हनुमान जी द्वारा रचित रामायण है,
जिसे अनुमानस्कृत रामायण या हनुमान रामायण भी कहा जाता है। यह एक प्राचीन रामायण कथा है, जिसे महाकाव्य के रूप में जाना जाता है। हनुमान जी को वाल्मीकि मुनि द्वारा रची गई वाल्मीकि रामायण में एक महत्वपूर्ण पात्र माना जाता है, जो भगवान राम के विश्वासपूर्व सेवक और भक्त थे।हनुमान रामायण का विशेष रुप से अनुमानस्कृत भाग, सुंदरकांड, है। सुंदरकांड में हनुमान जी की वीरता, उनका भगवान राम के लिए प्रेम और भक्ति, उनके असाधारण शक्तियों का वर्णन है, जो लंका यात्रा के दौरान हुई थी। सुंदरकांड में, हनुमान जी ने वानर सेना के साथ मिलकर भगवान राम की दीर्घकालीन तलाश के दौरान लंका जाकर भगवान राम की अद्भुत वीरता के वर्णन के साथ-साथ माता सीता को उनकी संदेहाग्रस्त स्थिति से छुड़ाने के लिए भी अपनी प्रतिबद्धता और साहस का प्रदर्शन किया था।
रामायण के अन्य संस्करणों में भी हनुमान जी का महत्वपूर्ण योगदान दर्शाया गया है, लेकिन हनुमान रामायण में उनकी वीरता, भक्ति, और सेवा का खास रूप से जिक्र है। भारतीय संस्कृति में हनुमान जी को भगवान के भक्त के रूप में बहुत महत्व दिया जाता है और उन्हें बजरंगबली, पवनपुत्र, संकटमोचन, आदि कई नामों से भी जाना जाता है।बजरंगबली ने उनसे मायूसी की वजह पूछी तो महर्षि ने कहा कि मैंने कठिन परिश्रम से रामायण लिखी, लेकिन आपकी रामायण देखकर लगता है कि अब मेरी लिखी रामायण को महत्व नहीं मिलेगा. आपने वह सब कुछ लिख दिया है, जिसके आगे मेरी रामायण कहीं नहीं टिक रही. यह सुनकर हनुमानजी ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि चिंता ना करें, इतना कहकर बजरंगबली ने हनुमद रामायण लिखी शिला एक कंधे पर तो दूसरे पर महर्षि वाल्मीकि को बिठा लिया. हजारों मील दूर ले समुद्र में उन्होंने अपनी लिखी हनुमद रामायण राम को समर्पित करते हुए फेंक दी
फिर गुणगान लिखने के लिए जन्म लूंगा हनुमान
महर्षि वाल्मीकि ने कहा कि रामभक्त आप धन्य हैं. आपकी महिमा के गुणगान के लिए मुझे एक और जन्म लेना होगा. मैं वचन देता हूं कि कलियुग में मैं एक और रामायण लिखने के लिए जन्म लूंगा. वह रामायण आम लोगों की भाषा में होगी. माना जाता है कि कलियुग में रामचरितमानस लिखने वाले गोस्वामी तुलसीदासजी महर्षि वाल्मीकि का ही दूसरा जन्म थे. रामचरितमानस लिखने से पहले उन्होंने हनुमान चालीसा लिखी, फिर हनुमानजी का गुणगान करते हुए उनकी प्रेरणा से अपनी रामचरितमानस पूरी की.कालीदास के काल में बहकर आई पट्टालिका
उन्होंने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर रचनाएँ की और उनकी रचनाओं में भारतीय जीवन और दर्शन के विविध रूप और मूल तत्त्व निरूपित हैं। कालिदास अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण राष्ट्र की समग्र राष्ट्रीय चेतना को स्वर देने वाले कवि माने जाते हैं और कुछ विद्वान उन्हें राष्ट्रीय कवि का स्थान तक देते हैं।
कालीदास के काल में एक पट्टालिका समुंदर किनारे मिली तो उसे सार्वजनिक जगह रख दिया गया, जहां विद्यार्थी उस पर लिखी लिपि समझ और पढ़ सकें. समझा जाता है कि कालीदास ने उसे समझ लिया था, वह जान गए थे कि यह पट्टालिका का हनुमान जी की लिखी हनुमद रामायण का ही अंश है, जो समुद्र के पानी के साथ बहते हुए उन तक पहुंच गई थी.
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