माता दुर्गा के 108 नामों (अर्थ सहित)
भगवति में मां दुर्गा का नाम सर्वप्रथम आता है।माता को आदिशक्ति के रुप में पूजा जाता है। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूप को पूजा जाता है। कहते हैं इन नवों दिन जो माता की पूजा सच्चे मन से करते हैं माता की उनपर असीम कृपा होती है
- शैलपुत्री: पहली रूप माता दुर्गा का, जो हिमालय पुत्री हैं।
- ब्रह्मचारिणी: यह उनका दूसरा रूप है, जो तपस्या में नियमित रहती हैं।
- चंद्रघंटा: यह तृतीया रूप धारण करने वाली है, जिन्हें चांद से अलंकृत किया जाता हैं।
- कूष्माण्डा: यह चौथा रूप है, जो सृष्टि के उत्पत्ति कारण हैं।
- स्कंदमाता: पांचवां रूप जिन्हें स्कंद (कार्तिकेय) की मां के रूप में पुजा जाता हैं।
- कात्यायनी: छठवां रूप जिसका उद्भव कात्यायन ऋषि की यज्ञ देवी होने से हुआ।
- कालरात्रि: सातवां रूप, जिसका वर्णन काली रूप में किया जाता हैं।
- महागौरी: आठवां रूप, जिन्हें उज्ज्वल सफेद वस्त्र धारण किया जाता हैं।
- सिद्धिदात्री: नौवां रूप, जो सिद्धि की प्रदात्री हैं।
- नारायणी: दसवां रूप, जो सर्वव्यापी भगवान विष्णु की रूप में प्रसिद्ध हैं।
- भद्रकाली: ग्यारहवां रूप, जो भय को नष्ट करने वाली हैं।
- वैष्णवी: बारहवां रूप, जो विष्णु की अवतार रूप में प्रसिद्ध हैं।
- महेश्वरी: तेरहवां रूप, जो भगवान शिव की शक्ति हैं।
- कौमारी: चौदहवां रूप, जिसकी उपासना ब्रह्मचर्य की देवी दुर्गा की भव्य सामर्थ्य की अनुभूति के लिए की जाती है।
- वराहरूपा: पंद्रहवां रूप, जो बृहद वराह अवतार हैं।
- लक्ष्मी: सोलहवां रूप, जिन्हें लक्ष्मी माता के रूप में जाना जाता हैं।
- नृसिंही: सत्रहवां रूप, जिसकी उपासना विष्णु के नृसिंह अवतार की जाती हैं।
- काली: अठारहवां रूप, जिसका वर्णन दाक्षिणी काली रूप में किया जाता हैं।
- तारा: उन्निसवां रूप, जिसकी उपासना तारा माता की जाती हैं।
- षोडशी: इक्कीसवां रूप, जो सृष्टि के लिए प्रकृति का उद्भव कारण हैं।
- भुवनेश्वरी: बाईसवां रूप, जो समस्त भूवनों की नियंत्रक हैं।
- चिन्मास्ता: बत्तीसवां रूप, जिसका उपासना श्वेत-वर्ण चिन्मास्ता माता की जाती हैं।
- वैश्वानरी: तैंतीसवां रूप, जिसकी उपासना वैश्वानरी माता की जाती हैं।
- अन्नपूर्णा: चौंतीसवां रूप, जिसकी उपासना अन्नपूर्णा देवी की जाती हैं।
- महागौरी: पैंतीसवां रूप, जिसकी उपासना महागौरी माता की जाती हैं।
- बगलामुखी: छत्तीसवां रूप, जिसका वर्णन बगलामुखी माता के रूप में किया जाता हैं।
- पद्मावती: सैंतीसवां रूप, जिसकी उपासना पद्मावती माता की जाती हैं।
- विषालाक्षी: अट्ठाईसवां रूप, जिसकी उपासना विषालाक्षी माता की जाती हैं।
- धृतव्रता: नौंतीसवां रूप, जिसका वर्णन धृतव्रता माता के रूप में किया जाता हैं।
- वाराही: तीसवां रूप, जिसकी उपासना वाराही माता की जाती हैं।
- कामला: इकतीसवां रूप, जिसकी उपासना कामला माता की जाती हैं।
- मातंगी: बत्तीसवां रूप, जिसकी उपासना मातंगी माता की जाती हैं।
- माहेश्वरी: तैंतालीसवां रूप, जिसकी उपासना माहेश्वरी माता की जाती हैं।
- वारुणी: चौंतालीसवां रूप, जिसकी उपासना वारुणी माता की जाती हैं।
- गौरी: पैंतालीसवां रूप, जिसकी उपासना गौरी माता की जाती हैं।
- वाराही: छत्तालीसवां रूप, जिसकी उपासना वाराही माता की जाती हैं।
- बटुका: सैंतालीसवां रूप, जिसकी उपासना बटुका माता की जाती हैं।
- कमला: अट्ठालीसवां रूप, जिसकी उपासना कमला माता की जाती हैं।
- मातंगी: नव्वालीसवां रूप, जिसकी उपासना मातंगी माता की जाती हैं।
- कमला: चालीसवां रूप, जिसकी उपासना कमला माता की जाती हैं।
- सिंहवाहिनी: इकतालीसवां रूप, जिसकी उपासना सिंहवाहिनी माता की जाती हैं।
- महाकाली: बयालीसवां रूप, जिसका वर्णन महाकाली माता के रूप में किया जाता हैं।
- बृहद्दारिणी: त्रेतालीसवां रूप, जिसकी उपासना बृहद्दारिणी माता की जाती हैं।
- चित्रघंटा: चालीस्वां रूप, जिसका वर्णन चित्रघंटा माता के रूप में किया जाता हैं।
- सिद्धिदात्री: उन्नतालीसवां रूप, जिसकी उपासना सिद्धिदात्री माता की जाती हैं।
- विष्णुप्रिया: चालीस्वां रूप, जिसकी उपासना विष्णुप्रिया माता की जाती हैं।
- ब्रह्मचारिणी: अष्टालीसवां रूप, जिसका वर्णन ब्रह्मचारिणी माता के रूप में किया जाता हैं।
- महागौरी: नव्वालीसवां रूप, जिसकी उपासना महागौरी माता की जाती हैं।
- अर्धनारीश्वरी: पचासवां रूप, जिसका वर्णन अर्धनारीश्वरी माता की जाती हैं।
- चंद्रघंटा: इक्यावन्नवां रूप, जिसकी उपासना चंद्रघंटा माता की जाती हैं।
- त्रिपुरा: बावन्नवां रूप, जिसका वर्णन त्रिपुरा माता के रूप में किया जाता हैं।
- बागलामुखी: बव्वन्नवां रूप, जिसकी उपासना बगलामुखी माता की जाती हैं।
- कुष्माण्डा: पचासवां रूप, जिसका वर्णन कुष्माण्डा माता के रूप में किया जाता हैं।
- महागौरी: इक्यावन्नवां रूप, जिसकी उपासना महागौरी माता की जाती हैं।
- ब्रह्माचारिणी: बावन्नवां रूप, जिसका वर्णन ब्रह्माचारिणी माता के रूप में किया जाता हैं।
- वाराही: चौंबिस्सवां रूप, जिसकी उपासना वाराही माता की जाती हैं।
- अम्बाजी: तैंतालीस्सवां रूप, जिसका वर्णन अम्बाजी माता के रूप में किया जाता हैं।
- भुवनेश्वरी: चउंतालीस्सवां रूप, जिसकी उपासना भुवनेश्वरी माता की जाती हैं।
- विषालाक्षी: उन्नतीस्सवां रूप, जिसका वर्णन विषालाक्षी माता के रूप में किया जाता हैं।
- कमला: इकतालीस्सवां रूप, जिसकी उपासना कमला माता की जाती हैं।
- मातंगी: बत्तीस्सवां रूप, जिसका वर्णन मातंगी माता के रूप में किया जाता हैं।
- माहेश्वरी: त्रेतालीस्सवां रूप, जिसकी उपासना माहेश्वरी माता की जाती हैं।
- वारुणी: चौंतालीस्सवां रूप, जिसकी उपासना वारुणी माता की जाती हैं।
- गौरी: पैंतालीस्सवां रूप, जिसकी उपासना गौरी माता की जाती हैं।
- वाराही: छत्तालीस्सवां रूप, जिसकी उपासना वाराही माता की जाती हैं।
- बटुका: सैंतालीस्सवां रूप, जिसकी उपासना बटुका माता की जाती हैं।
- कमला: अट्ठालीस्सवां रूप, जिसकी उपासना कमला माता की जाती हैं।
- मातंगी: नव्वालीस्सवां रूप, जिसकी उपासना मातंगी माता की जाती हैं।
- कमला: चालीस्वां रूप, जिसकी उपासना कमला माता की जाती हैं।
- सिंहवाहिनी: इक्कीस्सवां रूप, जिसकी उपासना सिंहवाहिनी माता की जाती हैं।
- महाकाली: बयालीस्सवां रूप, जिसका वर्णन महाकाली माता के रूप में किया जाता हैं।
- बृहद्दारिणी: त्रेतालीस्सवां रूप, जिसकी उपासना बृहद्दारिणी माता की जाती हैं।
- चित्रघंटा: चालीस्वां रूप, जिसका वर्णन चित्रघंटा माता के रूप में किया जाता हैं।
- सिद्धिदात्री: उन्नतालीस्सवां रूप, जिसकी उपासना सिद्धिदात्री माता की जाती हैं।
- विष्णुप्रिया: चालीस्वां रूप, जिसकी उपासना विष्णुप्रिया माता की जाती हैं।
- ब्रह्मचारिणी: अष्टालीस्सवां रूप, जिसका वर्णन ब्रह्मचारिणी माता के रूप में किया जाता हैं।
- महागौरी: नव्वालीस्सवां रूप, जिसकी उपासना महागौरी माता की जाती हैं।
- अर्धनारीश्वरी: पचास्सवां रूप, जिसका वर्णन अर्धनारीश्वरी माता के रूप में किया जाता हैं।
- चंद्रघंटा: इक्यावन्नवां रूप, जिसकी उपासना चंद्रघंटा माता की जाती हैं।
- त्रिपुरा: बावन्नवां रूप, जिसका वर्णन त्रिपुरा माता के रूप में किया जाता हैं।
- बागलामुखी: बव्वन्नवां रूप, जिसकी उपासना बागलामुखी माता की जाती हैं।
- कुष्माण्डा: पचास्सवां रूप, जिसका वर्णन कुष्माण्डा माता के रूप में किया जाता हैं।
- महागौरी: इक्यावन्नवां रूप, जिसकी उपासना महागौरी माता की जाती हैं।
- ब्रह्माचारिणी: बावन्नवां रूप, जिसका वर्णन ब्रह्माचारिणी माता के रूप में किया जाता हैं।
- वाराही: चौंबिस्सवां रूप, जिसकी उपासना वाराही माता की जाती हैं।
- अम्बाजी: तैंतालीस्सवां रूप, जिसका वर्णन अम्बाजी माता के रूप में किया जाता हैं।
- भुवनेश्वरी: चउंतालीस्सवां रूप, जिसकी उपासना भुवनेश्वरी माता की जाती हैं।
- विष्णुप्रिया: उन्नतीस्सवां रूप, जिसका वर्णन विष्णुप्रिया माता के रूप में किया जाता हैं।
- सुरासुन्दरी: नव्वासीसवां रूप, जिसकी उपासना सुरासुन्दरी माता की जाती हैं।
- दुर्गा: नव्वासीसवां रूप, जिसका वर्णन दुर्गा माता के रूप में किया जाता हैं।
- सुभग: इक्यानवें रूप, जिसकी उपासना सुभग माता की जाती हैं।
- राजराजेश्वरी: बानवें रूप, जिसका वर्णन राजराजेश्वरी माता के रूप में किया जाता हैं।
- कुंभिनाशिनी: त्रियनवें रूप, जिसकी उपासना कुंभिनाशिनी माता की जाती हैं।
- गर्भवती: चौरनवें रूप, जिसका वर्णन गर्भवती माता के रूप में किया जाता हैं।
- सर्वमङ्गला: पचानवें रूप, जिसकी उपासना सर्वमङ्गला माता की जाती हैं।
- जयाप्रदा: छयानवें रूप, जिसका वर्णन जयाप्रदा माता के रूप में किया जाता हैं।
- सुरासर्वस्वधारिणी: सत्तानवें रूप, जिसकी उपासना सुरासर्वस्वधारिणी माता की जाती हैं।
- विद्या: अट्ठानवें रूप, जिसका वर्णन विद्या माता के रूप में किया जाता हैं।
- सङ्गीत: नव्वानवें रूप, जिसकी उपासना सङ्गीत माता की जाती हैं।
- सुमुखी: इक्यान्नवें रूप, जिसका वर्णन सुमुखी माता के रूप में किया जाता हैं।
- विश्वमाता: बयान्नवें रूप, जिसकी उपासना विश्वमाता की जाती हैं।
- दुर्गा: त्रियन्सदत्तरवें रूप, जिसका वर्णन दुर्गा माता के रूप में किया जाता हैं।
- भद्रकाली: चौरान्नवें रूप, जिसकी उपासना भद्रकाली माता की जाती हैं।
- ज्वालामुखी: इक्यासीवें रूप, जिसका वर्णन ज्वालामुखी माता के रूप में किया जाता हैं।
- कुमारी: पचासीवें रूप, जिसकी उपासना कुमारी माता की जाती हैं।
- वैष्णवी: छयासीवें रूप, जिसका वर्णन वैष्णवी माता के रूप में किया जाता हैं।
- नारायणी: सत्तासीवें रूप, जिसकी उपासना नारायणी माता की जाती हैं।
- भगवती: अट्ठासीवें रूप, जिसका वर्णन भगवती माता के रूप में किया जाता हैं।
यहां दुर्गा माता के 108 नाम (अर्थ सहित) की सूची है। ये नाम माँ दुर्गा की महिमा और शक्तियों का प्रतीक हैं और उनकी उपासना भक्तों को सफलता, सुख, शांति, आरोग्य, और समृद्धि की प्राप्ति में सहायक होती हैं
माता दुर्गा के 21 मंत्र (अर्थ सहित)
ध्यान दें कि मंत्रों को प्रायः विशेष तकनीक से उच्चारण और उपासना करना चाहिए, और इन्हें अनुभवित गुरु के मार्गदर्शन में ही शुरू किया जाना चाहिए।
- ॐ दुं दुर्गायै नमः। - अर्थ: मैं दुर्गा माता को नमस्कार करता हूं।
- ॐ हुं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्। - अर्थ: मैं हनुमान जी को नमस्कार करता हूं।
- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। - अर्थ: मैं चामुण्डा माता को नमस्कार करता हूं।
- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे स्वाहा। - अर्थ: मैं चामुण्डा माता को समर्पित होता हूं।
- ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः। - अर्थ: मैं दुर्गा माता को नमस्कार करता हूं।
- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। - अर्थ: मैं चामुण्डा माता को नमस्कार करता हूं।
- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे स्वाहा। - अर्थ: मैं चामुण्डा माता को समर्पित होता हूं।
- ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः। - अर्थ: मैं दुर्गा माता को नमस्कार करता हूं।
- ॐ ह्रीं श्रीं व्लीं शुं ह्रौं हसैन्क्रौं हसकं रौं ह्रौं जुं सः अस्त्राय फट्। - अर्थ: मैं अस्त्राय नमस्कार करता हूं।
- ॐ ज्वाला मुखी श्री वीर बद्र काली शुभं करु मे। - अर्थ: मैं शुभंकारी वीर बद्र काली को नमस्कार करता हूं।
- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे स्वाहा। - अर्थ: मैं चामुण्डा माता को समर्पित होता हूं।
- ॐ दुं दुर्गायै नमः। - अर्थ: मैं दुर्गा माता को नमस्कार करता हूं।
- ॐ ह्लीं चामुण्डायै विच्चे। - अर्थ: मैं चामुण्डा माता को नमस्कार करता हूं।
- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। - अर्थ: मैं चामुण्डा माता को नमस्कार करता हूं।
- ॐ ह्लीं हुं जुं सः। - अर्थ: मैं चामुण्डा माता को नमस्कार करता हूं।
- ॐ ह्लीं ह्लीं सुं सुः। - अर्थ: मैं चामुण्डा माता को नमस्कार करता हूं।
- ॐ क्षोभ्य बीजायै हुं फट्। - अर्थ: मैं क्षोभ्य बीज को नमस्कार करता हूं।
- ॐ दं ह्लीं ह्लुं ज्वालय ज्वालय बद्र काली। -अर्थ: मैं बद्र काली को नमस्कार करता हूं।
- ॐ ऐं श्रीं हुं ज्वालय ज्वालय बद्र काली। - अर्थ: मैं बद्र काली को नमस्कार करता हूं।
- ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं दुं ज्वालय ज्वालय बद्र काली। अर्थ: मैं बद्र काली को नमस्कार करता हूं।
- ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं दुं ज्वालय ज्वालय स्वाहा। अर्थ: मैं बद्र काली को समर्पित होता हूं।
यहां दिए गए मंत्र माता दुर्गा की उपासना में प्रयोग किए जाते हैं। ये मंत्र उन्हें समर्पित किए जाते हैं और उनके सकारात्मक प्रभाव को प्राप्त करने में सहायक होते हैं। ध्यान दें कि इन मंत्रों को उच्चारण से पहले और उच्चारण के दौरान आपको शुद्ध मन से एकाग्र होना चाहिए और यह उपासना निरंतर नियमित रूप से करनी चाहिए।
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