शेषनाग और विष्णु भगवान की कहानी
शेषनाग और विष्णु भगवान की कहानी हिन्दू पौराणिक कथाओं में प्रसिद्ध है। यह कथा महाविष्णु पुराण, भागवत पुराण और विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र जैसे ग्रंथों में वर्णित है।
कालचक्र (वैदिक संसार-चक्र) के आदि में, जब ब्रह्मा ने विश्व की रचना की तो उन्होंने एक विष्णुभक्त आदिशेष को उत्पन्न किया। आदिशेष एक विशाल भगवान शेषनाग के रूप में जाना जाता है। वह अनंत शक्ति और अद्वैत ब्रह्म विष्णु का अवतार है।शेषनाग ब्रह्मा के साथ एक दिव्य विवाह सम्पन्न किया था और उसके बाद वह विष्णु के अवतार के रूप में पृथ्वी पर आया। उनके एक साथी अवतार राम और कृष्ण थे, जिन्होंने पृथ्वी पर विभिन्न लीलाओं और कार्यों का आयोजन किया।
एक बार, जब देवताओं और असुरों के बीच अमृत के लिए समुद्र मंथन हो रहा था, तो शेषनाग भी मंथन में भाग लेने वालों में थे। मंथन के दौरान, समुद्र मंथन से उत्पन्न होने वाले विभिन्न रत्नों
में से एक हाथीदंत निकला। इस हाथीदंत को देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष के कारण लेने में विफलता हुई तो शेषनाग ने उसे अपने सर्वशक्तिमान शयनरूप विष्णु भगवान के ऊपर स्थान दिया। इससे पश्चात विष्णु ने हाथीदंत को "ऐरावत" नाम दिया और उसे अपने वाहन के रूप में स्वीकार किया।
शेषनाग का एक अन्य महत्वपूर्ण योगदान है उनका समर्थन पद्मनाभ अवतार के समय। जब ब्रह्मा की बहुतायत से गलतियों के कारण पृथ्वी पर असुर बढ़ गए, तो विष्णु ने पद्मनाभ रूप धारण किया और उन्होंने देवताओं के साथ इस्तेमाल की अपूर्व युद्ध चक्र शुरू किया। इस युद्ध में शेषनाग ने संघर्ष में मदद की और ब्रह्मा द्वारा प्रदत्त अमृत के प्रयोग से असुरों का संहार किया।
इस प्रकार, शेषनाग विष्णु भगवान की आदि शक्ति, सहायक और नितांत समर्थन हैं। उनका विष्णु भगवान के अवतारों के साथ गहरा संबंध है और वे ईश्वरीय नागों की एक महान प्रतीक हैं
। यह कहानी हिन्दू धर्म में अपार महत्व रखती है और शेषनाग को महाविष्णु के अवतारों के साथ आदर्शता का प्रतीक माना जाता है।
कालचक्र (वैदिक संसार-चक्र) के आदि में, जब ब्रह्मा ने विश्व की रचना की तो उन्होंने एक विष्णुभक्त आदिशेष को उत्पन्न किया। आदिशेष एक विशाल भगवान शेषनाग के रूप में जाना जाता है। वह अनंत शक्ति और अद्वैत ब्रह्म विष्णु का अवतार है।शेषनाग ब्रह्मा के साथ एक दिव्य विवाह सम्पन्न किया था और उसके बाद वह विष्णु के अवतार के रूप में पृथ्वी पर आया। उनके एक साथी अवतार राम और कृष्ण थे, जिन्होंने पृथ्वी पर विभिन्न लीलाओं और कार्यों का आयोजन किया।
एक बार, जब देवताओं और असुरों के बीच अमृत के लिए समुद्र मंथन हो रहा था, तो शेषनाग भी मंथन में भाग लेने वालों में थे। मंथन के दौरान, समुद्र मंथन से उत्पन्न होने वाले विभिन्न रत्नों
में से एक हाथीदंत निकला। इस हाथीदंत को देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष के कारण लेने में विफलता हुई तो शेषनाग ने उसे अपने सर्वशक्तिमान शयनरूप विष्णु भगवान के ऊपर स्थान दिया। इससे पश्चात विष्णु ने हाथीदंत को "ऐरावत" नाम दिया और उसे अपने वाहन के रूप में स्वीकार किया।
शेषनाग का एक अन्य महत्वपूर्ण योगदान है उनका समर्थन पद्मनाभ अवतार के समय। जब ब्रह्मा की बहुतायत से गलतियों के कारण पृथ्वी पर असुर बढ़ गए, तो विष्णु ने पद्मनाभ रूप धारण किया और उन्होंने देवताओं के साथ इस्तेमाल की अपूर्व युद्ध चक्र शुरू किया। इस युद्ध में शेषनाग ने संघर्ष में मदद की और ब्रह्मा द्वारा प्रदत्त अमृत के प्रयोग से असुरों का संहार किया।
इस प्रकार, शेषनाग विष्णु भगवान की आदि शक्ति, सहायक और नितांत समर्थन हैं। उनका विष्णु भगवान के अवतारों के साथ गहरा संबंध है और वे ईश्वरीय नागों की एक महान प्रतीक हैं
। यह कहानी हिन्दू धर्म में अपार महत्व रखती है और शेषनाग को महाविष्णु के अवतारों के साथ आदर्शता का प्रतीक माना जाता है।
शेषनाग और विष्णु भगवान को समर्पित मंत्रों का जाप किया जाता है।
शेषनाग और विष्णु भगवान को समर्पित कुछ मंत्रों का उपयोग किया जाता है। निम्नलिखित मंत्रों को जाप करने से आप इन देवताओं की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं:
ये थे कुछ महत्वपूर्ण तथ्य शेषनाग और विष्णु भगवान के बारे में। यह आपको इन प्रमुख चरित्रों की महत्ता और पौराणिक गहनता को समझने में मदद करेंगे।
- शेषनाग मंत्र: "ॐ नागाय नमः" (Om Nagaya Namah)
- विष्णु मंत्र: "ॐ नमो नारायणाय" (Om Namo Narayanaya)
- विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र: विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र विभिन्न नामों की संख्या को उल्लेख करता है, जिन्हें जाप करने से विष्णु भगवान का आशीर्वाद मिलता है।
- गरुड़ मंत्र: "ॐ गरुड़ाय नमः" (Om Garudaya Namah)
शेषनाग (Sheshnag) और विष्णु भगवान (Vishnu Bhagwan) के बारे में निम्नलिखित तथ्य जानने में आपको आनंद मिलेगा
- शेषनाग का अर्थ होता है "शेष" यानी शेष और "नाग" यानी सर्प। वह एक महान नाग है जो विष्णु भगवान के शयन स्थान पर विराजमान होते हैं।
- शेषनाग की गोलाईयों (Coils) की संख्या विभिन्न पुराणों में विभाजित है। कुछ पुराणों में उनकी 5, अन्य में 7, 11, 100 या उससे भी अधिक गोलाईयाँ बताई गई हैं।
- शेषनाग एक अनंत रूप धारण करते हैं, जिसका अर्थ होता है कि उनकी गोलाईयाँ अनंतता को प्रतिष्ठित करती हैं।
- विष्णु भगवान के अवतारों में से एक राम और कृष्ण भी शेषनाग के साथ संबंधित हैं। रामायण में, राम जी ने शेषनाग की पूजा की थी और कृष्ण जी की जन्मकुंडली में भी शेषनाग का उल्लेख है।
- शेषनाग की आंतरिक स्वरूपता में उन्हें पालन करने वाले विष्णु भगवान के रूप में एक सगुण विश्व निर्माण करने की क्षमता होती है। इसलिए, वे भगवान के परम उपास्य हैं जिन्हें सम्पूर्ण संसार पूजता है।
- विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र में शेषनाग को "सर्पाणां पतये" यानी सर्पों के प्रमुख के रूप में उल्लेख किया गया है।
- शेषनाग की उपस्थिति विष्णु भगवान को अद्वैत ब्रह्म और सृष्टि के संचालन की अद्वैत शक्ति के प्रतीक के रूप में दर्शाती है। वे पौराणिक कथाओं और तत्वों के माध्यम से मानव जीवन के आदर्शों और अद्वैत तत्व की महत्वपूर्ण प्रतिष्ठा हैं।
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