भगवान सूर्य देव की जन्म कथा
एक कथा के अनुसार युद्ध में हारे हुए देवताओं की रक्षा के लिए प्रजापति दक्ष की कन्या अदिति ने सूर्य से उनके पुत्र रूप में जन्म लेने की प्रार्थना की। तब सूर्य देव ने प्रकट होकर अपने एक अंश के उनके गर्भ से जन्म लेने की बात कही। कुछ समय बीत जाने के बाद अदिति के गर्भ से सूर्य देव का जन्म हुआ। उन्होंने दैत्यों से देवताओं की रक्षा की। सूर्य के इस रूप को मार्तण्ड के नाम से जाना जाता है।
सूर्य देव का वर्णन वेदों और पुराणों में भी किया गया है। सूर्य देव का वर्णन एक प्रत्यक्ष देव के रूप में कई जगह किया गया है। शास्त्रों में सूर्य के बारे में विस्तार से बताया गया है।
भगवान सूर्य देव का सबसे आसान मंत्र
सूर्य देव का सबसे आसान मंत्र है "ऊं सूर्याय नम:"। इस मंत्र का जाप प्रात: काल सूर्य प्रणाम और सूर्य को जल अर्पित करते समय करना चाहिए। साथ ही इच्छापूर्ति और पुत्र प्राप्ति के लिए जातक को रोज प्रातः उठकर इस मंत्र का जाप करते हुए सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए।ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।
ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:।
सूर्य देव का स्वरूप
सूर्य देव का निवास स्थान आदित्य लोक है। इनका वाहन सात घोड़ों वाला रथ है। इनके चार हाथ हैं जिनमें से दो हाथों में इन्होंने पद्म पकड़ा हुआ है तथा दो अन्य हाथ अभय और वरमुद्रा में हैं।
सूर्य देव, हिन्दू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक हैं और उन्हें समुद्र मंथन के परिणामस्वरूप उत्पन्न देवता माना जाता है। सूर्य देव विविध ग्रंथों, पुराणों, और धार्मिक टेक्स्टों में विभिन्न स्वरूपों में वर्णित हैं।
कुछ मुख्य सूर्य देव के स्वरूप निम्नलिखित हैं
- आदित्य सूर्य: सूर्य देव को आदित्य भी कहा जाता है, और वह आकाश में उच्च स्थित हैं। उनका आकार अत्यधिक और प्रकाशमय होता है। इनके सप्त घोड़ों के आवाहन में बाराहसी नक्षत्र में संवत्सर बिताते हैं।
- अर्क देव: सूर्य को अर्क देव भी कहा जाता है, जोकि प्राचीन संस्कृत में 'प्रकाश' का अर्थ होता है। उनकी ज्योति में सभी जीवों का उद्दीपन होता है और वे जीवन की प्राणशक्ति होते हैं।
- मित्र: सूर्य का एक अन्य स्वरूप "मित्र" है, जिन्होंने जीवों को आपसी सहमति और मित्रता का संदेश देने के लिए जगह-जगह उपस्थित होते हैं।
- भास्कर: "भास्कर" शब्द का अर्थ होता है "प्रकाशकर्ता" या "प्रकाश देने वाला"। यह उनके प्रकाशमय रूप को दर्शाता है।
- विवस्वान: सूर्य को "विवस्वान" भी कहा जाता है, जिनके द्वारा दिन और रात की श्रेणियों को नियंत्रित किया जाता है।
ये थे कुछ मुख्य सूर्य देव के स्वरूप। सूर्य देव की पूजा और आराधना हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण है और उन्हें जीवन के प्राणशक्ति के रूप में देखा जाता है।
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