है।
जद्यपि प्रगट न कहेउ भवानी। हर अंतरजामी सब जानी॥
सुनहि सती तव नारि सुभाऊ। संसय अस न धरिअ उर काऊ॥325
यह चौपाई भगवान शिव और सती देवी के सम्बन्ध को बताती है।
"जद्यपि प्रगट न कहेउ भवानी। हर अंतरजामी सब जानी॥" - इसमें यह कहा गया है कि भवानी (सती) भले ही प्रकट रूप में नहीं हैं, लेकिन हर अंतर्यामी भगवान शिव सभी उनकी बातों को जानते हैं।
"सुनहि सती तव नारि सुभाऊ। संसय अस न धरिअ उर काऊ॥ - इसमें यह कहा गया है कि हे सती, तुम्हारी बातें सुनते हैं, तुम्हारी मान्यता की हैं, और मेरे हृदय में कोई भी संदेह नहीं है।
"जासु कथा कुभंज रिषि गाई। भगति जासु मैं मुनिहि सुनाई॥
सोउ मम इष्टदेव रघुबीरा। सेवत जाहि सदा मुनि धीरा॥326
यह दोहा भगवान राम की महिमा को वर्णित करता है।
"जासु कथा कुभंज रिषि गाई। भगति जासु मैं मुनिहि सुनाई॥" - इसमें बताया गया है कि कुभंज ऋषि ने उनकी कथा गाई, और मैंने उसकी भक्ति की कथा मुनियों से सुनी।
"सोउ मम इष्टदेव रघुबीरा। सेवत जाहि सदा मुनि धीरा॥" - इसमें यह कहा गया है कि राम मेरे प्रिय देवता हैं, जिन्हें सदा ही ध्यान में रखते हैं और जिन्हें सदा ही मुनियों ने सेवा की है।
मुनि धीर जोगी सिद्ध संतत बिमल मन जेहि ध्यावहीं।
कहि नेति निगम पुरान आगम जासु कीरति गावहीं॥"327
यह दोहा भगवान की महिमा को वर्णित करता है।
"छंद-मुनि धीर जोगी सिद्ध संतत बिमल मन जेहि ध्यावहीं।" - इसमें बताया गया है कि जो छंद-मुनि, धीर, योगी, सिद्ध और संत हैं, वे पवित्र मन से उस भगवान की ध्यान में लीन रहते हैं।
"कहि नेति निगम पुरान आगम जासु कीरति गावहीं॥" - इसमें बताया गया है कि जो भगवान की चरित्र की गुणगान करते हैं, उनकी महिमा नेत्रियों (निगम, पुराण, आगम) तथा संस्कृति में गाई जाती है।
"सोइ रामु ब्यापक ब्रह्म भुवन निकाय पति माया धनी।
अवतरेउ अपने भगत हित निजतंत्र नित रघुकुलमनि॥"328
"सोइ रामु ब्यापक ब्रह्म भुवन निकाय पति माया धनी।" - इसमें बताया गया है कि भगवान राम सबके अंदर व्याप्त ब्रह्म हैं, समस्त ब्रह्मांड के अधिपति हैं, और माया और सम्पत्ति के स्वामी हैं।
"अवतरेउ अपने भगत हित निजतंत्र नित रघुकुलमनि॥" - इसमें यह कहा गया है कि वे अपने भक्तों के हित के लिए स्वयं को अवतारित करते हैं और सदा ही रघुकुल में निवास करते हैं। यहां 'रघुकुलमनि' श्रीराम का विशेष उपनाम है, जो रघु वंश के श्रेष्ठ माने जाते हैं।
लाग न उर उपदेसु जदपि कहेउ सिवँ बार बहु।
बोले बिहसि महेसु हरिमाया बलु जानि जियं॥329
"सों-लाग न उर उपदेसु जदपि कहेउ सिवँ बार बहु।" - इसमें बताया गया है कि शिव का उपदेश या शिव के गुणों का वर्णन कितनी ही बार किया जाए, लेकिन उसका सों-लाग, अर्थात समाप्ति, उर में नहीं होता।
"बोले बिहसि महेसु हरिमाया बलु जानि जियं॥" - इसमें यह कहा गया है कि महादेव (शिव) हरि का नाम लेकर हंसते हैं और हरि को अपने बल से जानते हैं।
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