बालकाण्ड मंगलाचरण श्लोक ( ५ ) से (१०) Balkand Manglacharan verses (5) to (10
श्लोक
उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम् ।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम् ।। ५ ॥
भावार्थ
उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं - उत्पत्ति, स्थिति और संहार (नाश) कारकक्लेशहारिणीम् - दुःख को दूर करने वाली
सर्वश्रेयस्करीं - सभी श्रेष्ठता को प्राप्त कराने वाली
सीतां - सीता
नतः अहं - मैं नमन करता हूं
रामवल्लभाम् - जिनका प्रियतम है राम।
यह श्लोक माता सीता की महिमा को व्यक्त करता है और कहता है कि सीता वह महान शक्ति है जो जन्म, स्थिति और समापन को नियन्त्रित करती है, दुःखों को हरती है, और सभी श्रेष्ठता को प्राप्त कराती है। यहाँ श्रीराम की प्रियता और भक्ति का भी निर्देशन किया गया है।
श्लोक
यन्मायावशवर्त्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा यत्सत्त्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेभ्रमः ।
यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम् ॥ ६ ॥
यन्मायावशवर्त्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा यत्सत्त्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेभ्रमः ।
यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम् ॥७ ॥
भावार्थ
यन् - जोमायावशवर्त्ति - माया के अधीन होता है
विश्वम् - संसार
अखिलं - सम्पूर्ण
ब्रह्मादिदेवासुराः - ब्रह्मा आदि देवताएं और असुर
यत् - जिसके कारण
सत्त्वात् - सत्त्व से
अमृषा एव - बिना वासना के
भाति - प्रकट होता है
सकलं - सम्पूर्ण
रज्जौ - रज्जु में
यथा - जैसे
अहेभ्रमः - सर्प का भ्रमित होना
यत् - जिसके
पादप्लवम् - पादुका की तरह
एकमेव - एकमात्र
हि - निश्चयतः
भवाम्भोधेः - संसार समुद्र (भव समुद्र)
तितीर्षावतां - पार करने की इच्छा रखने वालों के
वन्दे - नमन करता हूं
अहं - मैं
तम् - उसको
अशेषकारणपरं - समस्त कारणों के परम आधार को
रामाख्यम् - राम नामक
ईशं - ईश्वर
हरिम् - हरि (विष्णु) को।
यह श्लोक भगवान राम को स्तुति करता है जो संसार के समुद्र में पार करने का एकमात्र साधन है, जैसे कि सर्प का भ्रमित होना रज्जु में, उसी तरह भगवान राम की शरण में ही संसारिक संकटों का निवारण है। यहाँ राम को सर्वकारणों के परम आधार और ईश्वर के रूप में प्रकट किया गया है।
श्लोक
नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद् रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि ।
स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथगाथा-भाषानिबन्धमतिमश्नुलमातनोति ॥ ८ ॥
भावार्थ
नानापुराणनिगमागमसम्मतं - अनेक पुराणों, वेदों और शास्त्रों में सम्मति प्राप्त हैयत् - जो
रामायणे - रामायण में
निगदितं - वर्णित है
क्वचित् अन्यतोऽपि - कहीं भी अन्यथा
स्वान्तः सुखाय - अपने मनोरम सुख के लिए
तुलसी - तुलसीदास
रघुनाथगाथा-भाषा-निबन्धम् - रघुनाथ की कथा, भाषा और व्याकरण
अति मश्नुलम् आतनोति - अत्यंत अभ्यास करता है।
यह श्लोक कहता है कि रामायण जो कि वेदों और शास्त्रों में भी स्वीकृत है, वहाँ तुलसीदास जैसे धार्मिक ग्रंथ के साथ साथ रघुनाथ की कथा, भाषा, और व्याकरण का अध्ययन करके अत्यंत सुखी होता है। इस श्लोक में रामायण की महत्ता और तुलसीदास के ग्रंथों का महत्व बताया गया है।
श्लोक
सो०-जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन ।
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन ॥ ९ ॥
भावार्थ
यह श्लोक संस्कृत में है, जिसका अर्थ है:सोइ - वही
सुमिरत - ध्यान में रखता है
सिधि - सिद्धि
होइ - होती है
गन - गुण
नायक - नेता
करिबर - कृपाशाली
बदन - व्यक्ति
करउ - करता हूं
अनुग्रह - कृपा
सोइ - वही
बुद्धि - बुद्धि
रासि - प्राप्त होती है
सुभ - शुभ
गुन - गुण
सदन - धरोहर
इस श्लोक में व्यक्ति को कहा गया है कि जो नेता (ईश्वर) की ध्यान में रहता है, उसे सिद्धि की प्राप्ति होती है और वही कृपाशील व्यक्ति बुद्धि को शुभ गुणों की प्राप्ति के धरोहर के रूप में रखता है।
श्लोक
मूक होड़ बाचाल पंगु चढ़इ गिरिबर गहन ।
जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलि मल दहन ।। १० ।।
भावार्थ
यह श्लोक भगवान शिव की महिमा को व्यक्त करता है।मूक - मूक (जिसका बोलना न जान पाए)
होड़ - मूकता (बोलने की असमर्थता)
बाचाल - बोलने वाला
पंगु - अपंग (जिसकी चाल में असमर्थता हो)
चढ़इ - उठाता है
गिरिबर - हिमालय (शिव का आश्रयस्थल)
गहन - गहरा
जासु - जिनकी
कृपाँ - कृपा
सो - वह
दयाल - दयालु
द्रवउ - पिघलाते हैं
सकल - सभी
कलि - कलियुग (अध्यात्मिक अज्ञान और दोषों की युग)
मल - कलंक
दहन - जला देते हैं।
इस श्लोक में कहा गया है कि भगवान शिव वह दयालु हैं जिनकी कृपा से मूक भी बोलने वाले बन जाते हैं, अपंग भी हिमालय को उठा सकते हैं और उनकी कृपा से कलियुग के सभी कलंक पिघल जाते हैं।
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