जय सूर्य देव 🌞 ॐ आदित्याय नमः

जय सूर्य देव 🌞 ॐ आदित्याय नमः

Jai Surya Dev 🌞 Om Adityaya Namah
भानु उदय वैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै।
यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता।
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं।

सूर्य की प्रतिमाओं को अक्सर घोड़ों द्वारा खींचे गए रथ की सवारी करते हुए चित्रित किया जाता है, 
अक्सर संख्या में सात है, जो दृश्य प्रकाश के सात रंगों और सप्ताह के सात दिनों का प्रतिनिधित्व करते हैं। 

मध्ययुगीन काल के दौरान, दिन में ब्रह्मा के साथ सूर्य, दोपहर में शिव और शाम को विष्णु की पूजा की जाती थी। 

कुछ प्राचीन ग्रंथों और कलाओं में, सूर्य को इंद्र , गणेश और अन्य लोगों के साथ समकालिक रूप से प्रस्तुत किया गया है। 
एक देवता के रूप में सूर्य बौद्ध और जैन धर्म की कला और साहित्य में भी पाए जाते हैं. 



महाभारत और रामायण में, सूर्य को राम और कर्ण (क्रमशः रामायण और महाभारत के नायक) के आध्यात्मिक पिता के रूप में दर्शाया गया है। शिव के साथ-साथ महाभारत और रामायण के पात्रों द्वारा पूजा में सूर्य एक प्राथमिक देवता थे।

जय श्री राम हरि गोविंदा सहायते 🙏❤️

सूर्य देव मंत्र

सुख, संवृद्धि और शांति की, शुभ मंगल, कामना के साथ, ट्वीटर पर उपस्थिति, राष्ट्रवादी और सनातनी भाई और बहनों जी को, जय सूर्य देव! भगवान सूर्य देव जी की, किर्पा, सदैव सभी पर, हमेशा ही, बनी रहे...🙏🚩 #ॐ__सूर्याय_देवाय__नमः 🙏🌹🚩 #ॐ__आदित्याय____नमः🙏🌷🚩 #शुभ___प्रभात___वंदन

एक समय की कथा है कि भगवान् सांकृति आदित्य लोक गये। वहाँ पहुँच कर उन्होंने भगवान सूर्य को नमस्कार कर चाक्षुष्मती विद्या द्वारा उनकी अर्चना की-नेत्रेन्द्रिय के प्रकाशक भगवान् श्रीसूर्य को नमस्कार है। आकाश में विचरणशील सूर्य देव को नमस्कार है। हजारों किरणों की विशाल सेना रखने वाले महासेन को नमस्कार है। तमोगुण रूप भगवान् सूर्य को प्रणाम है। रजोगुण रूप भगवान सूर्य को प्रणाम है। सत्त्वगुणरूप सूर्यनारायण को प्रणाम है । हे सूर्यदेव! हमें असत् से सत्पथ की ओर ले चलें । हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलें। हमें मृत्यु से अमरत्व की ओर ले चलें । भगवान् भास्कर पवित्ररूप और प्रतिरूप (प्रतिबिम्ब प्रकटकर्ता) हैं। अखिल विश्व के रूपों के धारणकर्ता, किरण समूहों से सुशोभित, जातवेदा (सर्वज्ञाता), सोने के समान प्रकाशमान, ज्योतिःस्वरूप तथा तापसम्पन्न भगवान् भास्कर को हम स्मरण करते हैं। ये हजारों रश्मिसमुह वाले, सैकडों रूपों में विद्यमान सूर्यदेव सभी प्राणियों के समक्ष प्रकट हो रहे हैं। हमारे चक्षुओं के प्रकाशरूप अदितिपुत्र भगवान् सूर्य को प्रणाम है। दिन के वाहक, विश्व के वहनकर्ता सूर्यदेव के लिए हमारा सर्वस्व समर्पित है। इस चाक्षुष्मती विद्या से अर्चना किये जाने पर भगवान् सूर्यदेव अति हर्षित हुए और कहने लगे-जिस ब्राह्मण द्वारा इस चाक्षुष्मती विद्या का पाठ प्रतिदिन किया जाता है, उसे नेत्ररोग नहीं होते और न उसके वंश में कोई अंधत्व के । प्राप्त करता है। आठ ब्राह्मणों को इस विद्या का ज्ञान करा देने पर इस विद्या की सिद्धि होती है। इस प्रकार का ज्ञाता महानता को प्राप्त करता है ।।

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