नवरात्रि के दूसरे दिन पढ़िए मां ब्रह्मचारिणी के पौराणिक कथा...
आज नवरात्रि का दूसरा दिन है. दूसरे दिन मां
ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. मां ब्रह्मचारिणी की पूजा तप, शक्ति ,त्याग ,सदाचार, संयम और वैराग्य
में वृद्धि करती है और शत्रुओं का नाश करती है.
मां दुर्गा की 9 शक्तियों के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी के
दर्शन पूजन का विधान है. देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत
भव्य रूप में होता है. देवी के दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल
लिए श्वेत वस्त्र में देवी विराजमान होती हैं.
पौराणिक कथा -
पौराणिक कथा के अनुसार पूर्वजन्म में मां
ब्रह्मचारिणी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था. भगवान शंकर को पति रूप
में प्राप्त करने के लिए बहुत कठिन तपस्या की. इसीलिए इन्हें ब्रह्मचारिणी कहा
गया. मां ब्रह्मचारिणी ने एक हजार वर्ष तक फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल
जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया. इसके बाद मां ने कठिन उपवास रखे और खुले आकाश
के नीचे वर्षा और धूप को सहन करती रहीं. टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की
आराधना करती रहीं.
इससे भी जब भोले नाथ
प्रसन्न नहीं हुए तो उन्होने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए और कई हजार वर्षों
तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं. पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही
इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया. मां ब्रह्मचारणी कठिन तपस्या के कारण बहुत कमजोर हो
हो गई. इस तपस्या को देख सभी देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने सरहाना की और मनोकामना पूर्ण होने
का आशीर्वाद दिया.
जानिए नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी
का महत्व
आज नवरात्रि का दूसरा दिन
है। नवरात्रि के दूसरे दिन भगवती मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का विधान है। साधक एवं
योगी इस दिन अपने मन को भगवती मां के श्री चरणों में एकाग्रचित करके स्वाधिष्ठान
चक्र में स्थित करते हैं और मां की कृपा प्राप्त करते हैं।
ब्रह्मचारिणी देवी भगवती
दुर्गा की नौ शक्तियों का दूसरा स्वरूप मानी जाती हैं। ब्रह्म का अर्थ है, तपस्या, तप का आचरण करने
वाली भगवती, जिस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया, वेदस्तत्वंतपो ब्रह्म, वेद, तत्व और ताप का
अर्थ है ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है। इनके
दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमण्डल रहता है।
नवरात्रि का दूसरा दिन
भगवती ब्रह्मचारिणी की आराधना का दिन है। श्रद्धालु भक्त व साधक अनेक प्रकार से
भगवती की अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए व्रत-अनुष्ठान व साधना करते हैं।
मंत्र इस प्रकार है:
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण
संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री
रूप में उत्पन्न हुई थीं, तब नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकर जी को
प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी। इसी दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें
तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। इन्होंने एक हज़ार वर्ष
तक केवल फल खाकर व्यतीत किए और सौ वर्ष तक केवल शाक पर निर्भर रहीं। उपवास के समय
खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के विकट कष्ट सहे, इसके बाद में केवल ज़मीन पर टूट कर गिरे
बेलपत्रों को खाकर तीन हज़ार वर्ष तक भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। कई हज़ार
वर्षों तक वह निर्जल और निराहार रह कर व्रत करती रहीं।
पत्तों को भी छोड़ देने के
कारण उनका नाम 'अपर्णा' भी पड़ा। इस कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी का पूर्वजन्म का शरीर एकदम
क्षीण हो गया था। उनकी यह दशा देखकर उनकी माता मैना देवी अत्यन्त दुखी हो गयीं।
उन्होंने उस कठिन तपस्या विरत करने के लिए उन्हें आवाज़ दी उमा, अरे नहीं। तब से
देवी ब्रह्मचारिणी का पूर्वजन्म का एक नाम 'उमा' पड़ गया था। उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में
हाहाकार मच गया था।
देवता, ॠषि, सिद्धगण, मुनि सभी
ब्रह्मचारिणी देवी की इस तपस्या को अभूतपूर्व पुण्यकृत्य बताते हुए उनकी सराहना
करने लगे। अन्त में पितामह ब्रह्मा जी ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें सम्बोधित करते
हुए प्रसन्न स्वरों में कहा- 'हे देवी। आज तक किसी ने इस प्रकार की ऐसी कठोर
तपस्या नहीं की थी। तुम्हारी मनोकामना सर्वतोभावेन पूर्ण होगी। भगवान चन्द्रमौलि
शिव जी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट
जाओ।'
माँ दुर्गा का यह दूसरा
स्वरूप भक्तों को अनन्त फल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार व संयम
की वृद्धि होती है। सर्वत्र सिद्धि और विजय प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे
दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र
में होता है। इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता
है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्त्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता। माँ ब्रह्मचारिणी
देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय प्राप्त होती है।
माँ_ब्रह्मचारिणी
ब्रह्मचारिणी माँ की नवरात्र पर्व के दूसरे दिन पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है। यह जानकारी भविष्य पुराण से ली गई हे।
मंत्र
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु |
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||
शक्ति
इस दिन साधक कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के
लिए भी साधना करते हैं। जिससे उनका जीवन सफल हो सके और अपने सामने आने वाली किसी
भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर सकें।
फल
माँ दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता।
माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र
सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप
की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में अवस्थित
मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।
इस दिन ऐसी कन्याओं का पूजन किया जाता है कि जिनका विवाह तय हो गया है लेकिन अभी शादी नहीं हुई है। इन्हें अपने घर बुलाकर पूजन के पश्चात भोजन कराकर वस्त्र, पात्र आदि भेंट किए जाते हैं।
उपासना
प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में द्वितीय दिन इसका जाप करना चाहिए।
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण
संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र
विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा
बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।
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