भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र के बारे में जानिए
भगवान विष्णु के पास सुदर्शन चक्र का उत्पत्ति सम्बंधित पौराणिक कथा में वर्णित है। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, देवताओं के वंशज कश्यप ऋषि और आदिति देवी के घर में श्रीकृष्ण अवतर लेने के समय एक यज्ञ हुआ था। इस यज्ञ के दौरान एक पराक्रमी दैत्य नामक राक्षस आक्रमण करने की कोशिश करता है, जिसे उसकी बहनें हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्षी हैं। यज्ञ का रक्षण करते हुए, भगवान विष्णु ने अपने शंख, चक्र, गदा और पद्म के रूप में चार आयुध धारण किए।
हिन्दू धर्म में सभी देवी-देवताओं के अपने अलग-अलग अस्त्र हैं. सुदर्शन चक्र का नाम भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है. क्या आपको पता है कि यह सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु के पास कहां से आया? पौराणिक हिन्दू कथाओं के अनुसार भगवान कृष्ण ने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल महाभारत में किया था. पुराणों की मानें तो सुदर्शन एक ऐसा अचूक अस्त्र था जिसे छोड़ने के बाद वो अपने लक्ष्य का पीछा करता था और उसे ख़त्म करने के बाद वापस अपने छोड़े गए स्थान पर आ जाता था !
अगले क्षण में, भगवान विष्णु का चक्र सामरिक क्षमता और अद्भुत शक्ति से प्रभावित हुआ और उसने राक्षसों को जड़ से मिटा दिया। यह चक्र अत्यंत तेज़ और अवचेतन होता है और उसका प्रयोग विष्णु भगवान की शक्ति, रक्षा और धर्म के प्रतीक के रूप में होता है।इस प्रकार, सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु के आदेशानुसार उत्पन्न हुआ और उन्हें युद्ध में विजय प्राप्त करने औरधर्म की स्थापना करने के लिए समर्पित किया गया। यह चक्र भगवान विष्णु की अद्भुत शक्तिशाली आयुध है जो दुष्टों को सामरिक युद्ध में पराजित करने के लिए उपयोग किया जाता है।
पुराणों के अनुसार
पुराणों के अनुसार सुदर्शन चक्र का निर्माण भगवान शंकर ने किया था, और इसे बाद में भगवान विष्णु को सौंप दिया. ज़रुरत पड़ने पर भगवान विष्णु ने इस चक्र को देवी पार्वती को प्रदान किया. शिव महापुराण में इससे जुड़ी एक कथा का वर्णन मिलता है, पृथ्वी पर जब दैत्यों का अत्याचार बहुत बढ़ गया और दानव जब स्वर्ग लोक तक पहुंच गए, तब सभी देवता घबराकर भगवान विष्णु के पास गए, दानवों को परास्त करने के लिए एक दिव्य अस्त्र की ज़रुरत थी. तब भगवान विष्णु ने कैलाश पर जाकर भगवान शंकर की आराधना शुरू की. भगवान विष्णु ने हजार नामों से भोलेनाथ की स्तुति करी और प्रत्येक नाम के साथ एक कमल का फूल भोलेनाथ को अर्पित करते गए. तब भोलेनाथ ने भगवान विष्णु की परीक्षा लेने के लिए उन हजार कमल के पुष्पों में से एक पुष्प को छिपा दिया.
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु को उनके अवतार वामन के समय वरदान के रूप में मिला। यह घटना विष्णु पुराण और श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित है।
कथा के अनुसार, दैत्य राजा बलि बहुत महान दानशील था और उसने वैष्णव यज्ञ का आयोजन किया। भगवान विष्णु, अवतार वामन के रूप में, द्वार्पालक ब्राह्मण के रूप में वहां पहुंचे। वामन ने बलि से तीन चरण धरती के लिए मांग की। बलि ने तीनों चरणों को वृद्धि दी और वामन की मांग स्वीकार की।
उस समय, देवता और दैत्य यज्ञ के दर्शन के लिए बारह ज्योतिर्लिंगों के चक्रव्यूह का आयोजन किया था। भगवान विष्णु ने इस अवसर पर वामन के रूप में बलि के दरबार में प्रवेश किया। देवता और दैत्य यज्ञ की यशस्वी पूर्णता को देखकर भगवान विष्णु अपने दायें हाथ से सुदर्शन चक्र को बलि को समर्पित करते हुए बोले, "यह चक्र तुझे अमरत्व और शक्ति का प्रतीक होगा, और तू इसका निर्माण और प्रयोग कर सकेगा।"
इस प्रकार, सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु के पास विष्णु अवतार वामन के द्वारा प्राप्त हुआ। यह चक्र विष्णु के अधिकारिक आयुध के रूप में मान्यता प्राप्त करता है और उसे उनकी सामरिक और रक्षात्मक क्रियाओं में प्रयोग किया जाता है।
शिव की माया के कारण भगवान विष्णु को यह बात पता नहीं चली और जब उन्हें एक पुष्प नहीं मिला तो उन्होंने भोलेनाथ को पुष्प की जगह अपनी एक आँख अर्पित कर दी. भगवान श्री हरी की भक्ति देखकर भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उनके सामने प्रकट होकर उनसे वरदान मांगने को कहा. तब श्री हरी ने दैत्यों के संहार के लिए भोलेनाथ से एक अजेय अस्त्र मांगा. भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर खुद के द्वारा बनाया हुआ सुदर्शन चक्र भगवन श्री हरी विष्णु को भेंट किया. श्री हरी ने यह चक्र धारण किया और कई बार देवताओं को इस चक्र की सहायता से दैत्यों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई.
सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु के स्वरुप के साथ सदैव के लिए जुड़ गया. इसके बाद श्री हरी ने यह चक्र आवश्यकता पड़ने पर माता पार्वती को प्रदान किया. माता पार्वती से यह चक्र कई देवी-देवताओं से होता हुआ भगवान परशुराम के पास पहुंचा और भगवान परशुराम से यह चक्र श्री कृष्ण के पास आ गया.
इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं.
पौराणिक रूप से भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र के बारे में 15 महत्वपूर्ण तथ्य हैं:-
- सुदर्शन चक्र विष्णु भगवान की प्रमुख आयुध है जो उनके द्वारा संसार की सुरक्षा और धर्म की रक्षा करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
- इसका नाम "सुदर्शन" है, जो श्रेष्ठ दर्शन को दर्शाता है, इसे विष्णु की विशेष देखभाल दिया जाता है।
- सुदर्शन चक्र का रूप एक कक्षा के समान होता है, जिसमें कई तेजस्वी धाराएं होती हैं।
- चक्र का केंद्र गोल होता है और उसके चारों ओर के धारें सुंदरता को प्रदर्शित करती हैं।
- सुदर्शन चक्र अद्भुत तेजस्वी होता है और उसकी चारों ओर घूमती हुई धाराएं उसे अस्त्र बनाती हैं।
- इस चक्र का प्रयोग अधिकारिक तरीके से विष्णु भगवान और उनके अवतारों द्वारा ही किया जाता है।
- चक्र की गति अत्यधिक तेज होती है और इसे देखना मुश्किल होता है।
- यह चक्र दुष्टता के विरुद्ध लड़ाई में अत्यंत प्रभावी होता है और दुष्ट शक्तियों को नष्ट करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
- चक्र को भगवान विष्णु ने भगवान शिव से प्राप्त किया था।
- इस चक्र की प्रभा चंद्रमा की तुलना में भी अत्यधिक होती है।
- सुदर्शन चक्र नामक चक्र भगवान के विभिन्न अवतारों में उपयोग हुआ है, जैसे श्रीकृष्ण और राम।
- चक्र को भगवान विष्णु के अलावा किसी और व्यक्ति को प्राप्त नहीं हो सकता है।
- चक्र का प्रयोग अधिकारिक और न्यायिक कार्यों में भी किया जाता है, जहां यह धर्म की रक्षा के लिए उपयोगी होता है।
- चक्र की एक प्रमुख विशेषता है कि वह केवल धार्मिक और न्यायिक क्रियाओं में प्रयोग के लिए ही उपयोगी होता है, न कि अहंकार और अनैतिक कार्यों में।
- सुदर्शन चक्र की पूजा और ध्यान भक्तों के द्वारा की जाती है ताकि उन्हें शक्ति, सुरक्षा और स्पर्श भगवान की कृपा प्राप्त हो सके।
ये थे कुछ महत्वपूर्ण पौराणिक तथ्य सुदर्शन चक्र के बारे में। यह आयुध भगवान विष्णु की अमूल्य और प्रतिष्ठित वस्त्र रचना है जो उनके धार्मिक और रक्षात्मक कर्मों का प्रतीक है।
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