हनुमान जी हवन के लिए आवश्यक सामग्री,Ingredients needed for hanuman ji havan

हनुमान जी हवन के लिए आवश्यक सामग्री

हनुमान जी के हवन के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है। हवन के लिए ये सामग्री आमतौर पर धार्मिक समारोहों और पूजाओं में प्रयोग की जाती हैं। यदि आप हवन का आयोजन करने की सोच रहे हैं, तो इसे धार्मिक पंडित या पूजा प्रशिक्षित व्यक्ति से संपर्क करके करें ताकि आपको सही विधि से पूजा करने के लिए मार्गदर्शन मिल सके।

हनुमान जी हवन के लिए आवश्यक सामग्री:

  • दूर्वा घास की माला: हनुमान जी की पूजा में दूर्वा घास काफी महत्वपूर्ण होती है। इसके माला को हवन के दौरान उपयोग करें।
  • गोमय और कन्द: हवन के लिए गोमय (गाय के गोबर) और कन्द (बकरी के गोबर) का उपयोग भी होता है।
  • अग्नि की द्रव्य: हवन के लिए लकड़ी की अग्नि को जलाने के लिए घी और कपूर का उपयोग करते हैं।
  • धूप और दीप: धूप और दीप जलाने के लिए कुल्हड़ी और बत्ती की आवश्यकता होती है।
  • पूजा सामग्री: वस्त्र, अखंड दिया, फूल, धूप, दीप, इत्र, चावल, कुमकुम, हल्दी, कलश, सुपारी, लौंग, इलायची, अगरबत्ती और नारियल को पूजा सामग्री के रूप में इकट्ठा किया जा सकता है।
  • हनुमान चालीसा और आरती: हवन के बाद हनुमान चालीसा और हनुमान जी की आरती का पाठ करें।

हनुमान जी के हवन के लिए ज़रूरी सामग्री-

  • लाल फूल
  • हवन कुंड
  • हवन की लकड़ियां
  • रोली
  • कलावा
  • गंगाजल
  • एक जल लोटा
  • पांच तरह के फल
  • पंचामृत
  • लाल लंगोट 

इसके अलावा, हनुमान जी के हवन के लिए पूजा सामग्री भी चाहिए:-

  • वस्त्र, अखंड दिया, फूल, धूप, दीप, इत्र, चावल, कुमकुम, हल्दी, कलश, सुपारी, लौंग, इलायची, अगरबत्ती, नारियल. 
  • हनुमान जी का हवन मंगलवार के दिन करना सबसे शुभ माना जाता है. हवन के दौरान, हनुमान जी के मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए. हवन के बाद, हनुमान जी को गंध, सिंदूर, कुंकुम, चावल, फूल और हार अर्पित करना चाहिए. 
  • हवन के लिए, आम की लकड़ियां, शुद्ध देसी घी, और हवन सामग्री लेकर गायत्री मंत्र से आहुतियां देनी चाहिए. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, हवन में कम से कम 108 बार आहुति देनी चाहिए. 
  • हवन की समाप्ति के बाद, भगवान गणेश और मां दुर्गा की आरती करनी चाहिए. हवन खत्म होने के बाद, नारियल और सुपारी अग्नि में डालनी चाहिए. 
यह एक सामान्य सूची है जो हवन के लिए उपयोग की जाती है। हालांकि, पूजा के अनुसार यह सामग्री भिन्न-भिन्न हो सकती है। हवन की विधि और सामग्री के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए एक पंडित से संपर्क करना सुझावित होता है।

मंत्र "ॐ हं हनुमते नमः" का अर्थ है

  • "ॐ" : यह ब्रह्मांड के प्राणवायु या एक शब्दित ध्वनि का प्रतीक है जो आद्य और अनंत को दर्शाता है। यह सबके मूल मंत्र में से एक है और ध्यान में शांति, स्थिरता और एकाग्रता का संबोधन करता है।
  • "हं" : यह भगवान हनुमान का बीज मंत्र है। इसका उच्चारण क्रोध, प्रकोप, और शक्ति को सुनिश्चित करता है। हं से भगवान हनुमान के वीरता, साहस, और अद्भुत शक्तिशाली स्वरूप का संबोधन किया जाता है।
  • "हनुमते" : यह मंत्र में हनुमान जी को समर्पित है और इसके द्वारा उन्हें नमस्कार किया जाता है। इससे भक्त अपने मन को हनुमान जी के संबंध में एकाग्र करते हैं और उन्हें अपने जीवन में आनंद, शक्ति, और समृद्धि का साक्षात्कार करने की प्रार्थना करते हैं।
इस मंत्र का जाप हनुमान जी की कृपा को प्राप्त करने, भक्ति और समर्पण की भावना को बढ़ाने, संकटों से मुक्ति प्राप्त करने, और आत्मविकास को प्रोत्साहित करने में सहायक माना जाता है। हानि से बचाने, शुभ कार्यों में सफलता प्राप्त करने, और भगवान हनुमान के सानिध्य में सुरक्षा का आनंद उठाने के लिए भी यह मंत्र जप किया जाता है।ध्यान देने वाली बात है कि मंत्रों का उच्चारण और जप करने से पहले एक धार्मिक गुरु या पंडित से परामर्श लेना अच्छा होता है ताकि आप सही विधि से मंत्र जप कर सकें और इसके शुभ प्रभाव को प्राप्त कर सकें।

श्रीमद्वाल्मीकिरामायणे किष्किन्धाकाण्डे श्रीरामवीरचरित्रे किष्किन्धाकाण्डः (काण्डं ६६)

दृष्ट्वा तु पवनसुतं वेगवान् कारुण्यरूपं मारुत्तुल्यवेगं विना नभस्वानयनाद्युतिं।
तस्य प्रसादात्पथिको मुख्यश्च वायुसुतस्य तु भक्त्या पुनः श्रेष्ठमिमं श्लोकं बभाषे दुर्मनाः॥
  • अर्थ:
अहिरावण की मृत्यु के बाद, श्रीराम ने हनुमान जी को देखा, जिनकी वेगशाली रूप के समान कोई भी नहीं था। हनुमान जी के प्रत्यक्ष दर्शन करने से प्रेरित हुआ, प्रशंसात्मक और कारुणिक भाव से भरा हुआ, एक यात्री ने वायुपुत्र हनुमान जी से प्रश्न किया, और उनके समर्थ वेग और दिव्य नेत्रों के बिना कैसे वे नभस्वान और अन्य देवताओं की उत्तेजना के बिना अपने लक्षणों को प्रकट करते हैं? इस प्रश्न का समाधान करते हुए उन्होंने भक्तिपूर्वक यह श्रेष्ठ श्लोक भाषण किया:

"दृष्ट्वा तु पवनसुतं वेगवान् कारुण्यरूपं मारुत्तुल्यवेगं विना नभस्वानयनाद्युतिं।
तस्य प्रसादात्पथिको मुख्यश्च वायुसुतस्य तु भक्त्या पुनः श्रेष्ठमिमं श्लोकं बभाषे दुर्मनाः॥"
  • अर्थ:
इस श्रेष्ठ श्लोक के माध्यम से हनुमान जी ने अपनी करुणा, शक्ति, और अद्भुत रूप के विषय में बात की और भक्त ने उन्हें दर्शन करके अद्भुत अनुभव प्राप्त किया। यह श्लोक उनके महानतम गुणों की प्रशंसा करता है और हमें उन्हें समर्पित होने और उनके भक्ति में लगे रहने के लिए प्रेरित करता है।

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