राम भगवान की प्रशंसा करने के लिए एक प्रसिद्ध आरती हैं।
आरती श्री रामचंद्र कीआरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
जाके बल से गिरिवर कांपे।
रोग दोष जाके निकट न झांके॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई।
सन्तन के प्रभु सदा सहाई॥
देबी आरती मातु तुम्हारी।
जो जन नारकी गवारी॥
जनक सुता मिहराबानी।
सीताराम जी की पावन संतानी॥
लक्ष्मण मुरारी विष्णु परे।
राखी लज्जा जनकी नाथ सहे॥
भाता भरी भई सब संतन की।
तुमहि जगजानन्दन सुखदाता॥
अपने जन की भारी रखवारी।
कीजै नाथ हित मोहिं उबारी॥
दोहा:
मातु पितु ब्रातु सब कोई।
सघन विनय करैं सन्तन सोई॥
संतन की सेवा संत समाजी।
हरहु नाथ मम कष्ट निवाजी॥
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
आप इस आरती को ध्यान से गाकर राम भगवान को प्रणाम कर सकते हैं। यह आरती रामायण के महाकाव्य के मुख्य पात्र श्री रामचंद्रजी को समर्पित है और उनके भक्त हनुमानजी की भक्ति का प्रकटन करती है।
राम भगवान की आरती का अर्थ हिंदी में निम्नलिखित है:
आरती कीजै हनुमान लला की।दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
अर्थ: हे हनुमान लाला, आपकी आरती करते हैं। आप वह शक्ति हैं जो दुष्टों के दलन (नाशक) हैं और जिनकी कला (कलाई) में भगवान राम की प्रशंसा है।
जाके बल से गिरिवर कांपे।
रोग दोष जाके निकट न झांके॥
अर्थ: जिनके बल से गिरिराज हिमालय भी कांपता है। वे रोग और दोषों के निकट भी नहीं आते।
अंजनि पुत्र महा बलदाई।
सन्तन के प्रभु सदा सहाई॥
अर्थ: अंजनी के पुत्र, महा बलवान हनुमानजी। आप सदा संतानों के प्रभु के साथ हैं और उनकी सहायता करते हैं।
देबी आरती मातु तुम्हारी।
जो जन नारकी गवारी॥
अर्थ: हे देवी, आपकी आरती भी आपकी ही है। आप वह जन्म लेती हैं जो नारकी (दुखी) हैं और जिनके गुण गवारे हुए हैं।
जनक सुता मिहराबानी।
सीताराम जी की पावन संतानी॥
अर्थ: जनक की पुत्री सीता जी, आपकी मिहराबानी से हुईं। आप ही वह पवित्र संतानी हैं जिनके रूप में सीताराम जी को जन्म मिला।
लक्ष्मण मुरारी विष्णु परे।
राखी लज्जा जनकी नाथ सहे॥
अर्थ: श्री लक्ष्मणजी, मुरारी, विष्णु के परे हैं। वे जनकी नाथ (भगवान राम) की लज्जा (सम्मान) की रक्षा करते हैं।
भाता भरी भई सब संतन की।
तुमहि जगजानन्दन सुखदाता॥
अर्थ: सभी संतानों को भोजन से भर दिया गया है। आप ही वह जगजानंदन (संसार के सुख-दाता) हैं।
अपने जन की भारी रखवारी।
कीजै नाथ हित मोहिं उबारी॥
अर्थ: कृपया अपने भक्तों की भारी रक्षा करें। हे नाथ, मुझे भी अपने लाभ के लिए उधार करें।
दोहा:
मातु पितु ब्रातु सब कोई।
सघन विनय करैं सन्तन सोई॥
अर्थ: माँ, पिता, भाई और सभी कोई आपके बच्चे हैं। ऐसे सन्तान ही घनिष्ठता से विनय करते हैं।
संतन की सेवा संत समाजी।
हरहु नाथ मम कष्ट निवाजी॥
अर्थ: संतान की सेवा संत समाजी और संतान का ध्यान रखने वाले हरे, हे नाथ, मेरे कष्टों का निवारण करो।
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
अर्थ: हे हनुमान लाला, आपकी आरती करते हैं। आप वह शक्ति हैं जो दुष्टों के दलन (नाशक) हैं और जिनकी कला (कलाई) में भगवान राम की प्रशंसा है।
इस आरती में भगवान राम और हनुमानजी की महिमा का गान किया गया है, जो उनके भक्तों के मन में आनंद और शांति का भाव पैदा करता है। इस आरती के द्वारा उन्हें स्तुति और समर्पण की भावना से अपने देवता के समीप पहुंचने का अवसर मिलता है।
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