शनि देव और हनुमान की कथा,Story of Shani Dev and Hanuman

शनि देव और हनुमान की कथा

हिंदू पौराणिक ग्रंथ में विस्तृत रूप से प्रस्तुत है। यह कथा हिंदी में प्रसिद्ध है और इसे कई संस्कृत और हिंदी काव्यों में भी उल्लेख किया गया है। नीचे दी गई है, शनि देव और हनुमान की कथा का संक्षेपित वर्णन:-
एक बार हनुमान जी को भी शनि का प्रकोप सहना पड़ा था। जब किसी को शनि की साढ़ेसाती लगती है या जन्म कुंडली में शनि देव प्रताडि़त करते हैं तो अक्सर ज्योतिषाचार्य उस व्यक्ति को हनुमान जी की शरण में जाने को कहते हैं ताकि वह उपाय द्वारा शनि का प्रकोप शांत कर सके, परन्तु एक बार संयोग से हनुमान जी शनि के काबू आ गए। एक बार की बात है शनि की हनुमान जी से भेंट हो गई। दोनों के मध्य भागवत चर्चा होने लगी। उस समय बात पाप-पुण्य की होने लगी। तब शनि देव हनुमान जी से कहने लगे, ‘‘मैं सब प्राणियों को उनके द्वारा किए गए कर्मों का शुभ-अशुभ फल तोल कर बराबर कर देता हूं। जीवन में प्रत्येक प्राणी पर कभी न कभी अपना प्रभाव अवश्य डालता हूं क्योंकि सृष्टि में प्राणी से कई बार जाने-अनजाने ही कुछ पाप हो जाते हैं जिसका उसे फल भोगना पड़ता है।’’

शनि देव की यह बात सुनकर हनुमान जी कहने लगे, ‘‘शनिदेव कहीं अनजाने में मेरे द्वारा कोई पाप तो नहीं हो गया जिसके लिए मुझे उसका प्रायश्चित करना पड़े।’’ शनि देव तुरन्त बोले, ‘‘अवश्य मारुति नंदन पवन पुत्र। मैं आपके पास इसी प्रयोजन से आया हूं क्योंकि मैं आपकी राशि में प्रवेश करने जा रहा हूं। आप सावधान रहें, मैं आपको शीघ्र ही पीड़ित करूंगा।’’ शनि के ये वाक्य सुनकर हनुमान जी आश्चर्य में पड़ गए तथा बोले, ‘‘मैंने तो अपना सारा जीवन ब्रह्मचारी रहते हुए भगवान श्रीराम की सेवा में अर्पित कर दिया है। उनके भजन के अलावा कोई काम ही नहीं किया तो आप मेरी राशि में क्यों प्रवेश करना चाहते हैं। कृपया मेरे द्वारा किए गए बुरे कर्म या अपराध के बारे में अवश्य बतलाएं।’’ तब शनि देव कहने लगे, ‘‘हनुमान जी आपने राम-रावण युद्ध में मेघनाद द्वारा किए जा रहे यज्ञ को भंग किया था, आपने धर्म कार्य किए हैं इसीलिए मैं आपकी राशि पर अढ़ाई या 7 वर्ष के लिए नहीं मात्र एक दिन के लिए आऊंगा।’’ इतना सुनकर हनुमान जी ने शनि को एक दिन आने के लिए अनुमति दे दी तथा शनि को सावधान किया कि आपने आना ही है तो अपनी पूर्ण तैयारी करके आना।अगले दिन हनुमान जी ने अपने ईष्ट प्रभु भगवान श्री राम का स्मरण किया तथा विशाल पहाड़ उठा कर शनि के आने की प्रतीक्षा करने लगे तथा मन ही मन विचार करने लगे कि जब शनि देव आएंगे तो विशाल पहाड़ ही उन पर दे मारूंगा। पूरा दिन विशाल पहाड़ उठाकर हनुमान जी शनि की प्रतीक्षा करने लगे पर शाम तक शनि नहीं आए। शाम होने पर हनुमान जी ने विशाल पहाड़ को रख दिया तभी अचानक शनि देव प्रकट हुए। उन्हें देखकर हनुमान जी ने शनि से कहा, ‘‘सुबह से ही मैं आपकी प्रतीक्षा कर रहा था परन्तु आप आए नहीं।’’

तभी शनि देव बोले, ‘‘हे पवन पुत्र रुद्रावतार हनुमान जी मैं तो सुबह ही आ गया था अब तो मैं लौट रहा हूं। मेरा प्रयोजन सफल रहा।’’ तब हनुमान जी बोले, ‘‘आपके दर्शन तो अब हो रहे हैं शनि देव। आपके प्रकोप का क्या हुआ। तभी शनि देव मुस्करा कर बोले-मेरे प्रभाव के कारण ही तो आप सुबह से विशाल पहाड़ उठा कर खड़े रहे। मेरी वक्र दृष्टि के कारण ही आप आज सारा दिन पीड़ित रहे हैं। मैंने सुबह ही आपको विशाल पहाड़ उठवा दिया तथा शाम तक आपको दंडित किया इसलिए मेरा प्रयोजन सफल रहा। आप राम भक्त हैं, सदैव राम नाम का जाप करते हैं इसीलिए आपको दंड का कष्ट कम महसूस हुआ। आपको सुबह से शाम तक पहाड़ तो मेरे प्रकोप के कारण ही उठाना पड़ा है।’’ शनि देव की ये बातें सुन कर हनुमान जी मुस्करा उठे। शनिदेव अपना कार्य समाप्त करके हनुमान जी से विदा लेकर शनि लोक रवाना हो गए।

(हनुमान जी और शनिदेव की कथा -2)

एक बार शनि देव को अपनी शक्ति पर अपार घमंड हो गया है. शनि देव को लगने लगा कि उनसे शक्तिशाली कोई भी नहीं है. उनकी दृष्टि मात्र से ही व्यक्ति के जीवन में उथल-पुथल शुरू हो जाती है. शनि देव इसी मद में चूर होकर ऐसे स्थान पर पहुंचे जहां पर हनुमान जी अपने प्रभु श्रीराम की साधना में लीन थे.हनुमान जी पर जब पड़ी शनि देव की दृष्टिभगवान श्रीराम की भक्ति में डूबे हनुमान जी को देख शनि देव ने उन पर अपनी वक्र दृष्टि डाली. लेकिन कोई प्रभाव नहीं हुआ. इससे क्रोधित होकर शनि देव ने हनुमान जी को ललकारते हुए कहा कि हे वानर, देख कौन सामने आया है? हनुमान जी ने शनि देव पर कोई ध्यान नहीं दिया और अपनी भक्ति में लीन रहे. शनि देव ने सभी प्रयास कर लिए, लेकिन हनुमान जी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो शनि देव का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया. तनाव और गुस्से में आकर शनि देव ने एक बार फिर प्रयास किया और कहा हे वानर, आंखें खोल. मैं शनि देव तुम्हारी सुख-शांति को नष्ट करने आया हूं. इस संसार में ऐसा कोई नहीं, जो मेरा सामना कर सके. शनि देव को ये विश्वास था कि ऐसा करने से हनुमान जी भयभीत हो जाएंगे और क्षमा मांगेगे. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. बहुत प्रयास करने पर हनुमान जी ने बहुत ही सहज भाव से पूछा कि महाराज आप कौन हैं? इस बात को सुनकार शनि देव को और क्रोध आ गया. शनि देव, हनुमान जी से बोले अभी इसी समय में मैं तुम्हारी राशि में प्रवेश करने जा रहा हूं, तब समझ में आएगा कि मैं कौन हूं. इस बार भी हनुमान जी ने शनि देव से कहा कि आप कहीं और जाएं, और उन्हें अपने प्रभु का स्मरण करने दें, विघ्न न डालें.शनि देव को हनुमान जी ने ऐसे सिखाया सबकशनि देव को हनुमान जी की ये बात कतई पसंद नहीं और ध्यान लगाने जा रहे, हनुमान जी की भुजा पकड़ी ली और अपनी तरफ खींचने लगे. हनुमान जी को लगा, जैसे उनकी भुजा को किसी ने दहकते अंगारों पर रख दिया हो. उन्होंने तुरंत एक झटके से अपनी भुजा शनि देव की पकड़ से छुड़ाया. इसके बाद शनि ने विकराल रूप धारण उनकी दूसरी बांह को पकड़नी की कोशिश की तो हनुमान जी को हल्का सा क्रोध आ गया और उन्होनें अपनी पूंछ में शनि देव को लपेट लिया. शनि देव का अहंकार और क्रोध तब भी कम नहीं हुआ. शनि देव ने हनुमान जी से बोले, तुम तो क्या तुम्हारे प्रिय श्रीराम भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते. इस पर हनुमान जी को अत्यंत क्रोध आ गया और पूंछ में लपेट कर शनि देव को पहाड़ों पर वृक्षों पर खूब उठा-उठा कर पटका और रगड़ा. इससे शनि देव का हालत खराब हो गई. शनि देव ने मांगी देवताओं से मददशनि देव ने मदद से मदद मांगी और रक्षा करने के लिए कहा. लेकिन कई भी देवता मदद के लिए आगे नहीं आया. अंत में शनि देव को अपनी गलत का अहसास हुआ और बोले, दया करें वानरराज. मुझे अपनी उद्दंडता का फल मिल गया. मुझे क्षमा करें. भविष्य में आपकी छाया से भी दूर रहूंगा. तब हनुमान जी बोले मेरी छाया ही नहीं मेरे भक्तों की छाया से भी दूर रहने का वचन देना होगा. शनि देव ने हनुमान जी को ऐसा ही वचन दिया. इसीलिए शनि देव हनुमान भक्तों को परेशान नहीं करते हैं.

शनि देव के सट्टे पर बैठना एक प्रसिद्ध कथा

जिसमें बताया जाता है कि शनि देव के सट्टे पर बैठने से व्यक्ति को कष्टों से मुक्ति मिलती है। यह कथा शनि भक्तों के बीच विशेष रूप से प्रचलित है।कथा के अनुसार, एक बार शनि देव ने राजा बलि के दरबार में भव्यता से आकर अपना सट्टा लगा दिया। राजा बलि ने शनि देव को बड़े आदर से स्वागत किया और उन्हें बैठने के लिए विशेष सिंहासन प्रदान किया।शनि देव के सट्टे पर बैठने से पूर्व, शनि देव ने एक विशेष शर्त रखी कि जब भी कोई व्यक्ति उन्हें देखेगा, तो वह व्यक्ति सीधे पेड़ पर चढ़कर सट्टे को छू सकेगा। यह शर्त राजा बलि ने स्वीकार ली।
इसके बाद, राजा बलि ने शनि देव का सट्टा लगाने के लिए विशेष उपकरण तैयार किए और शनि देव को सट्टे पर बिठा दिया।राजा बलि ने अपने अधिकारों को देखते हुए सट्टे के अधीन अधिक से अधिक समय बिताने की कोशिश की, लेकिन उन्हें शनि देव के सट्टे पर बैठने के कारण वह बहुत दुखी हो गए।फिर भी, राजा बलि ने धैर्य से इंतज़ार किया और अंततः उन्हें शनि देव के आशीर्वाद मिले। शनि देव के आशीर्वाद से राजा बलि के कष्ट दूर हुए और उन्हें बहुत समृद्धि प्राप्त हुई।इस कथा से यह संदेश मिलता है कि शनि देव के सट्टे पर बैठने से व्यक्ति के कष्टों का निवारण होता है और उन्हें समृद्धि मिलती है। शनि देव के सट्टे पर बैठने का व्रत और पूजा करने से लोग अपने जीवन में सुख, समृद्धि, और शांति की प्राप्ति करते हैं।

हनुमान जी से क्यों डरते हैं शनिदेव, पढ़िए ये कथा

एक बार की बात है। पवनपुत्र हनुमान जी अपने आराध्य श्री राम जी के किसी कार्य में व्यस्त थे। तभी वहां से शनि देव गुजर रहे थे। उनके मन में हनुमान जी को परेशान करने की शरारत आई। वे बजरंगबली के पास पहुंचे और उनको परेशान करने लगे। तब हनुमान जी ने उनको चेताया। बोले कि वे अपने प्रभु राम का काम कर रहे हैं, इसमें वे विघ्न न डालें। लेकिन हनुमान जी की चेतावनी का उन पर असर नहीं हुआ। वे फिर परेशान करने लगे।
तब हनुमान जी ने शनि देव को अपनी पूंछ में जकड़ लिया और राम काज में व्यस्त हो गए। शनि देव ने अपना पूरा प्रयास किया, ताकि वे बजरंगबली की जकड़ से मुक्त हो जाएं, लेकिन ये कहां संभव था। हनुमान जी काम कर रहे थे और रह-रहकर उनकी पूंछ इधर-उधर डोल रही थी। पूंछ के हिलने से शनि देव को कई जगह पर चोटें आ गईं। वो पीड़ा से कराह उठे। उधर जब हनुमान जी राम काज को पूर्ण कर लिए, तब उनको शनि देव का स्मरण हुआ। उन्होंने शनि देव को अपनी पूंछ से मुक्त किया। शनि देव ने हनुमान जी से अपनी शरारत के लिए क्षमा मांगी और कहा ​कि वे कभी भी राम काज या हनुमान जी के कार्य में व्यस्त लोगों को परेशान नहीं करेंगे।
उन्होंने हनुमान जी से अपने चोटों पर लगाने के लिए सरसों का तेल मांगा। सरसों का तेल लगाने के बाद उनकी पीड़ी कम हुई। तब उन्होंने कहा कि जो कोई उनको सरसों का तेल चढ़ाएगा, तो उसे उसके कष्टों से मुक्ति मिलेगी। इसके बाद से ही शनिवार के दिन शनि देव को सरसों का तेल अर्पित करने की परंपरा शुरू हो गई। साथ ही शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा की जाने लगी, ताकि शनि देव के प्रकोप का सामना न करना पड़े और जिस प्रकार हनुमान जी ने शनि देव की पीड़ा कम की थी, उसी प्रकार वे अपने भक्तों की भी पीड़ा दूर करेंगे। 

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