भगवान शिव एवं माता पार्वती के प्रेम की पराकाष्ठा 🙏❣️ / The love 🙏❣️ of Lord Shiva and Goddess Parvati
भगवान शिव एवं माता पार्वती के प्रेम की पराकाष्ठा
प्रेम की पराकाष्ठा के लिए किसी विदेशी संदर्भ की जरुरत नहीं है बल्कि भगवान शिव और माता पार्वती का जीवन ऐसा है, जिसमें न केवल खूब सारा प्यार-सम्मान और एक-दूसरे के प्रति समर्पण देखने को मिलता है।
बल्कि उनका वैवाहिक जीवन सच्चे प्रेम का प्रतीक भी है। ऐसा इसलिए क्योंकि माता पार्वती, भगवान शिव की अर्धांगिनी ही नहीं थीं बल्कि उनकी शिष्या भी रहीं। वह अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए अक्सर महादेव से ऐसे-ऐसे प्रश्नों को पूछती थीं, जो आज के समय में जोड़ों को विवाह के तौर-तरीकों सीखने में मदद कर सकते हैं।
दरअसल, एक दिन देवी पार्वती ने देवों के देव महादेव से पूछा- प्रेम क्या है? प्रेम का रहस्य क्या है,? इसका वास्तविक स्वरुप क्या है? इसे भविष्य में किस तरह देखा जाएगा?
इस सवाल का महादेव ने जवाब देते हुए कहा 'प्रेम क्या है, यह तुम पूछ रही हो पार्वती? सत्य तो यह है कि प्रेम के अनेकों रूप को तुमने ही उजागर किया है। तुमसे ही प्रेम की अनेक अनुभूतियां हुई हैं।
तुम्हारे प्रश्न में ही तुम्हारा उत्तर शामिल है। भगवान शिव की बातें सुनकर माता पार्वती ने कहा, 'क्या इन विभिन अनुभूतियों की अभिव्यक्ति संभव है? तो इस पर भगवान शिव बोले, 'सती के रूप में जब तुम अपने प्राण त्यागकर मुझसे दूर चली गई थी, तब मेरा जीवन-मेरा संसार, मेरा दायित्व सब निराधार हो गया। मेरी आंखों से आंसुओं की धाराएं बहने लगी थीं।
तुम्हारे अभाव में मेरे अधूरेपन की अति से इस सृष्टि का अपूर्ण हो जाना ही प्रेम है। तुम्हारे और मेरे पुनर्मिलन कराने हेतु इस समस्त ब्रह्माण्ड का हर संभव प्रयास करना ही प्रेम है। तुम्हारा पार्वती के रूप में फिर से जन्म लेकर मेरे एकांकीपन और मुझे मेरे वैराग्य से बहार निकलने पर विवश करना ही प्रेम है।' खैर, यह बात किसी से छिपी नहीं है कि कई सालों की तपस्या और तमाम तरह की बाधाओं को पार करने के बादही शिव-पार्वती का विवाह हुआ था। ऐसे में आज हम भगवान शिव और माता पार्वती के जीवन से उन प्रेम युक्तियों के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें हम अपने संबंधों में शामिल करके अपने वैवाहिक जीवन को बेहतर बना सकते हैं।
टिप्पणियाँ