भगवान राम के गुरु के बारे में / About Lord Rama's Guru

भगवान राम के गुरु  के बारे में 

भगवान राम के गुरु के रूप में विश्र्वामित्र और वशिष्ठ दोनों महत्वपूर्ण आचार्य थे। भगवान राम के पिता राजा दशरथ के दरबार में महर्षि विश्र्वामित्र ने राम और लक्ष्मण को सन्यास के लिए लेने की इच्छा देखकर उन्हें अपने साथ ले जाने की बात कही थी। इस प्रसंग को रामायण में "बालकाण्ड" में वर्णित किया गया है। विश्र्वामित्र ने राम-लक्ष्मण को राक्षसों से लड़ने की त्रेतायुगीन महाकाव्य महर्षि वशिष्ठ के पास भेजा था, जहां राम और लक्ष्मण ने धर्म, नीति, और ब्रह्मविद्या की शिक्षा प्राप्त की थी।

इसके अलावा, भगवान राम के अन्य गुरु भी थे, जैसे कि गुरुकुल में उन्हें शिक्षा देने वाले विद्यार्थियों के गुरु भी थे। लेकिन विश्र्वामित्र और वशिष्ठ को भगवान राम के मुख्य आचार्य और गुरु माना जाता है।

कथा भगवान राम और उनके गुरु  वशिष्ठ

कथाएँ भगवान राम और उनके गुरु विश्र्वामित्र और वशिष्ठ के बारे में विभिन्न पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में मिलती हैं। ये कथाएँ रामायण, भागवत पुराण, विष्णु पुराण, श्रीमद्भागवतम्, रामचरितमानस, वाल्मीकि रामायण आदि में प्रसिद्ध हैं। नीचे एक मुख्य कथा दी गई है, जिसमें भगवान राम, विश्र्वामित्र और वशिष्ठ के बारे में वर्णन किया गया है:
एक दिन, विश्वामित्र ऋषि आश्रम में ध्यान लगाए हुए थे। उन्हें तपस्या करते देखकर भगवान विष्णु के दो पुत्र लक्ष्मण और राम, सहायक बनने की इच्छा रखने लगे। विश्वामित्र ने इन दोनों भाइयों को अपने साथ लेने की इच्छा देखी और उन्हें गुरुकुल ले गए, जहां उन्हें धार्मिक शिक्षा और योग्यता प्रदान की गई।
गुरुकुल में, विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण को धर्म, नीति, और विज्ञान की शिक्षा दी, जिससे वे एक समर्थ, विद्वान्, और सजग योद्धा बने। उन्हें विभिन्न युद्ध और धर्मसंबंधी विधियों का भी ज्ञान दिया गया। राम और लक्ष्मण को अपने गुरुदेव के द्वारा दिए गए उपदेशों ने उन्हें एक महान और धर्मपरायण राजा के रूप में उभारा।
इस प्रकार, भगवान राम के गुरुओं विश्वामित्र और वशिष्ठ ने उन्हें उनकी धार्मिक और राजनीतिक शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जो उन्हें एक उत्तम राजा बनने में सहायता करा।

भगवान राम के गुरु विश्र्वामित्र के बारे में कई रोचक तथ्य

1. विश्र्वामित्र ऋषि एक राजर्षि थे और उन्हें त्रेता युग के महान संत और ऋषि माना जाता है।
2. वशिष्ठ ऋषि को ब्रह्मा के सपुत्र और ब्रह्मा जी का मनसपुत्र माना जाता है।
3. विश्र्वामित्र ने तपस्या और त्याग के बल पर ब्रह्मा से बहुत शक्तिशाली मंत्र प्राप्त किए थे।
4. वशिष्ठ ऋषि को ब्रह्मर्षि, महर्षि, मनसपुत्र, और प्रजापति माना जाता है।
5. विश्र्वामित्र ने वेद-विद्या के ज्ञान को प्राप्त कर ब्रह्मर्षि का दर्जा प्राप्त किया।
6. वशिष्ठ ऋषि को सृष्टि के सृजनकर्ता और विविध देवताओं के पिता के रूप में माना जाता है।
7. विश्र्वामित्र ऋषि ने गायत्री मंत्र का जप किया था और उन्हें गायत्री मंत्र का खोजकर्ता माना जाता है।
8. वशिष्ठ ऋषि ने सूर्य वंशी का शाप दिया था, जिसके कारण राजा हरिश्चंद्र ने वंश को छोड़ दिया था।
9. विश्र्वामित्र ने तपस्या के द्वारा इंद्र और देवता युद्ध को रोका था।
10. वशिष्ठ ऋषि की पत्नी का नाम अरुंधति था और वे सती संतान ऋषि विवाह थे।
11. विश्र्वामित्र ऋषि ने तपस्या के बाद ब्रह्मा से ब्रह्मर्षि का दर्जा प्राप्त किया था।
12. वशिष्ठ ऋषि की एक अप्सरा सहोदरी नामक पुत्री थी, जिन्हें वेदवती के रूप में भगवान विष्णु ने प्रत्यक्ष दर्शन दिया था।
13. विश्र्वामित्र ने तपस्या से विश्व में सम्पूर्ण जगत का विनाश करने के लिए वंशी तंत्र की रचना की थी।
14. वशिष्ठ ऋषि को इक्ष्वाकु वंश का गोत्री ऋषि माना जाता है, जिसमें भगवान राम भी शामिल थे।
15. विश्र्वामित्र ऋषि ने राजा दशरथ के यज्ञ को रक्षित किया था, जिसके कारण राजा दशरथ ने उन्हें गुरु बना लिया था।
16. वशिष्ठ ऋषि को दक्ष वंश का गोत्री ऋषि माना जाता है, जो सती सत्त्विक भाव से जन्मे थे।
17. विश्र्वामित्र ऋषि ने राजा हरिश्चंद्र के यज्ञ के लिए ब्रह्मर्षि वशिष्ठ का उपयोग किया था।
18. वशिष्ठ ऋषि को महर्षि का दर्जा प्राप्त हुआ था, जिसके फलस्वरूप उन्हें राजा दशरथ के राजगुरु बनाया गया।
19. विश्र्वामित्र ऋषि ने सत्यव्रत को तपस्या के द्वारा राजा बनाया था, जिससे उन्हें त्रिशंकु नामा भी मिला था।
20. वशिष्ठ ऋषि को महर्षि विश्वामित्र के शिष्य माना जाता था, जिससे उन्हें त्रेता युग के महत्वपूर्ण गुरु बना दिया गया था।
21. विश्र्वामित्र ऋषि और वशिष्ठ ऋषि दोनों ही भगवान राम के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में सहायक रहे और उन्होंने राम को धर्म, नैतिकता, और जीवन के मूल्यों की शिक्षा दी।

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