शनि देव कौन थे जानिए / Know who was Shani Dev

शनि देव कौन थे जानिए 

शनि देव, जिन्हें शनि ग्रह का देवता भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक प्रमुख देवता हैं। वे वैदिक पुराणों और ज्योतिष शास्त्र में उल्लेखित हैं। शनि ग्रह सूर्य से छःवां और पृथ्वी से दुसरे स्थान पर स्थित है।
शनि देव को दंडाधिपति भी कहा जाता है क्योंकि उनके धर्मराज यानी यमराज के साथ दोनों हाथों में एक दंड होता है, जो उनके धारण किये हुए हैं। शनि देव के साथ उनके वाहन के रूप में एक वृषभ (बैल) को भी पाया जाता है।
शनि देव के प्रमुख मंत्र हैं - "ॐ शं शनैश्चराय नमः" और "ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः"।
शनि देव का पूजन काल सोमवार को भी किया जाता है। उन्हें दोषों के निवारण, शुभ फल की प्राप्ति, धैर्य, ताक़त और संपत्ति की वृद्धि के लिए पूजा जाता है।
शनि देव की कथाएँ और उनके विभिन्न रूपों को समझने के लिए, विभिन्न पुराणों और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया जा सकता है। उनके दिव्य गुणों का स्मरण करने से भक्ति और निष्ठा में वृद्धि होती है।

शनि देव की कथा विभिन्न पुराणों में प्रमुखतः दो कथाएं हैं 

- एक है शनि देव का जन्म कथा और दूसरी है शनि देव के राजा हरिश्चंद्र के साथ जुड़ी हुई कथा। यहां हम उनमें से दोनों कथाओं को संक्षेप में सुना सकते हैं:
1. शनि देव का जन्म कथा:
कई प्राचीन पुराणों में लिखा गया है कि शनि देव का जन्म देवी चाया और सूर्य देव के पुत्र के रूप में हुआ था। चाया देवी सूर्य देवता की पत्नी थीं, लेकिन उन्हें अपने पति की दृष्टि से बचने के लिए सन्यासी जीवन बिताना पड़ा था। चाया देवी ने अपने तपोबल से भगवान सूर्य को प्रसन्न किया और उनसे शनि देव की उत्पत्ति का वरदान मांगा। भगवान सूर्य ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और शनि देव को उत्पन्न किया।
2. राजा हरिश्चंद्र और शनि देव:
एक और प्रसिद्ध कथा में बताया गया है कि शनि देव के एक बार राजा हरिश्चंद्र ने अपने गुणों के आधार पर शनि देव को भगवान मानने से इनकार कर दिया था। यह उनके गर्व में एक बड़ी भूल थी।
इसके परिणामस्वरूप, राजा हरिश्चंद्र के जीवन में भयानक कष्ट और दुख आने लगे। उन्हें धन, सम्पत्ति, वंश और स्वास्थ्य की कठिनाइयाँ आने लगीं। उन्हें इस दुर्घटना का कारण समझ नहीं आया और वे ज्योतिषियों से परामर्श लेने चले गए। ज्योतिषियों ने उन्हें बताया कि शनि देव के अपने गर्व की प्रतिफलस्वरूप उन्हें यह प्राप्त हुआ है।
राजा हरिश्चंद्र ने ज्योतिषियों के कहे अनुसार शनि देव का पूजन करना शुरू किया और उन्हें अपने अहंकार को छोड़कर हर विपत्ति से मुक्ति प्राप्त हुई। इससे उनके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन हुआ।
ये थीं कुछ प्रमुख शनि देव की कथाएं, जो उनके महत्व और प्रभाव को दर्शाती हैं। उनकी भक्ति, निष्ठा, और धार्मिकता से लोग उनके दिव्य आशीर्वाद को प्राप्त करते हैं।

शनि देव की कथा से जुड़े पाँच महत्वपूर्ण तथ्य (facts) निम्नलिखित हैं:

1. शनि देव का जन्म: शनि देव को वैदिक पुराणों के अनुसार देवी चाया और सूर्य देव के पुत्र के रूप में जन्मा था। चाया देवी सूर्य देवता की पत्नी थीं, लेकिन उन्हें अपने पति की दृष्टि से बचने के लिए सन्यासी जीवन बिताना पड़ा था। चाया देवी ने अपने तपोबल से भगवान सूर्य को प्रसन्न किया और उनसे शनि देव की उत्पत्ति का वरदान मांगा।
2. धार्मिक और न्यायप्रिय दंडाधिपति: शनि देव को धार्मिक और न्यायप्रिय दंडाधिपति के रूप में जाना जाता है। वे धार्मिक संसार में न्याय और ईमानदारी के प्रतीक हैं। शनि देव का प्रभाव व्यक्ति के कर्मों के अनुसार होता है, और वे कर्मफल के अनुसार धंधेरे या शुभ फल की प्रदान करते हैं।
3. शनि देव और राजा हरिश्चंद्र: एक प्रसिद्ध कथा में बताया गया है कि शनि देव के एक बार राजा हरिश्चंद्र ने अपने गुणों के आधार पर शनि देव को भगवान मानने से इनकार कर दिया था। इसके परिणामस्वरूप, राजा हरिश्चंद्र को भयानक कष्ट और दुखों का सामना करना पड़ा था, जो उन्हें शनि देव को मानने के लिए प्रेरित किया।
4. शनि देव की वाहन: शनि देव का वाहन एक वृषभ (बैल) होता है। इसलिए शनि देव को दंडाधिपति और वृषभरूपी देवता भी कहा जाता है। शनि देव को वृषभ के साथ चारों और घूमते देखा जाता है।
5. शनि जयंती: शनि जयंती हर साल के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाई जाती है। इस दिन भक्त शनि देव को विशेष भक्ति और पूजा करते हैं। शनि जयंती को दंडाधिपति की पूजा का एक अवसर माना जाता है, जिससे उनके अशुभ दृष्टि और बुरे प्रभावों का निवारण होता है।ये थे कुछ महत्वपूर्ण तथ्य शनि देव की कथा से सम्बंधित। भक्ति और निष्ठा से शनि देव की पूजा करने से व्यक्ति को सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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