नटराज का नृत्य: भगवान शिव के रहस्यों की खोज "Dance of Nataraja: Exploring the mysteries of Lord Shiva"
भगवान शिव के रहस्यों की खोज "नटराज का नृत्य"
नटराज का शाब्दिक अर्थ है नृत्य करने वालों का सम्राट यानि समस्त संसार के सभी नृत्यरत प्राणियों का नेतृत्वकर्ता। एक और अर्थ में इस चराचर जगत की जो भी सर्जना और विनाश है, उसके निर्देशक की भूमिका है नटराज की। नटराज शिव की 4 भुजाएं हैं।
- उनके एक हाथ में डमरू है
- तो दूसरे हाथ में अग्नि।
- डमरू की ध्वनि सृजन का प्रतीक है तो अग्नि विनाश का प्रतीक है।
- नटराज रूप में शिव का तीसरा हाथ अभय मुद्रा में रहता है जो बुराई को दूर रखने का प्रतीक है।
आईये हम भगवान शिव के नटराज रूप के पृष्ठभाग में निहित मूर्ति शास्त्र के विषय में कुछ चर्चा करें। भगवान शिव संहार के द्योतक हैं। इसके पश्चात सृष्टि की रचना होती है। यदि आप भगवान शिव के नटराज रूप का अवलोकन करें तो आप देखेंगे कि यह मुद्रा शिव की इस परिभाषा पर खरी उतरती है। उनकी इस छवि में जीवन चक्र दर्शाया गया है जिसके प्रत्येक भाग का शिव एक अभिन्न अंग हैं। नटराज का अर्थ है, नृत्यसम्राट, जो इस मुद्रा में दिव्य तांडव नृत्य कर रहे हैं।
नटराज की प्रतिमा
ऊपरी दाहिने हाथ में डमरू – चार भुजाधारी शिव के एक दाहिने हाथ में डमरू है जिस पर एक छोटी व मोटी रस्सी बंधी होती है। इस डमरू को जब वे कलाई से गोल घुमा कर बजाते हैं, तब रस्सी के सिरे पर बनी गाँठ डमरू के चमड़े पर टकराती है जिससे डमरू से नाद उत्पन्न होते हैं। डमरू से उत्पन्न नाद उस प्रणव स्वर का द्योतक है जिससे ब्रह्माण्ड की रचना हुई है। भगवान शिव का डमरू जगत की सृष्टि अर्थात जगत की रचना का प्रतीक है।
ऊपरी बाएं हाथ में अग्नि – उनके ऊपरी बाएँ हाथ में अग्नि है जो संहार अथवा विनाश या प्रलय का प्रतीक है। उनके दोनों ओर के दोनों हाथों में स्थित रचना एवं संहार के विपरीत चिन्ह, उनके मध्य संतुलन या स्थिति को दर्शाते हैं। यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि रचना एवं संहार एक दूसरी के अनुगामी है।
निचले दाहिने हाथ में अभय मुद्रा – उनका निचला दाहिना हाथ अभय मुद्रा में अवस्थित है। इसका अर्थ है कि वे धर्म के पथ पर अग्रसर शिव भक्तों का संरक्षण करते हैं। अभय एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है, भय विहीन।
निचले बाएं हाथ में वरद मुद्रा –नटराज का निचला बायाँ हाथ वरद मुद्रा में नीचे की ओर झुका हुआ है। यह समस्त जीवों की आत्मा का शरण स्थान अथवा मुक्ति का द्योतक है। उनका यह हाथ ब्रह्माण्ड के सुरक्षात्मक, पोषक व संरक्षक तत्वों का प्रतीक है। यह एवं संहार के मध्यकाल से सम्बन्ध रखता है।
दाहिना पैर – उन्होंने अपने दाहिने चरण के नीचे अज्ञान के प्रतीक, एक बौने दानव को दबा रखा है। अतः, सृष्टि की रचना, पोषण, संहार तथा पुनर्रचना के अतिरिक्त भगवान शिव अज्ञानता के दानव पर भी अंकुश रख रहे हैं। एक तत्व पर अपना ध्यान अवश्य केन्द्रित करें, दानव आनंदित भाव से भगवान शिव को निहार रहा है।
बायाँ पैर – उनका बायाँ पैर नृत्य मुद्रा में उठा हुआ है जो नृत्य के आनंद को दर्शा रहा है।
कटि पर बंधा सर्प – उनके कटिप्रदेश पर बंधा सर्प कुण्डलिनी रूपी शक्ति है जो नाभि में निवास करती है। अर्धचन्द्र ज्ञान का प्रतीक है। उनके बाएं कान में पुरुषी कुंडल हैं तथा दायें कान में स्त्री कुंडल हैं, जो यह दर्शाते हैं कि जहां शिव हैं, वहां उनकी शक्ति भी विराजमान हैं। उन्होंने एक नर्तक के समान अपने गले में हार, हाथों में बाजूबंद व कंगन, पैरों में पायल, पैरों की उँगलियों में अंगूठियाँ, कटि में रत्नजड़ित कमरपट्टा आदि आभूषण धारण किये हैं। उनके मुख पर समभाव हैं। पूर्णरुपेन संतुलित। न रचयिता का आनंद, नाही विनाशकर्ता का विषाद। वे जब नृत्य करते हैं तब उनकी जटाएं खुल जाती हैं। उनकी जटाओं के दाहिनी ओर आप गंगा को देख सकते हैं। उनके चारों ओर अग्नि चक्र है जो ब्रह्माण्ड को दर्शाता है।
भगवान शिव को त्रिदेवों में सबसे शक्तिशाली और महत्वपूर्ण माना जाता है. पौराणिक धर्म ग्रंथों की मान्यताओं के कारण भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रूप से लेकर हरिहर रूप भारत में अपनी अलग महत्ता स्थापित कर चुके हैं. यूं भी भगवान शिव के विविध रूप हमेशा से ही जिज्ञासा का विषय रहे हैं. इनमें से एक नटराज स्वरूप है.
शिवजी का सर्वोत्तम नर्तक स्वरूप नटराज उनके संपूर्ण काल और स्थान को दर्शाता है. शिव का तांडव नृत्य प्रसिद्ध है ऐसे में नटराज स्वरूप से ये मान्यता और प्रबल हो जाती है कि ब्रह्माण्ड में स्थित जीवन, उनकी गतिविधियां, कंपन और सभी कुछ भगवान शिव में ही निहित है.
नटराज दो शब्दों से मिलकर बना है – नट और राज. नट का अर्थ है कला. नटराज शब्द में शिव की संपूर्ण कलाओं का रहस्य छुपा हुआ है
तांडव नृत्य का दूसरा रूप नटराज है-
आमतौर पर सभी भगवान शिव के रौद्र तांडव के बारे में जानते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं शिवजी का आनंद ताडंव भी बहुत प्रचलित है. नटराज को ही आनंद तांडव के रूप में जाना जाता है. इस रूप में संपूर्ण यूनिवर्स आनंदित होकर नृत्य करता है.
नटराज का रहस्य-
नटराज नाम जब भी आता है तो नृत्य करती मूर्ति आंखों के सामने आ जाती है. नटराज को मूर्ति के माध्यम से ही जाना जाता है. कई हिंदु धर्मग्रंथों में नटराज की मूर्ति का वर्णन है. आमतौर पर नटराज की मूर्ति काष्ठ से बनती है. कई जगहों पर ये तांबे, पीतल और पत्थर से भी बनती है. नटराज मूर्ति के डांस को कॉस्मिक डांस के रूप में भी जाना जाता है. कॉस्मिक यानि ब्रह्माण्ड की ऊर्जा.
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