तृतीय नवरात्र
{ माँ दुर्गा का तृतीय स्वरूप माता चंद्रघंटा }
इनके माथे पर घंटे के आकार
का अर्धचंद्र है, इसीलिए इन्हें चंद्रघंटा
कहा जाता है। मान्यता है कि देवी पार्वती पहाड़ों में पैदा हुईं और शैलपुत्री के
नाम से पूरे ब्रह्मांड में जानी गईं। माँ ने भगवान शिव के लिए, अपना पूरा जीवन समर्पित करने और उनसे विवाह करने का संकल्प
लिया। माँ पार्वती हमेशा अपने इस संकल्प पर दृढ़ रहीं। उन्होंने लगभग 5000 वर्षों तक, भगवान शिव की तपस्या की थी।
एक दिन, भगवान शिव ने पार्वती से कहा कि वो कभी अपने
जीवन में किसी स्त्री से विवाह नहीं करेंगे। यह सुनने के बावजूद पार्वती ने शिव को
जीतने के अपने संकल्प को नहीं खोया। वो सारी सुख सुविधाएं त्याग कर, भगवान शिव की तरह ही पहाड़ों में रहने लगीं और दिन-रात
तपस्या करने लगीं। इसी कारण, उन्हें ब्रह्मचारिणी देवी
के नाम से भी जाना जाता है। पार्वती की निरंतर तपस्या ने, भगवान शिव का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया और भगवान शिव ने पार्वती की परीक्षा
लेने की ठानी।
भगवान शिव ने परीक्षा लेने
के लिए ब्रह्मचारी रूप धारण किया और पार्वती से मिलने पहुंचे। उन्होंने पार्वती के
सामने भगवान शिव की बहुत बुराई की और कहा, “वह नागधारी और विषधारी हैं और आप उनके साथ जीवन में कभी भी सुखी नहीं रह
पाएंगी। आपको हमेशा दुखों का सामना करना पड़ेगा।” लेकिन माँ पार्वती ने उनकी एक न सुनी और क्रोधित हो गईं। उनके क्रोध को शांत
करने के लिए भगवान शिव, अपने असली रूप में आए और
उनकी तपस्या से खुश होकर पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।
लेकिन पार्वती ने शिव से
उनके घर आकर पूरे विधि-विधान के साथ विवाह का आग्रह किया। जिसके कुछ समय बाद जब
भगवान शिव और पार्वती के विवाह का समय आया तो भगवान शिव कुछ ऐसी बारात लेकर पहुंचे
जिसमें भूत, तपस्वी, ऋषि और अघोरी शामिल थे। सबसे अचंभित करने वाली बात तो यह थी,
कि भगवान शिव के गले में फूलों की जगह सांपों की माला थी।
इसके अलावा, भगवान शिव के शरीर पर
वस्त्रों की जगह, राख लिपटी हुई थी।
उस वक्त पार्वती ने मां
चंद्रघंटा का अवतार धारण किया। पार्वती ने जैसे ही चंद्रघंटा अवतार लिया, तो उनके शरीर पर 10 भुजाएं प्रकट हो
गईं। उनके चार दाहिने हाथों में कमल का फूल, तीर, धनुष और जप माला थी और पांचवे दाहिने हाथ में
अभय मंडल थी।
इससे विवाह में शामिल हुए लोगों का ध्यान भगवान शिव से हटकर पार्वती पर चला गया और सभी अचंभे में रह गए। कुछ देर बाद पार्वती, भगवान शिव के पास पहुंची और उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की, “हे स्वामी, आप इस समय सभी का भय दूर करें।” उनकी विनती सुन भगवान शिव, चंद्रशेखर अवतार में अवतरित हुए। इसके बाद भगवान शिव और पार्वती विवाह के मंडप में बैठे और विवाह संपन्न किया।
माँ चंद्रघंटा अपने भक्तों
पर सदैव कृपा बनाए रखती हैं। जो भी मां की सच्चे मन से आराधना करेगा, मां उसके जीवन की सारी बाधाएं और समस्याओं को समाप्त कर
देंगी और उसपर ऊपर अपनी कृपा अवश्य बनाए रखेंगी।
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है और सभी रोगों को दूर करने का वरदान मांगा जाता है। बता दें कि मां चंद्रघंटा दुर्गा मां का तीसरा रूप हैं, जिन्होंने असुरों का संहार कर देवताओं की रक्षा की थी। कहते हैं हर पूजा मंत्रों के बिना अधूरी है। इसलिए मां चंद्रघंटा की पूजा के दौरान व्रत कथा और पूजा विधि को जानने के साथ-साथ माता के विशेष मंत्र के बारे में भी पता होना जरूरी है।
माता चंद्रघंटा की आराधना का मंत्र है-
कहते हैं कि विशेष मंत्रों
के द्वारा मां चंद्रघंटा की आराधना करने वालों का अहंकार नष्ट होता है और उनको
सौभाग्य, शांति और वैभव की प्राप्ति भी होती है। देवी
चंद्रघंटा की उपासना नवरात्रि की तृतीया को होती है। मां चंद्रघंटा का रूप बहुत ही
सौम्य है। उनका वाहन सिंह है। उनके दस हाथ हैं। हर हाथ में अलग-अलग शस्त्र हैं। वे
आसुरी शक्तियों से अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।
विशेष- देवी दुर्गा के तृतीय
स्वरूप माता चंद्रघंटा की कथा हमें सीख देती है कि कैसी भी परिस्थिति हो,
लेकिन हमें अपने लक्ष्य को नहीं छोड़ना चाहिए।
भगवान पर विश्वास को भी नहीं डिगने देना चाहिए, तभी हमारा कल्याण हो सकता है।
- ईश्वर सत्य है -
जय माता दी जय माता दी
मां दुर्गा का तीसरा स्वरूप- मां चंद्रघंटा
पिण्डजप्रवरारूढ़ा
चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
मां चंद्रघंटा देवी मां
दुर्गा की तीसरी शक्ति हैं। नवरात्रि में तीसरे दिन इसी देवी की पूजा-आराधना की
जाती है। देवी का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इसीलिए कहा जाता है
कि हमें निरंतर उनके पवित्र विग्रह को ध्यान में रखकर साधना करना चाहिए।
इनके मस्तक पर घंटे के आकार
का अर्धचंद्र है, इस कारण इन्हें चंद्रघंटा
देवी कहा जाता है। मां चंद्रघंटा ने असुरों के साथ युद्ध में घंटे की टंकार से
असुरों को चित कर दिया था। यह नाद की देवी हैं, स्वर विज्ञान की देवी हैं। माँ चंद्रघंटा देवी की आराधना से साधक में वीरता और
निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है।
मां चन्द्रघंटा का वाहन
सिंह है, जिस पर दस भुजाधारी माता चन्द्रघंटा प्रसन्न
मुद्रा में विराजित होती हैं। देवी के इस रूप में दस हाथ और तीन आंखें हैं। माँ
चंद्रघंटा के आशीर्वाद से साधक को अतुल्य शक्तियां प्राप्त होती है।
नवरात्रि के तीसर दिन जो भी
माता के तिसरे रूप मां चन्द्रघण्टा की पूजा अर्चना करता है उन सभी को माता की कृपा
प्राप्त होती है। नवरात्रि के तीसरे दिन माता की पूजा के लिए सबसे पहले कलश की
पूजा करके सभी देवी देवताओं और माता के परिवार के देवता, गणेश, लक्ष्मी, विजया, कार्तिकेय, देवी सरस्वती, एवं जया नामक योगिनी की
पूजा करें उसके बाद फिर माता देवी चन्द्रघंटा की पूजा अर्चना करें।
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माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम माता चंद्रघंटा है।
नवरात्र का तीसरा दिन तृतीय नवरात्र
माँ चंद्रघंटा श्लोक, स्वरूप, कृपा, साधना, उपासना
नवरात्रि के तीसरे दिन करें मां चंद्रघंटा की पूजा
तृतीय नवरात्र { माँ दुर्गा का तृतीय स्वरूप माता चंद्रघंटा }
नवरात्रि के तीसरे दिन पढ़िए मां चंद्रघंटा की ये अद्भुत कथा
"शक्ति का रूप हैं मां चंद्रघंटा", दुर्गा शक्ति नौरूप की भक् - वन विद्यार्थी
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