नवरात्र के दूसरे दिन माँ दुर्गा के दूसरे रूप माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा होती हैं।
|| #माँब्रह्मचारिणी ||
माँ दुर्गा की नौ रुपों में
से द्वितीय रूप माँ ब्रह्मचारिणी का है।
जीवन के कठिन क्षणों में संबल देती हैं मां ब्रह्मचारिणी
दधाना
करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
मां दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।
ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं।
पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।
कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।
कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही संभव थी। तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।
इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है।
ब्रह्मचारिणी की मंत्र :
या देवी सर्वभूतेषु माँ
ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना कर पद्माभ्याम
अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई
ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
★ब्रह्मचारिणी की ध्यान :
वन्दे वांछित
लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलु
धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता
द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा
पुष्पालंकार भूषिताम्॥
परम वंदना पल्लवराधरां कांत
कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं
स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
★ब्रह्मचारिणी की स्तोत्र पाठ :
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी
प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि
भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥
★ब्रह्मचारिणी की कवच :
त्रिपुरा में हृदयं पातु
ललाटे पातु शंकरभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो,
अर्धरी च कपोलो॥
पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे
पातुमहेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च
पादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।
नवरात्री में दुर्गा सप्तशती पाठ किया जाता हैं
★देवी ब्रह्मचारिणी कथा★
माता ब्रह्मचारिणी हिमालय
और मैना की पुत्री हैं. इन्होंने देवर्षि नारद जी के कहने पर भगवान शंकर की ऐसी
कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने इन्हें मनोवांछित वरदान दिया.
जिसके लस्वरूप यह देवी भगवान भोले नाथ की वामिनी अर्थात पत्नी बनी. जो
व्यक्ति अध्यात्म और आत्मिक आनंद की कामना रखते हैं उन्हें इस देवी की पूजा से सहज
यह सब प्राप्त होता है. देवी का दूसरा स्वरूप योग साधक को साधना के केन्द्र के उस
सूक्ष्मतम अंश से साक्षात्कार करा देता है जिसके पश्चात व्यक्ति की ऐन्द्रियां अपने नियंत्रण में रहती और साधक
मोक्ष का भागी बनता है. इस देवी की प्रतिमा की पंचोपचार सहित पूजा करके जो साधक
स्वाधिष्ठान चक्र (Swadhisthan Chakra) में मन को स्थापित
करता है उसकी साधना सफल हो जाती है और व्यक्ति की कुण्डलनी शक्ति जागृत हो जाती
है. जो व्यक्ति भक्ति भाव एवं श्रद्धादुर्गा पूजा के दूसरे दिन मॉ ब्रह्मचारिणी की
पूजा करते हैं उन्हें सुख, आरोग्य की प्राप्ति होती है
और प्रसन्न रहता है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं
सताता है।
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